दादी-नानी और पिता-दादाजी के बातों का अनुसरण, संयम बरतते हुए समय के घेरे में रहकर जरा सा सावधानी बरतें तो कभी आपके घर में डॉ. नहीं आएगा. यहाँ पर दिए गए सभी नुस्खे और घरेलु उपचार कारगर और सिद्ध हैं... इसे अपनाकर अपने परिवार को निरोगी और सुखी बनायें.. रसोई घर के सब्जियों और फलों से उपचार एवं निखार पा सकते हैं. उसी की यहाँ जानकारी दी गई है. इस साइट में दिए गए कोई भी आलेख व्यावसायिक उद्देश्य से नहीं है. किसी भी दवा और नुस्खे को आजमाने से पहले एक बार नजदीकी डॉक्टर से परामर्श जरूर ले लें.
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नोट : यहाँ पर प्रस्तुत आलेखों में स्वास्थ्य सम्बन्धी जानकारी को संकलित करके पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करने का छोटा सा प्रयास किया गया है। पाठकों से अनुरोध है कि इनमें बताई गयी दवाओं/तरीकों का प्रयोग करने से पूर्व किसी योग्य चिकित्सक से सलाह लेना उचित होगा।-राजेश मिश्रा

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शनिवार, मई 23, 2015

गर्मी में कैसा हो आपका खान-पान

गर्मी में क्या खाना चाहिए और किस-किस से करें परहेज़
गर्मी के मौसम की दिनचर्या
Summer Routine : Food, water and shelter

गर्मी अनेक समस्याओं के साथ दस्तक दे चुकी है। सावधानी न बरती जाए तो इस मौसम में बीमार पड़ना तय-सा हो जाता है। राजेश मिश्रा बता रहे हैं इस मौसम में अपनी और परिवार की देखभाल करने के उपाय।
गर्मियां हमारे शरीर को बुरी तरह प्रभावित करती हैं। इस मौसम में बाहरी तापमान बढ़ने से हमारे शरीर का ताप भी बढ़ जाता है, इसलिए हमें ऐसे भोजन का सेवन करना चाहिए, जो शरीर को ठंडा रखे। गर्मियों में हमारा पाचन-तंत्र भी कमजोर पड़ जाता है, इसलिए जरूरी है कि ताजा और हल्का भोजन किया जाए। बढ़ता तापमान संक्रमण का खतरा भी बढ़ा देता है, इसलिए इस मौसम में साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखें। शरीर में पानी की कमी न होने दें। गर्मियों में अधिक समय घर से बाहर न बिताएं।
बदलती ऋतुओं के अनुसार शरीर में स्वाभाविक रासायनिक परिवर्तन होते हैं और इस परिवर्तन में ऋतूचर्यानुसार खाध्य पदार्थों का सेवन किया जाए तो वात-पित्त-कफ के उभार से होने वाले रोगों से बचा जा सकता है| यहाँ राजेश मिश्रा करेंगे  गर्मी की ऋतू में अच्छी सेहत के लिए सेहतमंद दिन चर्या की बात -
अल सुबह उठते ही 2-3 गिलास पानी पीना चाहिए| इसके बाद शौच,दन्त सफाई,आसान और प्राणायाम नियमित रूप से करें| अब रात को पानी भिगोये हुए 11  बादाम को छिलके उतारकर पीसकर एक गिलास दूध के साथ पीएं| इसके नियमित प्रयोग से शारीरिक तंदुरुस्ती मिलती है और आंतरिक उष्मा शांत होती है| गर्मी के मौसम में तले भुने,गरिष्ठ और ज्यादा मसालेदार पदार्थों की बजाय फल फ्रूट ,हरी सब्जियों के सलाद और जूस का ज्यादा इस्तेमाल करना बेहद फायदेमंद रहता है| इससे गर्मी की वजह से पसीना होने से होने वाली पानी कमी का पुनर्भरण भी होता रहता है|
ग्रीष्म ऋतू में बाजारू चीजें खाने से बचने की सलाह दी जाती है| इस मौसम में शारीरिक कमजोरी, अपच,  दाद, पेचिश, सीने में जलन, खूनी बवासीर, मुहं की बदबू आदि रोगों से बचने का सरल उपचार भी लिख देता हूँ| खाली पेट,नींबू का रस आंवले का रस और हरे धनिये का रस मिश्री मिलाकर पीने से कई रोगों से बचाव हो सकता है| दोपहर और सांयकालीन भोजन में चावल के साथ अरहर,मूंग,उडद की दाल और हरी पत्तीदार सब्जियों का समावेश करें| छाछ व् दही का सेवन करना हितकारी है| रात का भोजन ना करें तो ज्यादा अच्छा|
गर्मी में घर से बाहर निकलने के पहले 2 गिलास पानी जरूर पी लेना चाहिए| टमाटर, तरबूज, खरबूज, खीरा ककड़ी, गन्ने का रस और प्याज का उपयोग करते रहना चाहिए| इन चीजों से पेट की सफाई होती है और अंदरूनी गर्मी शांत होती है|

गर्मी दूर भगाने के कारगर तरीके-

नींबू पानी- यह गर्मी के मौसन का देसी टानिक है| शरीर में विटामिन सी की मात्रा कम हो जाने पर एनीमिया, जोड़ों का दर्द, दांतों के रोग, पायरिया, खांसी और  दमा जैसी दिक्कते हो सकती हैं| नींबू में भरपूर विटामिन सी होता है| अत: इन बीमारियों से दूरी बनाए रखने में यह उपाय सफल रहता है| पेट में खराबी होना, कब्ज, दस्त होना में नींबू के रस में थौड़ी सी हींग, काली मिर्च, अजवाइन, नमक , जीरा मिलाकर पीने से काफी राहत मिलती है|

तरबूज का रस- 

तरबूज के रस से एसीडीटी का निवारण होता है| यह दिल के रोगों डायबीटीज व् केंसर रोग से शरीर की रक्षा करता है|

पुदीने का शरबत- 

गर्मी में पुदीना बेहद फायदेमंद रहता है| पुदीने को पीसकर स्वाद अनुसार नमक,चीनी जीरा मिलाएं| इस तरह पुदीने का शरबत बनाकर पीने से लू.जलन, बुखार, उल्टी व गैस जैसी समस्याओं में काफी लाभ होता है|

ठंडाई- 

गर्मी में ठंडाई काफी लाभ दायक होती है| इसे बनाने के लिये खस खस और बादाम रात को भिगो दें|सुबह इन्हें मिक्सर में पीसकर ठन्डे दूध में मिलाएं| स्वाद अनुसार शकर मिलाकर पीएं| गर्मी से मुक्ति मिलेगी|

गन्ने का रस- 

गर्मी में गन्ने का रस सेहत के लिये बहुत अच्छा होता है| इसमें विटामिन्स और मिनरल्स होते हैं| इसे पीने से ताजगी बनी रहती है| लू नहीं लगती है| बुखार होने पर गन्ने का रस पीने से बुखार जल्दी उतर जाता है| एसीडीटी की वजह से होने वाली जलन में गन्ने का रस राहत पहुंचाता है| गन्ने के रस में नीम्बू मिलाकर पीने से पीलिया जल्दी ठीक होता है| गन्ने के रस में बर्फ मिलाना ठीक नहीं है|

छाछ - 
गर्मी के दिनों में छाछ का प्रयोग हितकारी है| आयुर्वेद शास्त्र में छाछ के लाभ बताए गए हैं| भोजन के बाद आधा गिलास छाछ पीने से फायदा होता है| छाछ में पुदीना ,काला नमक,जीरा मिलाकर पीने से एसीडीटी की समस्या से निजात मिलती है|

खस का शरबत - 

गर्मी में खस का शरबत बहुत ठंडक देने वाला होता है| इसके शरबत से दिमाग को ठंडक मिलती है| इसका शरबत बनाने के लिये खस को धोकर सुखालें| इसके बाद इसे पानी में उबालें| और स्वाद अनुसार शकर मिलाएं| ठंडा होने पर छानकर बोतल में भर लें|

सत्तू - 

यह एक प्रकार का व्यंजन है| इसे भुने हुए चने , जोऊं और गेहूं पीसकर बनाया जाता है| बिहार में यह काफी लोकप्रिय है| सत्तू पेट की गर्मी शांत करता है| कुछ लोग इसमें शकर मिलाकर तो कुछ लोग नमक और मसाले मिलाकर खाते हैं|

आम पन्ना - 

कच्चे आम को पानी में उबालकर उसका गूदा निकाल लें| इसमें शकर, भुना जीरा, धनिया, पुदीना, नमक मिलाकर पीयें| गर्मी की बीमारियाँ दूर होंगी|

हर दो घण्टे में 24 आउंस पानी पिएं

लोग अमूमन प्यास लगने पर पानी पीते हैं, जबकि डिहाइड्रेशन से बचने का तरीका यह है कि हर 10 मिनट पर पानी पीते रहें और प्यास लगने की नौबत ही न आए। डायटीशियन नीतू चांदना कहती हैं, ‘एक वयस्क व्यक्ति को गर्मी के मौसम में घर से निकलते वक्त 17 से 20 आउंस पानी पीना चाहिए। अगर खाली पानी न पिया जाए तो जूस या सूप के रूप में लिक्विड ले लें।’
जितनी देर बाहर रहें, हर 10 मिनट पर 7 से 10 आउंस पानी लेते रहें। ध्यान रहे कि हर दो घण्टे में शरीर को 24 आउंस पानी की जरूरत होती है। इसके अलावा अगर सिर दर्द या शरीर में खिंचाव महसूस हो तो भी तुरंत पानी पिएं। पानी के अलावा सोडियम, पोटेशियम और नमक की कमी से भी डिहाइड्रेशन होता है, इसीलिए नमक खूब खाएं। फलों या स्नैक्स पर नमक ऊपर से डाल कर खाएं। सोडियम और पोटैशियम के लिए तरबूज, लीची, दही खाएं।

अदरक, काली मिर्च, तुलसी खाएं

नीतू सलाह देती हैं कि खाने में तुलसी की पत्ती और तुलसी के बीज का इस्तेमाल करें। तुलसी शरीर के लिए एक तरह से एंटीसेप्टिक का काम करती है। इसके अलावा सब्जी की ग्रेवी में भुना बेसन डालें, ये दोनों ही चीजें शरीर को ठंडा रखती हैं। खाने में प्याज, अदरक, काली मिर्च और लहसुन की मात्र बढ़ा दें। ये मसाले खून को साफ रखते हैं और इन्हें खाने से चूंकि पसीना निकलता है, इसलिए शरीर का तापमान भी नियंत्रित रहता है। एलर्जी और फूड प्वाइजनिंग जैसी बीमारियां अपनी गिरफ्त में नहीं लेतीं।

चीनी कम, शहद ज्यादा

खान-पान में मिठास जितनी ज्यादा होगी, शरीर को ऊर्जा उतनी ही मिलेग, इसलिए ऐसी चीजें खाएं, जो अच्छा कार्बोहाइड्रेट दे सकें। लेकिन चीनी से परहेज करें, क्योंकि चीनी शरीर को खराब कार्बोहाइड्रेट देती है, जिससे ऊर्जा तो मिलती है, मगर पाचन संबंधी शिकायत भी हो जाती है। चीनी की जगह शहद का इस्तेमाल करें। इससे आपके शरीर का इम्यून सिस्टम मजबूत बनेगा। आप ग्रीन टी या दूध में शहद मिला कर पी सकते हैं। ऐसे फल खाएं, जिनमें ग्लूकोस का अंश हो। संतरा, मौसमी, लीची ऐसे ही फल हैं।

गर्मियों में क्या खाएं

मौसमी फल और सब्जियों का सेवन अधिक मात्रा में करें। गर्मियों में मिलने वाली सब्जियां मुलायम, गूदेदार और नमी से भरपूर होती हैं, जो इस मौसम के लिहाज से बिल्कुल उपयुक्त होती हैं। ये सभी सब्जियां ठंडी तासीर वाली, पचने में आसान और उन सभी पोषक तत्वों से भरपूर होती हैं, जो इस गर्म और आर्द्र मौसम से शरीर का तालमेल बैठाने के लिए जरूरी हैं। लौकी, करेला, तोरी, कद्दू, खीरा, टिंडा, परमल, भिंडी, चौलाई जैसी गर्मियों की सब्जियों का सेवन करें। खीरा, पुदीना, तरबूज, मौसमी का सेवन भी करें। ये प्यास बुझाने वाले होते हैं, क्योंकि इनमें सोडियम और कैलोरी की मात्रा बहुत कम होती है और एंटी ऑक्सीडेंट्स, कैल्शियम और विटामिन ए काफी मात्रा में होते हैं। आम और दही भी कूलिंग वाले भोजन हैं। इनमें पानी की मात्रा बहुत अधिक होती है।
प्याज में क्वेरिस्टिंग होता है, जो गर्मी से त्वचा पर पड़ने वाले रैशेज में आराम पहुंचाता है। तरबूज और खरबूजे में करीब 90 प्रतिशत पानी होता है और ये पचने में भी आसान होते हैं। गर्मियों में आने वाले इन फलों का सेवन जरूर करें। इस मौसम में अंगूर भी खूब आते हैं, जिनका सेवन काफी फायदेमंद होता है। इनमें लायकोपीन होता है, जो त्वचा को अल्ट्रावॉयलेट किरणों के हानिकारक प्रभाव से बचाता है।
खाने के साथ सलाद जरूर खाएं। कच्ची सब्जियों से जरूरी एंजाइम मिलते हैं, जो शरीर को भोजन से पोषक तत्वों का अवशोषण करने में मदद करते हैं। शरीर जितने पोषक तत्वों का अवशोषण करेगा, उतना ही स्वस्थ रहेगा। सलाद फाइबर से भरपूर होने के कारण पाचन-तंत्र को भी दुरुस्त रखता है।

क्या न खाएं

  1. कैफीन से दूर रहें। इससे डीहाइड्रेशन बढ़ता है। 
  2. अधिक वसायुक्त और भारी भोजन न खाएं।
  3. तले हुए और मसालेदार भोजन से दूर रहें।
  4. बासी और गंदे माहौल में बना खाना न खाएं।
  5. प्रोसेस्ड और डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों से बचें।
  6. मिठाइयां कम से कम खाएं।

बढ़ा दें तरल पदार्थों का सेवन

गर्मी में हमारे शरीर को काम करने के लिए बहुत कम मात्रा में ऊष्मा की आवश्यकता होती है, इसलिए इस मौसम में हमें खाना कम खाना चाहिए और तरल पदार्थ ज्यादा लेने चाहिएं। डॉंक्टरों का कहना है कि गर्मियों में हमें अपने भोजन को खाना नहीं, पीना चाहिए। रोजाना तीन से चार लीटर पानी पिएं। इसके अलावा जूस, छाछ, लस्सी, नींबू पानी, नारियल पानी और आम पना का सेवन भी करें। डिब्बाबंद जूस का सेवन करने से बचें।

फलों, सब्जियों, दूध, ग्रीन टी और जूस में भी काफी मात्रा में पानी होता है। जो लोग इन चीजों का अधिक मात्रा में सेवन करते हैं, उन्हें ज्यादा मात्रा में पानी की आवश्यकता नहीं होती। इसलिए अगर आपको बार-बार पानी पीना पसंद नहीं है तो अपने डाइट चार्ट में उन चीजों की मात्रा बढ़ा दें।

गर्मियों में जल्दी खराब हो जाता है खाना

इस मौसम में बैक्टीरिया तेजी से पनपते हैं, इसलिए फूड पॉयजनिंग, डायरिया और उल्टी-दस्त के मामले अत्यधिक बढ़ जाते हैं। अधिकतर लोग सोचते हैं कि फ्रिज में रखी सब्जियां, फल और खाना लंबे समय तक खराब नहीं होता, जो गलत है। कच्ची सब्जियों और फलों को 2 से 4 दिन से अधिक समय तक न रखें।

डीहाइड्रेशन और संक्रमण से बचाव

गर्मी के मौसम में शरीर में पानी की कमी (डीहाइड्रेशन) हो जाती है, इसलिए पर्याप्त मात्रा में पानी पिएं। शरीर में पानी की कमी होने से लू लगने की आशंका बढ़ जाती है। गर्मियों में घर से बाहर धूप में अधिक समय न बिताएं। इससे शरीर का तापमान सामान्य से अधिक हो जाता है, जिससे थकान, रक्तचाप कम होना, कमजोरी महसूस होना आदि समस्याएं हो सकती हैं। पानी के अलावा आप नारियल पानी, नींबू पानी, बेल के शरबत आदि से भी अपने शरीर में शीतलता बनाये रख सकते हैं। अपने युरिन के रंग पर नजर रखें। गहरे रंग का युरिन डीहाइड्रेशन की निशानी है। उसका रंग हल्का रखने के लिए अधिक मात्रा में पानी पिएं।
गर्मी के मौसम में दूषित जल पीने व बाहर के कटे-खुले खाद्य पदार्थ खाने के कारण हैजा, टाइफाइड, पीलिया, आंतों में सूजन व अनेक प्रकार के संक्रमणों के मामले बढ़ जाते हैं। कई बार अधिक खाना भी फूड पॉयजनिंग का कारण बन जाता है। घर पर बना सादा और सुपाच्य भोजन ही करें। बाहर खाने से बचें। कभी मजबूरी में बाहर खाना भी पड़े तो ऐसे रेस्तरां से खाएं, जहां ताजा और हाइजनिक खाना मिले।

रहें ऊर्जा से भरपूर

अपने दिन की शुरुआत एक गिलास पानी से करें। कम वसा वाला भोजन खाएं और ताजे फलों का रस पिएं। तले हुए और मसालेदार भोजन से बचें। अल्कोहल व कैफीन का सेवन कम करें, क्योंकि इनसे शरीर में पानी की कमी हो जाती है और आप सुस्ती अनुभव करते हैं।

इन बातों का रखें ध्यान

  • सब्जियों, फलों और बचे हुए खाने को तुरंत फ्रिज में रख दें।
  • फ्रिज का तापमान बहुत महत्वपूर्ण है। यह पांच डिग्री सेल्सियस से कम और फ्रीजर का तापमान -15 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए।
  • कच्चे और पके हुए मांस तथा सी फूड को ज्यादा समय तक स्टोर न करें, क्योंकि इनमें बैक्टीरिया तेजी से पनपते हैं।
  • यह जांचने के लिए कि भोजन सही है या नहीं, उसे चखना नहीं चाहिए, क्योंकि कई बार यह बेहद नुकसानदेह साबित होता है।
  • दूध और दुग्ध उत्पादों को लंबे समय तक सामान्य तापमान पर न रखें।
  • बचे हुए खाने को ज्यादा समय तक रेफ्रिजरेटर के बाहर न रखें। दोबारा सेवन करने से पहले उसे ठीक से गर्म कर लें।
  • एक्सपाइरी डेट के खाद्य पदार्थों का सेवन कतई न करें।
  • उबला या फिल्टर किया हुआ पानी ही पिएं।

बुधवार, मई 20, 2015

अमरूद के लाभ और इसके औषधीय प्रयोग

अमरूद की पत्ती से करें कई रोगों का उपचार : राजेश मिश्रा 
Guava leaf benefits

अमरूद की पत्‍तियों के कई स्‍वास्‍थ्‍य लाभ हैं जिसके बारे में हमें पता ही नहीं है। यह आपकी कई बीमारियों में आराम पहुंचा सकती है। वजन घटाना हो, गठिया के दर्द ने परेशान कर रखा हो या फिर पेट ठीक ना रहता हो, तो आप अमरूद की पत्‍तियों के रस का प्रयोग कर सकते हैं।
● इसमें ऐसे चमत्‍कारी गुण हैं जो आपकी कई बीमारियों को एक पल में दूर कर सकती हैं। त्‍वचा, बाल और स्‍वास्‍थ्‍य की देखभाल के लिये अमरूद की ताजी पत्‍तियों का रस या फिर इसकी बनी हुई चाय बहुत ही फायदेमंद होती है।
● वजन घटाना हो, गठिया के दर्द ने परेशान कर रखा हो या फिर पेट ठीक ना रहता हो, तो आप अमरूद की पत्‍तियों के रस का प्रयोग कर सकते हैं। आइये जानते हैं अमरूद की पत्‍तियां किस बीमारी में लाभ पहुंचाती हैं...
1) वजन घटाए
अमरुद की नई कोमल 4-4 पत्तियां सुबह-शाम खाने के बाद चबाने से जटिल स्टार्च को शुगर में बदलने की प्रक्रिया को रोकता है जिसके द्वारा शरीर के वज़न को घटाने में सहायता मिलती है।
2) गठिया दर्द
अमरूद के पत्तों को कूटकर, लुगदी बनाकर उसे गर्म करके लगाने से गठिया की सूजन दूर हो जाती hai.
3) स्वप्नदोष में लाभ
अमरूद के पत्तों को पीसकर उसका रस निकालकर उसमें स्वादानुसार चीनी मिलाकर नित्य पीते रहने से स्वप्नदोष की बीमारी में लाभ होता hai.
4) ल्यूकोरिया में लाभ
अमरूद की ताजी पत्तियों का रस 10 से 20 मिलीलीटर तक नित्य सुबह-शाम पीने से ल्यूकोरिया नामक बीमारी में अप्रत्याशित लाभ पहुंचाता है।
5) कोलेस्‍ट्रॉल कम करे
अमरूद की पत्‍तियों का जूस लिवर से गंदगी निकालने में मदद करता है। यह खराब कोलेस्‍ट्रॉल को कम करता है।
6) डायरिया मिटाए
यह पेट की कई बीमारियों को ठीक करने में असरदार है। एक कप खौलते हुए पानी में अमरूद की पत्‍तियों को डाल कर उबालिये और फिर उसका पानी छान कर पी लीजिये।
7) पाचन तंत्र ठीक करे
अमरूद की पत्‍तियां या फिर उससे तैयार जूस पी कर आप पाचन तंत्र को ठीक कर सकते हैं। इससे फूड प्‍वाइजनिंग में भी काफी राहत मिलती है।
8) दांतों की समस्‍या के लिये
दांतदर्द, गले में दर्द, मसूड़ों की बीमारी आदि अमरूद की पत्‍तियों के रस से दूर हो जाती है। आप पत्‍तियों को पीस कर पेस्‍ट बना कर उसे मसूड़ों या दांत पर रख सकती हैं।
9) डेंगू बुखार
डेंगू बुखार में अमरूद की पत्‍तियों का रस पियें। यह बुखार को संक्रमण को दूर करता है।
10) एलर्जी दूर करे
अमरूद की पत्‍तियों का रस किसी भी प्रकार की एलर्जी को दूर कर सकता है। यह उस वायरस को खतम करता है जिससे एलर्जी पैदा होती है।
11) सिर में दर्द
आधे सिर में दर्द होने पर सूर्योदय के पूर्व ही कच्चे हरे ताजे अमरूद लेकर पत्थर पर घिसकर लेप बनाएं और माथे पर लगाएं। कुछ दिनों तक नित्य प्रयोग करने से पूर्ण लाभ होता है।
12) मुंह के छाले
अमरूद के पत्तों पर कत्था लगाकर चबाएं। केवल अमरूद के पत्ते चबाने से भी छाले ठीक हो जाते हैं।
13) मुंहासे मिटाए
यह एक एंटीसेप्‍टिक पत्‍तियां होती हैं जो कि बैक्‍टीरिया को मार सकती हैं। इसके लिये ताजी पत्‍तियों को पीस कर दाग धब्‍बों के साथ मुंहासो पर लगाएं। ऐसा रोजान करना उचित रहेगा।

गुरुवार, मई 14, 2015

पथरी और पत्थरचट्टा

पथरी के बारे में कुछ जानकारी और उपचार
किडनी की पथरी के लिए रामबाण दवा कुल्थी


स्वस्थ मानव समाज के सृजन के लिए शारीरिक स्वास्थ्य और सामाजिक स्वास्थ्य दोनों पहली जरूरत हैं! कुछ लोग शारीरिक स्वास्थ्य को ही स्वस्थतता का पर्याय मानते हैं, जो सम्पूर्ण सत्य नहीं है! गुर्दे से जुड़ी कई समस्याएं हैं, मसलन गुर्दे में दर्द, मूत्र में जलन या अधिक या कम आना आदि। इन्हीं समस्याओं में से एक समस्या, जिसके पीड़ितों की संख्या लगातार बढ़ रही है, वह है किडनी में पथरी। आयुर्वेद व घरेलू चिकित्सा में किडनी की पथरी में कुलथी को फायदेमंद माना गया है। गुणों की दृष्टि से कुल्थी पथरी एवं शर्करानाशक है। वात एवं कफ का शमन करती है और शरीर में उसका संचय रोकती है। कुल्थी में पथरी का भेदन तथा मूत्रल दोनों गुण होने से यह पथरी बनने की प्रवृत्ति और पुनरावृत्ति रोकती है। इसके अतिरिक्त यह यकृत व पलीहा के दोष में लाभदायक है। मोटापा भी दूर होता है।

स्वास्थ्य होने का अर्थ केवल शारीरिक स्वस्थ होना मात्र ही नहीं है!
अपने शरीर, परिवार और समाज का शारीरिक, मानसिक, सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक और संवैधानिक स्वास्थ्य ठीक करना हम सब की समग्र जिम्मेदारी है!

मेरी नजर में समग्र स्वास्थ्य समग्र मानव जाति का अपरिहार्य दायित्व है, जिसका जनहित में अनिवार्य रूप से सभी को निर्वाह करना चाहिए।

मैं इस कार्य में बहुत छोटा का काम कर रहा हूँ! जिसमें सभी का सक्रिय सहयोग और सहभागिता अपेक्षित है!

इसी दिशा में पथरी के बारे में कुछ जानकारी और उपचार
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पथरी का दर्द भयंकर होता है! जिस किसी ने सहन किया होगा वही इसकी वास्तविक पीड़ा को समझ सकता है!
जो भी मित्र पथरी के दर्द को कभी नहीं झेलना चाहते उनके लिए सुझाव-

1. जर्दा, तम्बाखू, चूने, सुपारी आदि का सेवन कभी नहीं करें!
2. एक गमले में पत्थरच
ट्टा का पौधा लगा लें! इस की डाली या पत्ता ही लग जाता है और कुछ ही दिनों में पौधा बन जाता है!
3. प्रति सप्ताह हम से कम एक पत्ते का सेवन करते रहें या सब्जी में एक दो पत्ते डालें सारा परिवार सुरक्षित रहेगा! अनेकों की पथरी गल कर निकल चुकी है!
4. जिनको बार-बार पथरी होती रहती है, वे हर दूसरे दिन पत्थर चट्टा का आधा पत्ता सेवन करें, लेकिन बिंदु एक में वर्जित अस्वास्थ्यकर व्यसनों के साथ ही टमाटर के बीजों का सेवन भी नहीं करें!
5. आपकी जानकारी के लिए पत्थरचट्टा के पौधे का चित्र भी पेश है! इसे हर एक घर में लगाया जाना चाहिए!

पथरी के लिए रामबाण दवा कुल्थी

यूं करें इस्तेमाल

250 ग्राम कुल्थी कंकड़-पत्थर निकाल कर साफ कर लें। रात में तीन लिटर पानी में भिगो दें। सवेरे भीगी हुई कुल्थी उसी पानी सहित धीमी आग पर चार घंटे पकाएं। जब एक लिटर पानी रह जाए (जो काले चनों के सूप की तरह होता है) तब नीचे उतार लें। फिर तीस ग्राम से पचास ग्राम (पाचन शक्ति के अनुसार) देशी घी का उसमें छोंक लगाएं। छोंक में थोड़ा-सा सेंधा नमक, काली मिर्च, जीरा, हल्दी डाल सकते हैं। पथरीनाशक औषधि तैयार है।

प्रयोग विधि: दिन में कम-से-कम एक बार दोपहर के भोजन के स्थान पर यह सारा सूप पी जाएं। 250 ग्राम पानी अवश्य पिएं। एक-दो सप्ताह में गुर्दे तथा मूत्राशय की पथरी गल कर बिना ऑपरेशन के बाहर आ जाती है, लगातार सेवन करते रहना राहत देता है।

(1) यदि भोजन के बिना कोई व्यक्ति रह न सके तो सूप के साथ एकाध रोटी लेने में कोई हानि नहीं है।
(2) गुर्दे में सूजन की स्थिति में जितना पानी पी सकें, पीने से दस दिन में गुर्दे का प्रदाह ठीक होता है।
(3) यह कमर-दर्द की भी रामबाण दवा है। कुल्थी की दाल साधारण दालों की तरह पका कर रोटी के साथ प्रतिदिन खाने से भी पथरी पेशाब के रास्ते टुकड़े-टुकड़े होकर निकल जाती है। यह दाल मज्जा (हड्डियों के अंदर की चिकनाई) बढ़ाने वाली है।

पथरी में ये खाएं

कुल्थी के अलावा खीरा, तरबूज के बीज, खरबूजे के बीज, चौलाई का साग, मूली, आंवला, अनन्नास, बथुआ, जौ, मूंग की दाल, गोखरु आदि खाएं। कुल्थी के सेवन के साथ दिन में 6 से 8 गिलास सादा पानी पीना, खासकर गुर्दे की बीमारियों में बहुत हितकारी सिद्ध होता है।

ये न खाएं

पालक, टमाटर, बैंगन, चावल, उड़द, लेसदार पदार्थ, सूखे मेवे, चॉकलेट, चाय, मद्यपान, मांसाहार आदि। मूत्र को रोकना नहीं चाहिए। लगातार एक घंटे से अधिक एक आसन पर न बैठें। 

कुल्थी का पानी भी लाभदायक

कुल्थी का पानी विधिवत लेने से गुर्दे और मूत्रशय की पथरी निकल जाती है और नयी पथरी बनना भी रुक जाता है। किसी साफ सूखे, मुलायम कपड़े से कुल्थी के दानों को साफ कर लें। किसी पॉलीथिन की थैली में डाल कर किसी टिन में या कांच के मर्तबान में सुरक्षित रख लें।

कुल्थी का पानी बनाने की विधि: किसी कांच के गिलास में 250 ग्राम पानी में 20 ग्राम कुल्थी डाल कर ढक कर रात भर भीगने दें। प्रात: इस पानी को अच्छी तरह मिला कर खाली पेट पी लें। फिर उतना ही नया पानी उसी कुल्थी के गिलास में और डाल दें, जिसे दोपहर में पी लें। दोपहर में कुल्थी का पानी पीने के बाद पुन: उतना ही नया पानी शाम को पीने के लिए डाल दें।

इस प्रकार रात में भिगोई गई कुल्थी का पानी अगले दिन तीन बार सुबह, दोपहर, शाम पीने के बाद उन कुल्थी के दानों को फेंक दें और अगले दिन यही प्रक्रिया अपनाएं। महीने भर इस तरह पानी पीने से गुर्दे और मूत्राशय की पथरी धीरे-धीरे गल कर निकल जाती है।

सहायक उपचार- कुल्थी के पानी के साथ हिमालय ड्रग कंपनी की सिस्टोन की दो गोलियां दिन में 2-3 बार प्रतिदिन लेने से शीघ्र लाभ होता है। कुछ समय तक नियमित सेवन करने से पथरी टूट-टूट कर बाहर निकल जाती है। यह मूत्रमार्ग में पथरी, मूत्र में क्रिस्टल आना, मूत्र में जलन आदि में दी जाती है।

250 ग्राम कुल्थी कंकड पत्थर निकालकर साफ कर लें और पहले इसे रात में तीन मिलों पानी में भिगो दें। फिर सवेरे भीगी हुई कुल्थी सहित उसी पानी को धीमी-धीमी आग पर लगभग चार घंटे पकाएं और जब एक किलो पानी रह जाय जो काले चनों के सूप की तरह होता है तब नीचे उतार लें। फिर तीस ग्राम से पचास ग्राम पाचन शक्ति के अनुसार देशी घ्ज्ञी का उसमें छोंक लगाये। छोंक में थोडा सा सैंधा नमक, काली मिर्च जीरा हल्दी डाल सक है। बस, भोजन का भोजन और स्वादिष्ट सूप के साथ पथरी नाशक औषधि तैयार होती है।

प्रयोग विधि

दिन में एक बार दोपहर के भोजन के स्थान पर बारह बजे यह सारा सूप पी जाये। कम से कम 250 ग्राम अवश्य पीएं। एक दो सप्ताह में इससे गुर्दे तथा मूत्राशय की पथरी गलकर बिना आपरेशन के बाहर आ जाती है।

विशेष

1. जब तक पथरी बाहर न निकले यह पानी रोजाना एक बार पीते रहे। अधिक दिनों तक लेते रहने से
कोई हानी नहीं है। एक सप्ताह से पांच सप्ताह तक लें।
2. इसके लगातार कुछ दिनों के सेवन से पथरी के तीव्र हमले रुक जाते हैं। पथरी के रोग में यह अमृत तुल्य है।
3. यदि भोजन के बिना कोई व्यक्ति रह न सके तो सूप के साथ एकाध रोटी लेने में कोई हानि नहीं है।
4. गुर्दो के प्रदाह और सूजन में ऐसा पानी रोगी जितना पी सके, पीने से दस दिन में गुर्दे का प्रदाह ठीक होता है।
5. कुल्थी का इस्तेमाल दाल, लोबिया और चनों के सूप के रूप में, कमर दर्द की भी रामबाण दवा है। कुल्थ की दाल साधारण दालों की तरह पकाकररोटी के साथ प्रतिदिन खाने से भी पथरी पेशाब के रास्ते टुकडे टुकडे होकर निकल जाती है। यह दाल मज्जा बढाने वाली है।
6. पथरी में पथ्य – कुल्थी के अलावा, खीरा, तरबूज के बीज, खरबूजा के बीज, चैलाई का सोग, मूली, आंवला, अन्नानास, बथुआ, जौ, मूंग की दाल, गोखरु आदि। कुल्थी के सेवन के साथ दिन में छः से आठ गिलास सादा पानी पीना, खासकर गुर्दे की बीमारियों में, बहुत हितकारी सिद्ध होता है।
7. गुणों की दृष्टि से कुल्थी पथरी एवं शर्करानाशक है। वात एवंकफ का शमन करने वाली होती है और शरीर में उनका संचन रोकने वाली होती है। कुल्थी में पथरी का भेदन तथा मूत्रल दोनों गुण होने से यह पथरी बनने की प्रवृति और पुनरावृति रोकती है।
8. इसके अतिरिक्त यह यकृत व प्लीहा के दोष में लाभदायक है। और निरन्तर प्रयोग करने से मोटापा भी दूर होता है।

शनिवार, मई 09, 2015

कड़वे नीम के ढेरों लाभ : राज

चमत्कारी नीम से हजारों फायदे : अपनाएं नीम अच्छे होंगे दिन 
Bitter numerous advantages of Neem

नीम एक चमत्कारी वृक्ष माना जाता है। नीम में इतने गुण हैं कि ये कई तरह के रोगों के इलाज में काम आता है। यहाँ तक कि इसको भारत में ‘गांव का दवाखाना’ कहा जाता है। यह अपने औषधीय गुणों की वजह से आयुर्वेदिक मेडिसिन में पिछले चार हजार सालों से भी ज्यादा समय से इस्तेमाल हो रहा है। नीम को संस्कृत में ‘अरिष्ट’ भी कहा जाता है, जिसका मतलब होता है, ‘श्रेष्ठ, पूर्ण और कभी खराब न होने वाला।’

नीम के स्वास्थ्यवर्धक फायदे

नीम के अर्क में मधुमेह यानी डायबिटिज, बैक्टिरिया और वायरस से लड़ने के गुण पाए जाते हैं। नीम के तने, जड़, छाल और कच्चे फलों में शक्ति-वर्धक और मियादी रोगों से लड़ने का गुण भी पाया जाता है। इसकी छाल खासतौर पर मलेरिया और त्वचा संबंधी रोगों में बहुत उपयोगी होती है।

नीम के पत्ते भारत से बाहर 34 देशों को निर्यात किए जाते हैं। इसके पत्तों में मौजूद बैक्टीरिया से लड़ने वाले गुण मुंहासे, छाले, खाज-खुजली, एक्जिमा वगैरह को दूर करने में मदद करते हैं। इसका अर्क मधुमेह, कैंसर, हृदयरोग, हर्पीस, एलर्जी, अल्सर, हिपेटाइटिस (पीलिया) वगैरह के इलाज में भी मदद करता है।

नीम के बारे में उपलब्ध प्राचीन ग्रंथों में इसके फल, बीज, तेल, पत्तों, जड़ और छिलके में बीमारियों से लड़ने के कई फायदेमंद गुण बताए गए हैं। प्राकृतिक चिकित्सा की भारतीय प्रणाली ‘आयुर्वेद’ के आधार-स्तंभ माने जाने वाले दो प्राचीन ग्रंथों ‘चरक संहिता’ और ‘सुश्रुत संहिता’ में इसके लाभकारी गुणों की चर्चा की गई है। इस पेड़ का हर भाग इतना लाभकारी है कि संस्कृत में इसको एक यथायोग्य नाम दिया गया है – “सर्व-रोग-निवारिणी” यानी ‘सभी बीमारियों की दवा।’ लाख दुखों की एक दवा!
सद्‌गुरु:
“इस धरती की तमाम वनस्पतियों में से नीम ही ऐसी वनस्पति है, जो सूर्य के प्रतिबिम्ब की तरह है।”

इस पृथ्वी पर जीवन सूर्य की शक्ति से ही चलता है…..सूर्य की ऊर्जा से जन्मे तमाम जीवों में नीम ने ही उस ऊर्जा को सबसे ज्यादा ग्रहण किया है। इसीलिए इसे रोग-निवारक समझा जाता है – किसी भी बीमारी के लिए नीम रामबाण दवा है। नीम के एक पत्ते में 150 से ज्यादा रासयानिक रूप या प्रबंध होते हैं। इस धरती पर मिलने वाले पत्तों में सबसे जटिल नीम का पत्ता ही है। नीम की केमिस्ट्री सूर्य से उसके लगाव का ही नतीजा है।

नीम के पत्तों में जबरदस्त औषधीय गुण तो है ही, साथ ही इसमें प्राणिक शक्ति भी बहुत अधिक है। अमेरिका में आजकल नीम को चमत्कारी वृक्ष कहा जाता है। दुर्भाग्य से भारत में अभी लोग इसकी ओर नहीं दे हैं। अब वे नीम उगाने की कोशिश कर रहे हैं, क्योंकि नीम को अनगिनत तरीकों से इस्तेमाल किया जा सकता है। अगर आपको मानसिक बिमारी है, तो भारत में उसको दूर करने के लिए नीम के पत्तों से झाड़ा जाता है। अगर आपको दांत का दर्द है, तो इसकी दातून का इस्तेमाल किया जाता है। अगर आपको कोई छूत की बीमारी है, तो नीम के पत्तों पर लिटाया जाता है, क्योंकि यह आपके सिस्टम को साफ कर के उसको ऊर्जा से भर देता है। अगर आपके घर के पास, खास तौर पर आपकी बेडरूम की खिड़की के करीब अगर कोई नीम का पेड़ है, तो इसका आपके ऊपर कई तरह से अच्छा प्रभाव पड़ता है।

बैक्टीरिया से लड़ता नीम

दुनिया बैक्टीरिया से भरी पड़ी है। हमारा शरीर बैक्टीरिया से भरा हुआ है। एक सामान्य आकार के शरीर में लगभग दस खरब कोशिकाएँ होती हैं और सौ खरब से भी ज्यादा बैक्टीरिया होते हैं। आप एक हैं, तो वे दस हैं। आपके भीतर इतने सारे जीव हैं कि आप कल्पना भी नहीं कर सकते। इनमें से ज्यादातर बैक्टीरिया हमारे लिए फायदेमंद होते हैं। इनके बिना हम जिंदा नहीं रह सकते, लेकिन कुछ ऐसे भी होते हैं, जो हमारे लिए मुसीबत खड़ी कर सकते हैं। अगर आप नीम का सेवन करते हैं, तो वह हानिकारक बैक्टीरिया को आपकी आंतों में ही नष्ट कर देता है।
आपके शरीर के भीतर जरूरत से ज्यादा बैक्टीरिया नहीं होने चाहिए। अगर हानिकारक बैक्टीरिया की तादाद ज्यादा हो गई तो आप बुझे-बुझे से रहेंगे, क्योंकि आपकी बहुत-सी ऊर्जा उनसे निपटने में नष्ट हो जाएगी। नीम का तरह-तरह से इस्तेमाल करने से बैक्टीरिया के साथ निपटने में आपके शरीर की ऊर्जा खर्च नहीं होती।
आप नहाने से पहले अपने बदन पर नीम का लेप लगा कर कुछ वक्त तक सूखने दें, फिर उसको पानी से धो डालें। सिर्फ इतने से ही आपका बदन अच्छी तरह से साफ हो सकता है – आपके बदन पर के सारे बैक्टीरिया नष्ट हो जाएंगे। या फिर नीम के कुछ पत्तों को पानी में डाल कर रात भर छोड़ दें और फिर सुबह उस पानी से नहा लें।

एलर्जी के लिए नीम

नीम के पत्तों को पीस कर पेस्ट बना लें, उसकी छोटी-सी गोली बना कर सुबह-सुबह खाली पेट शहद में डुबा कर निगल लें। उसके एक घंटे बाद तक कुछ भी न खाएं, जिससे नीम ठीक तरह से आपके सिस्टम से गुजर सके। यह हर प्रकार की एलर्जी – त्वचा की, किसी भोजन से होनेवाली, या किसी और तरह की – में फायदा करता है। आप सारी जिंदगी यह ले सकते हैं, इससे कोई नुकसान नहीं होगा। नीम के छोटे-छोटे कोमल पत्ते थोड़े कम कड़वे होते हैं, वैसे किसी भी तरह के ताजा, हरे पत्तों का इस्तेमाल किया जा सकता है।

बीमारियों के लिए नीम

नीम के बहुत-से अविश्वसनीय लाभ हैं, उनमें से सबसे खास है – यह कैंसर-कोशिकाओं को नष्ट कर देता है। हर किसी के शरीर में कैंसर वाली कोशिकाएं होती हैं, लेकिन वे एक जगह नहीं होतीं, हर जगह बिखरी होती हैं। किसी वजह से अगर आपके शरीर में कुछ खास हालात बन जाते हैं, तो ये कोशिकाएं एकजुट हो जाती हैं। छोटे-मोटे जुर्म की तुलना में संगठित अपराध गंभीर समस्या है, है कि नहीं? हर कस्बे-शहर में हर कहीं छोटे-मोटे मुजरिम होते ही हैं। यहां-वहां वे जेब काटने जैसे छोटे-मोटे जुर्म करते हैं, यह कोई बड़ी समस्या नहीं है। लेकिन किसी शहर में अगर ऐसे पचास जेबकतरे एकजुट हो कर जुर्म करने लगें, तो अचानक उस शहर का पूरा माहौल ही बदल जाएगा। फिर हालत ये हो जाएगी कि आपका बाहर सड़क पर निकलना खतरे से खाली नहीं होगा। शरीर में बस ऐसा ही हो रहा है। कैंसर वाली कोशिकाएं शरीर में इधर-उधर घूम रही हैं। अगर वे अकेले ही मस्ती में घूम रही हैं, तो कोई दिक्कत नहीं। पर वे सब एक जगह इकट्ठा हो कर उधम मचाने लगें, तो समस्या खड़ी हो जाएगी। हमें बस इनको तोड़ना होगा और इससे पहले कि वे एकजुट हो सकें, यहां-वहां इनमें से कुछ को मारना होगा। अगर आप हर दिन नीम का सेवन करें तो ऐसा हो सकता है; इससे कैंसर वाली कोशिकाओं की तादाद एक सीमा के अंदर रहती है, ताकि वे हमारी प्रणाली पर हल्ला बोलने के लिए एकजुट न हो सकें। इसलिए नीम का सेवन बहुत लाभदायक है।
नीम में ऐसी भी क्षमता है कि अगर आपकी रक्त धमनियों(आर्टरी) में कहीं कुछ जमना शुरु हो गया हो तो ये उसको साफ कर सकती है। मधुमेह (डायबिटीज) के रोगियों के लिए भी हर दिन नीम की एक छोटी-सी गोली खाना बहुत फायदेमंद होता है। यह उनके अंदर इंसुलिन पैदा होने की क्रिया में तेजी लाता है।

साधना के लिए नीम

नीम आपके सिस्टम को साफ रखने के साथ उसको खोलने में भी खास तौर से लाभकारी होता है। इन सबसे बढ़ कर यह शरीर में गर्मी पैदा करता है। शरीर में इस तरह की गर्मी हमारे अंदर साधना के द्वारा तीव्र और प्रचंड ऊर्जा पैदा करने में बहुत मदद करती है।
नीम जो प्रायः सर्व सुलभ वृक्ष आसानी से मिल जाता है। 
• नीम के पेड़ पूरे दक्षिण एशिया में फैले हैं और हमारे जीवन से जुड़े हुए हैं। नीम एक बहुत ही अच्छी वनस्पति है जो कि भारतीय पर्यावरण के अनुकूल है और भारत में बहुतायत में पाया जाता है। भारत में इसके औषधीय गुणों की जानकारी हज़ारों सालों से रही है। 
• भारत में एक कहावत प्रचलित है कि जिस धरती पर नीम के पेड़ होते हैं, वहाँ मृत्यु और बीमारी कैसे हो सकती है।

गुण::

यह वृक्ष अपने औषधि गुण के कारण पारंपरिक इलाज में बहुपयोगी सिद्ध होता आ रहा है। नीम स्वाभाव से कड़वा जरुर होता है, परन्तु इसके औषधीय गुण बड़े ही मीठे होते है। तभी तो नीम के बारे में कहा जाता है की एक नीम और सौ हकीम दोनों बराबर है। इसमें कई तरह के कड़वे परन्तु स्वास्थ्यवर्धक पदार्थ होते है, जिनमे मार्गोसिं, निम्बिडीन, निम्बेस्टेरोल प्रमुख है। नीम के सर्वरोगहारी गुणों से भरा पड़ा है। यह हर्बल ओरगेनिक पेस्टिसाइड साबुन, एंटीसेप्टिक क्रीम, दातुन, मधुमेह नाशक चूर्ण, कोस्मेटिक आदि के रूप में प्रयोग किया जाता है। नीम की छाल में ऐसे गुण होते हैं, जो दाँतों और मसूढ़ों में लगने वाले तरह-तरह के बैक्टीरिया को पनपने नहीं देते हैं, जिससे दाँत स्वस्थ व मज़बूत रहते हैं।

चरक संहिता और सुश्रुत संहिता जैसे प्राचीन चिकित्सा ग्रंथों में इसका उल्लेख मिलता है। ग्रन्थ में नीम के गुण के बारे में चर्चा इस तरह है :-

निम्ब शीतों लघुग्राही कतुर कोअग्नी वातनुत। 
अध्यः श्रमतुटकास ज्वरारुचिक्रिमी प्रणतु ॥ 

अर्थात नीम शीतल, हल्का, ग्राही पाक में चरपरा, हृदय को प्रिय, अग्नि, वाट, परिश्रम, तृषा, अरुचि, क्रीमी, व्रण, कफ, वामन, कोढ़ और विभिन्न प्रमेह को नष्ट करता है।[2]

घरेलू उपयोग::

नीम के वृक्ष की ठंण्डी छाया गर्मी से राहत देती है तो पत्ते फल-फूल, छाल का उपयोग घरेलू रोगों में किया जाता है, नीम के औषधीय गुणों को घरेलू नुस्खों में उपयोग कर स्वस्थ व निरोगी बना जा सकता है। इसका स्वाद तो कड़वा होता है, लेकिन इसके फ़ायदे तो अनेक और बहुत प्रभावशाली हैं और उनमें से कुछ निम्नलिखित हैं :--

• नीम के तेल से मालिश करने से विभिन्न प्रकार के चर्म रोग ठीक हो जाते हैं। 
• नीम के तेल का दिया जलाने से मच्छर भाग जाते है और डेंगू , मलेरिया जैसे रोगों से बचाव होता है 
• नीम की दातुन करने से दांत व मसूढे मज़बूत होते है और दांतों में कीडा नहीं लगता है, तथा मुंह से दुर्गंध आना बंद हो जाता है। 
• इसमें दोगुना पिसा सेंधा नमक मिलाकर मंजन करने से पायरिया, दांत-दाढ़ का दर्द आदि दूर हो जाता है। 
• नीम की कोपलों को पानी में उबालकर कुल्ले करने से दाँतों का दर्द जाता रहता है। 
• नीम की पत्तियां चबाने से रक्त शोधन होता है और त्वचा विकार रहित और चमकदार होती है। 
• नीम की पत्तियों को पानी में उबालकर और पानी ठंडा करके उस पानी से नहाने से चर्म विकार दूर होते हैं, और ये ख़ासतौर से चेचक के उपचार में सहायक है और उसके विषाणु को फैलने न देने में सहायक है। 
• चेचक होने पर रोगी को नीम की पत्तियों बिछाकर उस पर लिटाएं। 
• नीम की छाल के काढे में धनिया और सौंठ का चूर्ण मिलाकर पीने से मलेरिया रोग में जल्दी लाभ होता है। 
• नीम मलेरिया फैलाने वाले मच्छरों को दूर रखने में अत्यन्त सहायक है। जिस वातावरण में नीम के पेड़ रहते हैं, वहाँ मलेरिया नहीं फैलता है। नीम के पत्ते जलाकर रात को धुआं करने से मच्छर नष्ट हो जाते हैं और विषम ज्वर (मलेरिया) से बचाव होता है। 
• नीम के फल (छोटा सा) और उसकी पत्तियों से निकाले गये तेल से मालिश की जाये तो शरीर के लिये अच्छा रहता है। 
• नीम के द्वारा बनाया गया लेप वालों में लगाने से बाल स्वस्थ रहते हैं और कम झड़ते हैं। 
• नीम और बेर के पत्तों को पानी में उबालें, ठंण्डा होने पर इससे बाल, धोयें स्नान करें कुछ दिनों तक प्रयोग करने से बाल झडने बन्द हो जायेगें व बाल काले व मज़बूत रहेंगें। 
• नीम की पत्तियों के रस को आंखों में डालने से आंख आने की बीमारी (कंजेक्टिवाइटिस) समाप्त हो जाती है। 
• नीम की पत्तियों के रस और शहद को 2:1 के अनुपात में पीने से पीलिया में फ़ायदा होता है, और इसको कान में डालने कान के विकारों में भी फ़ायदा होता है। 
• नीम के तेल की 5-10 बूंदों को सोते समय दूध में डालकर पीने से ज़्यादा पसीना आने और जलन होने सम्बन्धी विकारों में बहुत फ़ायदा होता है। 
• नीम के बीजों के चूर्ण को ख़ाली पेट गुनगुने पानी के साथ लेने से बवासीर में काफ़ी फ़ायदा होता है। 
• नीम की निम्बोली का चूर्ण बनाकर एक-दो ग्राम रात को गुनगुने पानी से लें कुछ दिनों तक नियमित प्रयोग करने से कब्ज रोग नहीं होता है एवं आंतें मज़बूत बनती है। 
• गर्मियों में लू लग जाने पर नीम के बारीक पंचांग (फूल, फल, पत्तियां, छाल एवं जड) चूर्ण को पानी मे मिलाकर पीने से लू का प्रभाव शांत हो जाता है। 
• बिच्छू के काटने पर नीम के पत्ते मसल कर काटे गये स्थान पर लगाने से जलन नहीं होती है और ज़हर का असर कम हो जाता है। 
• नीम के 25 ग्राम तेल में थोडा सा कपूर मिलाकर रखें यह तेल फोडा-फुंसी, घाव आदि में उपयोग रहता है। 
• गठिया की सूजन पर नीम के तेल की मालिश करें। 
• नीम के पत्ते कीढ़े मारते हैं, इसलिये पत्तों को अनाज, कपड़ों में रखते हैं। 
• नीम की 20 पत्तियाँ पीसकर एक कप पानी में मिलाकर पिलाने से हैजा़ ठीक हो जाता है। 
• निबोरी नीम का फल होता है, इससे तेल निकला जाता है। आग से जले घाव में इसका तेल लगाने से घाव बहुत जल्दी भर जाता है। 
• नीम का फूल तथा निबोरियाँ खाने से पेट के रोग नहीं होते। 
• नीम की जड़ को पानी में उबालकर पीने से बुखार दूर हो जाता है। 
• छाल को जलाकर उसकी राख में तुलसी के पत्तों का रस मिलाकर लगाने से दाग़ तथा अन्य चर्म रोग ठीक होते हैं। 
• विदेशों में नीम को एक ऐसे पेड़ के रूप में पेश किया जा रहा है, जो मधुमेह से लेकर एड्स, कैंसर और न जाने किस-किस तरह की बीमारियों का इलाज कर सकता है। 
नीम के उपयोग से लाखों लोगों को रोजगार मिलता है, आप सभी से निवेदन है कि आप नीम जैसी औषधि का अपने घर में जरूर प्रयोग करे और देश के विकास में सहयोग दे और स्वस्थ भारत और प्रगतिशील भारत का निर्माण करे और अपने धन को विदेशी कम्पनियों के पास जाने से रोके। 

सोमवार, मई 04, 2015

मनचाहा घने और काले बालों के लिए 35 सूत्र

झड़ने से बचाएं, मिनटों में पाएं रेशमी और घनेरी बाल
Thick and Black Hair 35 formula's

1- घी खाएं और बालों के जड़ों में घी मालिश करें।
2- गेहूं के जवारे का रस पीने से भी बाल कुछ समय बाद काले हो जाते हैं।
3- तुरई या तरोई के टुकड़े कर उसे धूप मे सूखा कर कूट लें। फिर कूटे हुए मिश्रण में इतना नारियल तेल डालें कि वह डूब जाएं। इस तरह चार दिन तक उसे तेल में डूबोकर रखें फिर उबालें और छान कर बोतल भर लें। इस तेल की मालिश करें। बाल काले होंगे।
4- नींबू के रस से सिर में मालिश करने से बालों का पकना, गिरना दूर हो जाता है। नींबू के रस में पिसा हुआ सूखा आंवला मिलाकर सफेद बालों पर लेप करने से बाल काले होते हैं।
5- बर्रे(पीली) का वह छत्ता जिसकी मक्खियाँ उड़ चुकी हो 25 ग्राम, 10-15 देसी गुड़हल के पत्ते,1/2 लीटर नारियल तेल में मंद मंद आग पर उबालें सिकते-सिकते जब छत्ता काला हो जाये तो तेल को अग्नि से हटा दें. ठंडा हो जाने पर छान कर तेल को शीशी में भर लें. प्रतिदिन सिर पर इसकी हल्के हाथ से मालिश करने से बाल उग जाते हैं और गंजापन दूर होता है.
6- कुछ दिनों तक, नहाने से पहले रोजाना सिर में प्याज का पेस्ट लगाएं। बाल सफेद से काले होने लगेंगे।
7- नीबू के रस में आंवला पाउडर मिलाकर सिर पर लगाने से सफेद बाल काले हो जाते हैं।
8- तिल का तेल भी बालों को काला करने में कारगर है।
9- आधा कप दही में चुटकी भर काली मिर्च और चम्मच भर नींबू रस मिलाकर बालों में लगाए। 15 मिनट बाद बाल धो लें। बाल सफेद से काले होने लगेंगे।
10- नीम का पेस्ट सिर में कुछ देर लगाए रखें। फिर बाल धो लें। बाल झड़ना बंद हो जाएगा।
11- चाय पत्ती के उबले पानी से बाल धोएं। बाल कम गिरेंगे।
12- बेसन मिला दूध या दही के घोल से बालों को धोएं। फायदा होगा।
13- दस मिनट का कच्चे पपीता का पेस्ट सिर में लगाएं। बाल नहीं झड़ेंगे और डेंड्रफ (रूसी) भी नहीं होगी।
14- 50 ग्राम कलौंजी 1 लीटर पानी में उबाल लें। इस उबले हुए पानी से बालों को धोएं। इससे बाल 1 महीने में ही काफी लंबे हो जाते हैं।
15- नीम और बेर के पत्तो को पानी के साथ पीसकर सिर पर लगा लें और इसके 2-3 घण्टों के बाद बालों को धो डालें। इससे बालों का झड़ना कम हो जाता है और बाल लंबे भी होते हैं।
16- लहसुन का रस निकालकर सिर में लगाने से बाल उग आते हैं।
17- सीताफल के बीज और बेर के बीज के पत्ते बराबर मात्रा में लेकर पीसकर बालों की जड़ों में लगाएं। ऐसा करने से बाल लंबे हो जाते हैं।
18- 10 ग्राम आम की गिरी को आंवले के रस में पीसकर बालों में लगाना चाहिए। इससे बाल लंबे और घुंघराले हो जाते हैं।
19- शिकाकाई और सूखे आंवले को 25-25 ग्राम लेकर थोड़ा-सा कूटकर इसके टुकड़े कर लें। इन टुकड़ों को 500 ग्राम पानी में रात को डालकर भिगो दें। सुबह इस पानी को कपड़े के साथ मसलकर छान लें और इससे सिर की मालिश करें। 10-20 मिनट बाद नहा लें। इस तरह शिकाकाई और आंवलों के पानी से सिर को धोकर और बालों के सूखने पर नारियल का तेल लगाने से बाल लंबे, मुलायम और चमकदार बन जाते हैं।
20- ककड़ी में सिलिकन और सल्फर अधिक मात्रा में होता है जो बालों को बढ़ाते हैं। ककड़ी के रस से बालों को धोने से तथा ककड़ी, गाजर और पालक सबको मिलाकर रस पीने से बाल बढ़ते हैं। यदि यह सब उपलब्ध न हो तो जो भी मिले उसका रस मिलाकर पी लें। इस प्रयोग से नाखून गिरना भी बन्द हो जाता है।
21- कपूर कचरी 100 ग्राम, नागरमोथा 100 ग्राम, कपूर तथा रीठे के फल की गिरी 40-40ग्राम, शिकाकाई 250 ग्राम और आंवले 200 ग्राम की मात्रा में लेकर सभी का चूर्ण तैयार कर लें। इस मिश्रण के 50 ग्राम चूर्ण में पानी मिलाकर लुग्दी(लेप) बनाकर बालों में लगाना चाहिए। इसके पश्चात् बालों को गरम पानी से खूब साफ कर लें। इससे सिर के अन्दर की जूं-लींकें मर जाती हैं और बाल मुलायम हो जाते हैं।
22- गुड़हल के फूलों के रस को निकालकर सिर में डालने से बाल बढ़ते हैं।
23- गुड़हल के ताजे फूलों के रस में जैतून का तेल बराबर मिलाकर आग पर पकायें, जब जल का अंश उड़ जाये तो इसे शीशी में भरकर रख लें। रोजाना नहाने के बाद इसे बालों की जड़ों में मल-मलकर लगाना चाहिए। इससे बाल चमकीले होकर लंबे हो जाते हैं।
24- बालों को छोटा करके उस स्थान पर जहां पर बाल न हों भांगरा के पत्तों के रस से मालिश करने से कुछ ही दिनों में अच्छे काले बाल निकलते हैं जिनके बाल टूटते हैं या दो मुंहे हो जाते हैं।
25- त्रिफला के चूर्ण को भांगरा के रस में 3 उबाल देकर अच्छी तरह से सुखाकर खरल यानी पीसकर रख लें। इसे प्रतिदिन सुबह के समय लगभग 2 ग्राम तक सेवन करने से बालों का सफेद होना बन्द जाता है तथा इससे आंखों की रोशनी भी बढ़ती है।
26- आंवलों का मोटा चूर्ण करके, चीनी के मिट्टी के प्याले में रखकर ऊपर से भांगरा का इतना डाले कि आंवले उसमें डूब जाएं। फिर इसे खरलकर सुखा लेते हैं। इसी प्रकार 7भावनाएं (उबाल) देकर सुखा लेते हैं। प्रतिदिन 3 ग्राम की मात्रा में ताजे पानी के साथ सेवन से करने से असमय ही बालों का सफेद होना बन्द जाता
है। यह आंखों की रोशनी को बढ़ाने वाला, उम्र को बढ़ाने वाला लाभकारी योग है।
27- भांगरा, त्रिफला, अनन्तमूल और आम की गुठली का मिश्रण तथा 10 ग्राम मण्डूर कल्क व आधा किलो तेल को एक लीटर पानी के साथ पकायें। जब केवल तेल शेष बचे तो इसे छानकर रख लें। इसके प्रयोग से बालों के सभी प्रकार के रोग मिट जाते हैं।
28- 250 ग्राम अमरबेल को लगभग 3 लीटर पानी में उबालें। जब पानी आधा रह जाये तो इसे उतार लें। सुबह इससे बालों को धोयें। इससे बाल लंबे होते हैं।
29- त्रिफला के 2 से 6 ग्राम चूर्ण में लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग लौह भस्म मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से बालों का झड़ना बन्द हो जाता है।
30- नारियल तेल और शहद - दोनों में ही नमी होती है जिससे बालों में चमक आती है। 2 चम्‍मच नारिल तेल लें और उसमें 1 चम्‍मच शहद मिलाएं। इससे अपने बालों और सिर की मसाज करें। 15-20 मिनट तक लगा रहने के बाद शैंपू से धो लें। 
31- नारियल तेल और महंदी- महंदी से बाल झड़ना रुक जाता है लेकिन यह बालों को रूखा भी कर देती है। अगर आप चाहती हैं कि बाल रूखे ना बने तो महंदी में नारिल तेल डाल कर लगाएं। इससे बालों में नमी बन जाएगी।
32- नारियल तेल, दही और नींबू- एक कटोरी में अंडा फोडिये और उसमें 2 चम्‍मच दही और नारियल तेल डालिनये। इसे अपने बालों पर लगाइये और 20 मिनट के बाद बाल धो लीजिये। इससे बाल मुलायम और शाइनी बनेंगे। 
33- नारियल तेल और रीठा- थोड़ा सा नारियल तेल लीजिये और उसमें 4 चम्‍मच रीठा पाउडर मिलाइये। इसे 20 मिनट के लिये अपने बालों में लगा कर छोड़ दीजिये और फिर शैंपू कर लीजिये। इससे बाल झड़ना बंद हो जाएंगे और दोमुंहे बालों की समस्‍या भी खतम हो जाएगी। 
34- नारियल तेल और नींबू- थोड़ा सा नारियल तेल लें और उसमें कुछ बूंद नींबू की मिलाएं। इससे हल्‍के हल्‍के सिर की मसाज करें और बाद में शैंपू कर लें। इससे बालों में नमी रहेगी और नींबू से रूसी की समस्‍या दूर होगी।
35- नारियल तेल और अंडा- अंडे में 1 चम्‍मच नारियल तेल डालें और इन्‍हें अपने बालों पर लगाएं। इसे 20-25 मिनट के लिये बालों में लगा रहने दें और फिर शैंपू कर लें। इससे बाल सिल्‍की होंगे और शाइनी बनेंगे।

रविवार, मई 03, 2015

प्राणायाम-योग और आयुर्वेद

सब रोगों की दवाई-आसन, प्राणायाम और ध्यान
Yogasan, Pranayam and Dhyan

प्राणायाम दो शब्दों के योग से बना है-(प्राण+आयाम) पहला शब्द "प्राण" है दूसरा "आयाम"। प्राण का अर्थ जो हमें शक्ति देता है या बल देता है। सरकारी अस्पतालों में भर्ती मरीजों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराने वाले डॉक्टर अब प्राणायाम, योग, ध्यान करके खुद भी स्वस्थ बनाने में जुट गए हैं। योग-प्रक्रियाओं के अन्तर्गत प्राणायाम का एक अतिविशिष्ट महत्त्व है। पतंजलि ऋषि ने मनुष्य-मात्र के कल्याण हेतु अष्टांग योग की विधान किया है। प्रकृति का नियम है कि प्रत्येक चल वस्तु, प्रत्येक क्रियाशील जड़ या चेतन में समय समय पर कुछ न कुछ खराबी निरंतर कार्य करने के कारण आ जाती है। मनुष्य का शरीर इसका अपवाद नहीं है। अतः एव नाना प्रकार की व्याधियों से भी मनुष्य ने अपनी रक्षा के साधन तलाश किये। रोगों से छुटकारा पाने के लिये नाना प्रकार की औषधियों को खोजा। उपचार के नियम बनाये। 
सदा मानव हित का चिन्तन करने ऋषि मुनियों का ध्यान विशेष रूप से इस और गया। इसी संदर्भ में महर्षि पतंजलि ने योगासनों का अविष्कार अथवा उनका चलन किया। बतलाया कि मनुष्य नित्य नियमित रूप से कुछ समय के लिये शारिरिक क्रियाएं कर अपने शरीर की संचालन व्यवस्था को सुचारू रूप से ठीक रख सकता है। ऐसा करने पर किसी भी प्रकार का रोग उसे पकड़ न सकेगा। उसका शरीर स्वस्थ बना रहेगा। वह दीर्घायु भी हो सकता है।

प्राणायाम-योग और आयुर्वेद पुरातन भारतीय संस्कृति की विश्व को अनुपम देन हैै।
प्राणायाम सभी चिकित्सा पद्धतियों में सर्वश्रेष्ठ है क्योंकि इसके नियमित और विधिवत अभ्यास से समस्त स्नायु कोष, नस नाडि़याँ, अस्थियाँ, मांसपेशियाँ और अंग प्रत्यंग के रोग दूर होकर वे सशक्त और सक्रिय बनते हैं, प्राणशक्ति व जीवनीशक्ति बढ़ती है, सप्तधातुएं परिपुष्ट होती हैं। प्राणायाम से शारिरिक एवं मानसिक लाभ के साथ आध्यात्मिक उन्नति भी होती है।

सावधानियां

  • स्नान करके करें अन्यथा प्राणायाम-योगाभ्यास के आधा घंटा विश्राम के पश्चात स्नान करें।
  • प्राणायाम-योगाभ्यास के आधे घण्टे पश्चात पानी, जूस एवं एक घण्टे बाद ही भोजन आदि लें तथा भोजन के पांच घण्टे के अन्तराल पर ही प्राणायाम एवं योगासन करें।
  • रोगी/अस्वस्थ न करें। महिलाएं माहवारी व गर्भावस्था में आसन न करें।
  • श्वसन क्रिया में मुहँ बंद रखें नासिका का उपयोग करें। कमरदर्द वाले आगे झूकने वाले
  • आसन न करें तथा हर्निया के रोगी पीछे झूकने वाले आसन न करें।
  • अभ्यास के दौरान मल, मूत्र, छींक, खांसी आदि न रोकें। विसर्जित करके करें।
  • जल्दबाजी/प्रतिस्पर्धा/जबरदस्ती/झटके के साथ न करें।

शारिरिक स्थिती

  1. साधकगण किसी भी एक आसन सुखासन, वज्रासन पद्मासन, सिद्धासन मे बैठेंगे जो आपको सुखकर लगे व अधिक समय तक बैठ सकें।
  2. सिर गर्दन मेरूदण्ड को एक सीधी रेखा में सीधा रखें। चेहरा सामने सीधा रखें।
  3. आंखे कोमलता से बंद ताकि मन अंर्तमुखी हो बाहरी दृश्यों में चित्त अटके नहीं।
  4. चेहरे पर प्रसन्नता के भाव, किसी प्रकार का कोई तनाव नहीं।
  5. कोई भी एक मुद्रा लगा लें-ध्यान मुद्रा, पृथ्वीमुद्रा, वायुमुद्रा, प्राणमुद्रा, शुन्यमुद्रा मुद्रा में सीधी रहने वाली अंगुलियां सीधी रहें । 
  6. तीन बार ओउम् का उच्चारण लम्बा गहरा श्वांस नाक के द्वारा फेफड़ों में भरें और ओउम् का उच्चारण नाभि की गहराई से करें। तीन बार करेंगे।

प्रार्थना

सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामयाः। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु, मा कश्चिद् दुःख भाग भवेत।। 
असतो मा सद्गमय। तमसो मा ज्योतिर्गमयः, मृत्योर्मा अमृतम गमय।
ओम शान्ति शान्ति शान्ति

भ्रस्त्रिका प्राणायाम

  • श्वांस को लम्बा गहरा धीरे-धीरे नाक के द्वारा फेफड़ों में डायफ्राॅम तक भरेंगे पेट नहीं फुलायेंगे और श्वासं बिना अन्दर रोके, लिये गये श्वांस को नासिका द्वारा धीरे धीरे पूरा ही बाहर छोड़ देंगे तथा बाहर भी श्वांस को बिना रोके पूर्व की भांति श्वासं को भरेंगे। इस अभ्यास को जारी रखें।
  • नये साधक थकने पर बीच में कुछ देर के लिये विश्राम कर सकते हैं। तथा अपने उथले श्वासं की गहराई को बढ़ाने का प्रयास करें।
  • गर्मी में 3 मिनट व सर्दी में 7 मिनट तक किया जा सकता है।
लाभ : सर्दी, जुकाम, पुराना नजला, क्षय, आदि समस्त कफ सम्बन्धी रोग दूर होते हैं। थाॅयराईड, टांसिल आदि गले सम्बन्धी रोगो में लाभकारी। अतिनिद्रा अनिद्रा, आलस्य से मुक्ति। फेफड़े, हृदय एवं मस्तिष्क स्वस्थ होता है।

सूक्ष्म व्यायाम

  • पैर की अंगुलियां तथा अंगूठे आगे तथा पीछे की और दबायें एडि़या स्थिर रखें।
  • दोनों पैरों को मिलाते हुये पूरे पंजे को एड़ी सहित आगे पीछे दबाऐं 
  • दोनों पैरों को मिलाते हुये पूरे पंजे को एड़ी सहित गोल घुमायें।
  • दोनो पैरों को थोड़ी दूरी पर रखें। दोनों पैरों के अंगूठे अन्दर की और दबाते हुये मिलाएं, फिर दोनों पैरों के पंजे वृत्ताकार घुमाते हुये शून्य जैसी आकृति बनायें
  • पैरों को सीधा रखते हुए दोनों हाथों को कमर के दोनों साईड में रखें। 
  • घुटनों की कपाली को दबाते एवं छोड़ते हुए आकुंचन एवं प्रसारण की क्रिया।
  • इसके बाद दोनों हाथों की अंगुलियों को एक दूसरे में डालते हुए घुटने के नीचे जंघा को पकड़ें । फिर पैर को मोड़ते हुए नितम्ब के पास लायें और साईक्लिंग जैसी क्रिया करते हुए पैर से सामने की और से शून्य बनायें । दोनों पैरों से करें।
  • दायें पैर को मोड़कर बायें जंघे पर रखें। बायें हाथ से दाएं पंजे को पकड़ें व दाएं हाथ को दाहिने घुटने पर रखें व घुटने को नीचे जमीन पर लगाने का प्रयास करें। अब दाहिने हाथ को दाएं घुटने के नीचे लगाते हुए घुटने को ऊपर उठाकर छाती से लगाएं तथा घुटने को दबाते हुए जमीन पर टिका दें। इसी प्रकार इस अभ्यास को विपरीत बायें पैर को मोड़कर दायें जंघे पर रखकर पूर्ववत करें।
  • अन्त में दोनों हाथों से पंजों को पकड़कर घुटनों को भूमि पर स्पर्श करायें और ऊपर उठायें। इस प्रकार कई बार इसकी आवृति करें। (बटर फ्लाई ) 

कपाल भाति प्राणायाम : 

कपाल अर्थात मस्तिष्क, भाति अर्थात तेज, प्रकाश आभा, यानि जिस प्राणायाम के करने से आभा, तेज, व ओज बढ़ता हो वह है कपालभाति प्राणायाम विधी:- श्वांस को लम्बा गहरा नासिका के द्वारा फेफड़ों में भरेंगे और लिये गये श्वांस को बिना अन्दर रोके नासाछिद्रों द्वारा प्रयासरत होकर इस प्रकार छोड़ेंगे कि श्वांस को बाहर छोड़ने के साथ ही पेट अन्दर की और पिचके। श्वांस भीतर जा रहा है उस और ध्यान नहीं देते हुए लगातार छोड़ने की क्रिया करनी है। मध्यमगति व मध्यम शक्ति के साथ करें व नये साधक थकने पर कुछ देर बीच में विश्राम कर सकते हैं। श्वांस को अधिक गहराई के साथ छोड़ने का प्रयास करें। और दिन प्रतिदिन लगातार करने की अवधि में वृद्धि करते हुये 5 से 10 मिनट तक करने की क्षमता का विकास करें।

ग्रीष्म ऋतु में पित्त प्रकृति वाले 2 मिनट ही करें। तीव्र गति से सांस को बाहर छोड़ने के लिये झटके से पेट हिलाने से पेट और वेट दोनों कम होते हैं। पाचन शक्ति कई गुना बढ़ जाती है। कब्ज समाप्त होती है। हार्ट के ब्लाॅकेज खुल जाते हैं, फेफड़ो की स्वच्छता होने से अस्थमा जैसा असाध्य रोग समाप्त हो जाता है। रक्तशुद्धि होने से त्वचा रोग, एक्जिमा, एलर्जी स्वतः समाप्त होते हैं। पेट के विकार मिटने से मुखमण्डल पर तेज, आभा, कान्ति, लावण्य आता है। 

हाथों व कन्धे के व्यायाम

  • हाथों की अंगुलियों को परस्पर मिलाते हुये मोड़ना, हाथों को सामने की और फैलाकर अंगुलियों के पोरों को धीरे-धीरे मोड़ें सीधा करें। इसके पश्चात अंगूठे व अंगुलियों को मोड़कर दबाते हुए मुक्का जैसी आकृति बनायें फिर धीरे-धीरे खोलें ऐसा 5-7 बार करें। अब अंगुठे को मोड़कर अंगुलियों से दबाते हुए दोनों हाथों की मुटिठयों को बन्द करके क्रमशःदोनों और घुमायें। कोहनियां सीधी रहनी चाहिये।
  • अब कोहनियों के लिये कोहनी को दूसरे हाथ की हथेली पर रखकर दोनों और गोल घुमायें।
  • अब कन्धे के लिये दोनो कन्धों को क्रमशः ऊपर नीचे करें फिर आगे व पीछे की और गोल घुमायें।
  • अब गर्दन के लिये सीधे बैठकर सिर्फ गर्दन को 3 बार दायीं-बायीं और घुमायें। अब गर्दन को घुमाते हुए पहले दाहिने कन्धे से लगायें इसी तरह बायें कन्धे से छूएं। अब गर्दन को आगे झूकाते हुये ठोडी को छाती से लगायें फिर धीरे धीरे यथाशक्ति पीछे की और झूकायें। अन्त में गर्दन को वृत्ताकार में दोनों दिशाओं में क्रमशः घुमाना चाहिये।

बाह्य प्राणायाम त्रिबन्ध के साथ

  • श्वांस को लम्बा गहरा नासिका के द्वारा फेफड़ों में भरेंगे और लिये गये श्वांस को बिना अन्दर रोके, नासिका के द्वारा प्रयासरत होकर एक ही बार में पूरा बाहर छोड़ते हुये सर्वप्रथम मूलबन्ध लगाने के लिये अपने मलद्वार अथवा गुदा को अन्दर की और संकुचित करेंगे। बाद में उड्यानबन्ध लगाने के लिये पेट को अन्दर की और पिचकायेंगे, इसके बाद ठोडी को कण्ठकूप में लगाते हुये जलंधरबन्ध लगायेंगे 
  • गर्दन दर्द वाले रोगी आगे गर्दन न झूकायें।
  • इस प्रकार श्वासं छोड़ते हुये मूल,उड्यान,जलंधर बन्ध लगायेंगे। जितनी क्षमता हो श्वासं को बाहर छोड़कर रोकना है।
  • हृदयरोगी, उच्चरक्तचाप व दमे के रोगी न करें
  • तत्पश्चात श्वांस को लेने से पूर्व जलन्धर बंध खोलें, फिर उड्यान बंध और उसके बाद मूलबंध खोलते हुए श्वांस भरें। इस प्रकार 3 अथवा 5 बार करें। लाभः- वात, पित्त, कफ का संतुलन होता है।
  • शरीर में उर्जाप्रवाह बढता है। जठराग्नि प्रदीप्त होती है, उदर रोगों में लाभ।
  • बुद्धि कुशाग्र होती है। स्वप्नदोष, शीघ्रपतन आदि गुप्तरोगों का शमन होता है।
  • बाह्य प्राणायाम करने के पश्चात अग्निसार की क्रिया करेंगे। श्वांस को लम्बा गहरा नासिका के द्वारा फेफड़ों में भरेंगे और लिये गये श्वांस को बिना अन्दर रोके, नासिका के द्वारा प्रयासरत होकर एक ही बार में पूरा बाहर छोड़कर रोकेंगे अब पेट को अन्दर बाहर लहरायेंगे, जितनी देर श्वासं को बाहर छोडकर रख सकते हैं। एक बार ही करना काफी है।
लाभ:- जठराग्नि प्रदीप्त होती है। कब्ज व अपच ठीक होता है।

चेहरे के व्यायाम व पोईन्ट्स

  • पूरे चहरे को अच्छी तरह से थपथपायेंगे (कुदरती सौन्दर्य व चेहरे पर एक्यूप्रेशर पोइन्ट्स दबते हैं।)
  • अब गर्दन के पीछे मसाज करेंगे (गर्दन दर्द व मस्तिष्क में अच्छे रक्तसंचार के लिये।)

अनुलोम विलोम प्राणायाम

दांये हाथ को ऊपर उठायें। दांये हाथ के अंगुठे से दाहिनी नासिका बन्द करें और बांयी नासिका से श्वांस को लम्बा गहरा धीरे धीरे फेफड़ों में भरेंगे। पूरा श्वांस भरने के पश्चात दाहिने हाथ की अनामिका अंगुली से बांयी नासिका को बन्द कर देंगे व अंगूठे को दांयी नासिका से हटा लेंगे अर्थात दांयी नासिका खोलते हुये, लिये गये श्वांस को बिना अन्दर रोके दांयी नासिका से धीरे धीरे पूरा बाहर छोड़ देंगे तथा बाहर भी श्वांस को बिना रोके जिस नासिका (दांयी) से श्वांस बाहर छोड़ा है उसी नासिका से श्वांस को धीरे धीरे फेफड़ों में भरेंगे। पूरा श्वांस भरने के पश्चात दायें हाथ के अंगुठे से दाहिनी नासिका बंद कर देंगे और बांयी नासिका पर से अनामिका अंगुली हटाते हुये लिये गये श्वांस को बिना अन्दर रोके बांयी नासिका से धीरे धीरे पूरा बाहर छोड़ देंगे। यह एक आवृति अनुलोम विलोम प्राणायाम की हुई ।
दिन प्रतिदिन लगातार करने की अवधि बढ़ाते हुये 5 से 15 मिनट करें।
लाभ: इस प्राणायाम से सांसों का शुद्धिकरण होने से पूरे नाड़ी तंत्र का शोधन होता है, इससे दूषित वायु शरीर से बाहर निकलती है व आॅक्सीजन की मात्रा शरीर में बढ़ जाती है। इससे सन्धिवात, गठिया, कम्पवात, स्नायुदौर्बल्य आदि समस्त वातरोग एवं सर्दी, जुकाम, सायनस, खांसी, टाॅन्सिल, अस्थमा, आदि समस्त कफ रोग दूर होते हैं। त्रिदोषनाशक है। हृदय के ब्लाॅकेज खुलते हैं। सिरदर्द, माइग्रेन, मानसिक तनाव दूर होता है व विवेक जाग्रत होता है।

आसन

उत्तानपादासन:- पीठ के बल लेट जायें। हथेलियां भूमि की और, पैर सीधे, पंजे मिले हुये हों । अब श्वांस भरकर एक पैर को 1 फुट तक धीरे धीरे ऊपर उठायें। 10 सैकण्ड रोके फिर धीरे धीरे पैरों को नीचे भूमि पर टिकायें। फिर क्रमशः दूसरे पैर से करें। 3 से 6 बार ।
अब यही क्रिया दोनों पैरों को एक साथ उठाकर क्रमशः करें। 3 से 6 बार ।
कमरदर्द वाले एक एक पैर से ही क्रमशः इस अभ्यास को करें।
कब्ज, गैस, मोटापा, पेटदर्द, नाभि का टलना, कमरदर्द, हृदयरोग में लाभप्रद।
पवनमुक्तासन:- सीधे लेटकर दांये पैर के घुटने को छाती पर रखें। दोनों हाथों को अंगुलियां एक दूसरे में डालते हुये घुटने पर रखें, श्वांस बाहर निकालते हुये घुटने को दबाकर छाती से लगायें एवं सिर को उठाते हुये घुटने से नासिका का स्पर्श करें। 10 से 30 सैकण्ड रोकते हुये फिर पैर को सीधा कर दें। इसी तरह दूसरे पैर से करें। अन्त में दोनों पैरों से एक साथ करें।
वायु विकार, स्त्रीरोग, मोटापा, कमरदर्द, हृदयरोग में लाभप्रद। यदि कमर में दर्द हो तो सिर उठाकर घुटने से नासिका ना लगायें। केवल पैरो को दबाकर छाती से स्पर्श करें। इससे स्लिपडिस्क, सायटिका, कमरदर्द में लाभ होता है। 
पीठ के बल लेट जायें। हथेलियां भूमि की और, दोनों पैरों को निरंतर साईकिल की तरह चलायें। एक पैर घुटने से मोड़कर सीने की तरफ, दूसरा सीधा फैलायें। 10 बार या यथाशक्ति करें। बीच में विश्राम कर इसी प्रकार विपरीत दिशा में भी दोनों पैरों को निरंतर साइकिल की तरह चलायें। कब्ज, मंदाग्नि, एसिडिटी कमरदर्द, मोटापा घटाने में लाभप्रद। 
सेतूबन्धआसन:- सीधे लेटकर दोनों घुटनों को मोड़कर पैरों को नितम्ब के पास रखियें। हथेलियां जमीन से सटी हुई। श्वांस भरकर कमर एवं नितम्बों को उठाइये। कन्धे सिर एडि़यां भूमि पर टिकी रहे। इस स्थिती में 10 सैकण्ड रूकिये वापस श्वांस छोड़ते हुये धीरे धीरे कमर को भूमि पर टिकाईये । इस प्रकार 3-4 बार करें।
पेट दर्द, कमरदर्द, स्त्रीरोग, पुरूष के धातु रोग, नाभि को केन्द्रित रखने में लाभप्रद।
भुजंगासन:- पेट के बल लेटकर दोनों हथेलियां भूमि पर रखते हुये हाथों को छाती के दोनों और रखें। कोहनियां ऊपर उठी हुई तथा भुजायें छाती से सटी हुई होनी चाहिये। पैर सीधे तथा पंजे आपस में मिले हुये हों। पंजे पीेछे की और तने हुये भूमि पर टिके हुये हों। श्वांस अन्दर भरकर छाती व सिर को धीरे धीरे ऊपर उठाइये। नाभि के पीछे वाला भाग भूमि पर टिका रहे। सिर को उपर उठाते हुये गर्दन को जितना पीछे मोड़ सकते हैं, मोड़ना चाहिये। इस स्थिती में करीब 10 से 30 सैकण्ड जितनी देर यथाशक्ति श्वासं रोक सके रूकें। श्वांस छोड़कर पूर्व स्थिती में आ जायें। सवाईकल, स्पोंडलाइटिस, पेट के रोग, स्लीपडिस्क स्त्रीरोग में लाभप्रद। 


शलभासन:-
पेट के बल लेटकर दोनों हाथों को जंघाओं के नीचे लगाइये । श्वांस अन्दर भरकर दायीं टांग उपर उठायें, घुटने मुड़ने नहीं चाहिये। ठोड़ी भूमि पर टिकी रहे। 10 सेकण्ड रूककर श्वांस बाहर निकालते हुये टांग को नीचे लाएं । क्रमशः दूसरी टांग से भी करें। 3 से 5 बार करें। अगले क्रम में दोनों टांगों को साथ उठायें। तीन बार। कमरदर्द वाले दोनों टांगे साथ न उठायें। 
कब्ज, पाचनविकार, एवं कमरदर्द, सायटिका में विशेष लाभप्रद।
नोट: आसनों के अन्त में शरीर को बिल्कुल ढीला छोड शवासन में लेटें - 5 मिनट 

आँखों के व्यायाम-पुतलियों को क्रमशः बीच में विश्राम करते हुये, दाएं बाएं, ऊपर नीचे क्राॅस में, गोल घुमाना, खोलना बन्द करना, अंगुठा सामने रखकर दूर व पास देखना अन्त में आँखो को उष्मा देना।

भ्रामरी प्राणायाम

श्वांस को लम्बा गहरा फफड़ों में भरते हुये, दोनों कानों में अंगुलियां डालकर कानों को बन्द कर देंगे, बाहर की कोई भी ध्वनि सुनाई ना दे। अब मुहं व होठों का बन्द करके जीभ को ऊपर तालु पर लगा देंगे। ओउम का दीर्घ गुंजन, भौरें के उड़ते समय की ध्वनि की तरह करेंगे, जिसमें श्वांस नासिका से गुंजन के साथ बाहर निकलेगा और पूरे मस्तिष्क में कम्पन्न होगा। यह प्राणायाम करते समय अपना ध्यान आज्ञा चक्र भृकुटिद् पर केन्द्रित करेंगे। इस प्रकार 5 से 7 बार दोहरायेंगे। मन एकाग्र होता है, याददाश्त तेज होती है। मानसिक तनाव, उच्चरक्तचाप, हृदयरोग, उत्तेजना में लाभप्रद। 

उद्गीथ प्राणायाम

लम्बा, गहरा श्वांस फफड़ों में भरें और प्रणव का दीर्घ उच्चारण अर्थात नाभि की गहराई से करें। श्वांस भरने में 5 सैकण्ड व छोड़ते समय दो गुना अर्थात 10 सैकण्ड का समय लगावें। स्वर को मधुर व लयबद्ध बनाते हुये आधा समय ‘ओ’ का व आधा ‘म’ का मुहं बन्द रखते उच्चारण करें।
यह प्राणायाम 3 से 5 बार करें। इससे एकाग्रता आती है, मेरूदण्ड, फेफड़े मजबूत होते हैं, श्वांस की गति पर नियन्त्रण होता है। मानसिक शान्ति मिलती है।

सिंहनाद 


  • वज्रासन में बैठकर, थोड़ा झुकते हुये दोनों घुटनों के बीच में हथेलियों को जमीन पर पीेछे की और टिकाकर, गर्दन को घुमायेंगे। अब श्वासं भरकर मुहं खोलकर जीभ बाहर निकालकर ऊपर की और गर्दन करके, आंखें फैलाकर ऊपर देखते हुये गले के अन्दर से शेर की भांति दहाड़ मारेंगे। इस स्थिती में कुछ देर रूकना है। 2-3 बार करना है। सिहांसन करने के पश्चात गले से लार छोड़ते हुये हल्के हाथ से गले की मालिश करनी चाहिये।
  • इससे गले में खराश नहीं होती। टाँसिल, थायराईड व अन्य गले सम्बन्धी रोगों में उपयोगी है।
  • अस्पष्ट उच्चारण, तुतलाकर बोलने वालों के लिये महत्वपूर्ण है।

श्वांस पर ध्यान

अब आंखे बन्द रखते हुये, साक्षी भाव से आती जाती श्वांस का निरिक्षण करेंगे। अपने प्रयास से न लेना है न छोड़ना है जैसे भी चल रही है अन्तर्मन से देखेंगे। 2 से 5 मिनट। श्वांस की गति पर नियन्त्रण होता है। एकाग्रता आती है, जागरूकता बढ़ती है। मन के खयाल शान्त होते हैं। 
नोट: आंखे बन्द करके योगासन करने से मन की एकाग्रता बढ़ती है। 
मानसिक तनाव व चंचलता दूर होती है।

अन्तर तालिका

व्यायाम व जिम्नास्टिक

1. शरीर के केवल बाह्य मांसपेशियों व मसल को कड़ा व मजबूत बनाता है।
2. इसको करने से शरीर में आलस्य थकावट आती है तथा दूसरे परिश्रम करने की अनिच्छा होती है।
3. अधिक वृद्ध, स्त्री, कमजोर, रोगी वयस्त व्यक्ति नहीं कर सकते।
4. अधिक समय व शक्ति की जरूरत होती है
5. खेल, व्यायाम में हम दूसरी वस्तु या व्यक्ति पर निर्भर रहते हैं, जिसके अभाव में व्यायाम नहीं कर सकते।
6. इसके अभ्यास से शरीर में कठोरता व भारीपन होता है, जिससे ढलती उम्र में वात, गठिया रोग हो जाते हैं। शरीर अल्पायु हो जाता है जैसे - पहलवान, कुश्ती लड़ने वालों का।
7. कुछ समय बाद छोड़ देने से शरीर में कब्ज आदि हो जाते हैं तथा पिछले परिश्रम का कोई गुण धर्म नहीं रहता/ पुनः प्रारंभ करने के लिये वही प्रयत् करना होता है।
8. इसका उपचारात्मक महत्व नहीं है, केवल स्वस्थ व्यक्तियों के लिये है।
9. शरीर के सभी संस्थानों पर इसका प्रभाव व नियन्त्रण नहीं के बराबर है, इससे शरीर की सूक्ष्म शक्तियों का जागरण व विकास नहीं होता।

योगासन

1. शरीर के अन्दर एवं बाह्य दोनों नस नाडि़यों, ग्रन्थियों व मांसपेशियों को लचीला, पुष्ट, सुदृढ बनाता है।
2. इससे शरीर में स्फुर्ति, ताजगी व हल्केपन का अनुभव होता है, अन्य परिश्रम हेतु पूर्ण उत्साह एवं अभिरूचि होती है।
3. इसे सब उम्र के व्यक्ति कर सकते। व्यस्त व्यक्ति भी 10 मिनट निकाल सकते हैं।
4. 10 से 15 मिनट का समय स्वस्थ रहने हेतु पर्याप्त है।
5. योगासन में किसी भी वस्तु, स्थान या व्यक्ति विशेष पर अवलम्बित नहीं रहना पड़ता जब इच्छा वहीं पर कर सकते हैं।
6. इसके अभ्यास से शरीर मुलायम, लचीला व सहनशील बनता है। बीमारी दूर भागती है, दीर्घायु व स्वस्थ जीवन की प्राप्ति होती है। वात, गठिया रोग तो हो ही नहीं सकते।
7. कुछ समय के लिये योगासन का अभ्यास छोड देने से शरीर में कोई दर्द नहीं होता। साथ ही आसन के प्रभाव का अनुभव यदा कदा होता है।
8. वर्तमान में इसके उपचारात्मक महत्व को डाॅ. व वैज्ञानिक भी मानते हैं।
9. इससे शरीर की सूक्ष्म शक्तियों का जागरण होकर प्रतिभा एवं शक्ति का समुचित विकास होता है।

कपालभाति के अभ्यास की विधि

ध्यान के किसी भी आसन जैसे पद्मासन, सिद्धासन, सुखासन या कुर्सी पर रीढ़, गला व सिर को सीधा कर बैठ जाइए। हाथों को घुटनों पर मजबूती से रखिए। अब आंखों को हल्का बन्द कर नासिका द्वारा सामान्य श्वास अन्दर लीजिए तथा हल्के-हल्के श्वास बाहर निकालिए। इस क्रिया का अभ्यास 15 से 25 बार कीजिए। धीरे-धीरे इसकी आवृत्ति 4 से 5 मिनट तक कीजिए। किन्तु उच्च रक्तचाप, हाइपर एसिडिटी तथा हाइपर थायराइड से ग्रस्त व्यक्ति इसका अभ्यास योग्य मार्गदर्शन में करें।

योग निद्रा एवं ध्यान


लगातार मानसिक तनाव, भावनात्मक असंतुलन, निराशा तथा कुंठा में जीने वाले अति आहारी मोटे व्यक्तियों के लिए योगनिद्रा एवं ध्यान रामबाण औषधि की तरह उपयोगी है। यह ऐसे व्यक्तियों की जीवन शैली को सुधारता है।

आहार

मोटे व्यक्तियों को लम्बा उपवास नहीं करना चाहिए। ऐसे लोगों को सादा, सुपाच्य, पौष्टिक तथा संतुलित भोजन लेना चाहिए। टमाटर, लौकी, खीरे के रस में नींबू व शहद मिलाकर लें। ककड़ी, कुलथी, टमाटर, पालक, चने की दाल लें। अंगूर, सेब, पपीता तथा संतरा जैसे फल लें। अधिक मात्र में शर्करा, मिठाइयां, वसा, मसाले, दूध तथा दुग्ध पदार्थ, चावल एवं परिष्कृत आहार कम लें। अनाज, फल, दही एवं सब्जियां पर्याप्त मात्र में लेना चाहिए।