दादी-नानी और पिता-दादाजी के बातों का अनुसरण, संयम बरतते हुए समय के घेरे में रहकर जरा सा सावधानी बरतें तो कभी आपके घर में डॉ. नहीं आएगा. यहाँ पर दिए गए सभी नुस्खे और घरेलु उपचार कारगर और सिद्ध हैं... इसे अपनाकर अपने परिवार को निरोगी और सुखी बनायें.. रसोई घर के सब्जियों और फलों से उपचार एवं निखार पा सकते हैं. उसी की यहाँ जानकारी दी गई है. इस साइट में दिए गए कोई भी आलेख व्यावसायिक उद्देश्य से नहीं है. किसी भी दवा और नुस्खे को आजमाने से पहले एक बार नजदीकी डॉक्टर से परामर्श जरूर ले लें.
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नोट : यहाँ पर प्रस्तुत आलेखों में स्वास्थ्य सम्बन्धी जानकारी को संकलित करके पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करने का छोटा सा प्रयास किया गया है। पाठकों से अनुरोध है कि इनमें बताई गयी दवाओं/तरीकों का प्रयोग करने से पूर्व किसी योग्य चिकित्सक से सलाह लेना उचित होगा।-राजेश मिश्रा

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शुक्रवार, अप्रैल 10, 2015

अतिसार (पतला दस्त) नाशक घरेलु नुस्खे

अतिसार, दस्त (डायरिया) का सरल उपचार
Diarrhea (diarrhea diluted) destructor Home Remedies

जब पाचन शक्ति कमजोर हो जाती है तब खाया हुआ आहार पूरी तरह नही पचता जिससे मल बंध नहीं पाता और दस्त पतला हो जाता है। बार बार पतला दस्त अतिसार कहलाता है। 
अतिसार होने की स्थिति में अन्न खाना बन्द कर दही चावल, केले, बेल का मुरब्बा खाना तथा मौसम्बी का रस या ग्लूकोज पानी में घोल कर पीना हितकारी होता है।
असंतुलित और अनियमित खान-पान से, दूषित पानी उपयोग करने से, खाली पेट चाय पीने से, अधिक ठंडे पदार्थों के सेवन करने से, अखाद्य और विजातीय पदार्थ भक्छण करने से, पाचन क्रिया ठीक न होने से, लिवर की प्रक्रिया में व्यवधान आने से प्राय: अतिसार रोग की उत्पत्ति होती है। इस रोग में रोगी को आम युक्त पानी जैसे पतले दस्त होने लगते हैं। बार-बार शोच के लिये जाना पडता है। रोग लम्बा चलने पर रोगी बहुत दुर्बल हो जाता है और ईलाज नहीं लेने पर रोगी की मृत्यु भी हो जाती है।

अतिसार रोग के लक्षण, कारण एवं निवारण

रोगी को बार-बार मल त्यागने जाना, नाभी के आस पास व पेटमें मरोड का दर्द होना, गुड गुडाहट की आवाज के साथ दस्त होना, दस्त में बिना पचा हुआ आहार पदार्थ निकलना, हवा के साथ वेग से दस्त बाहर निकलना, पसीना, बेहोश हो जाना, दस्तों में शरीर का जल निकल जाने से डिहाईड्रेशन की हालत पैदा हो जाना-ये अतिसार रोग के प्रमुख लक्षण हैं।
अब यहां अतिसार की सरल चिकित्सा लिख रहा हूं। अतिसार को तुरंत रोकने का प्रयास घातक भी हो सकता है।आहिस्ता-आहिस्ता अतिसार नियंत्रित करना उत्तम है।
  • बेल के मुरब्बे का एक टुकड़ा लगभग 20-25 ग्राम का प्रतिदिन सुबह शाम खाने से दस्त बंध कर आने लगता है।
  • सोंठ को पानी में घिस कर लेप तैयार करें। यह लेप आधा चम्मच मात्रा में दिन में तीन बार चाटने से पाचन मे सुधार होता है, आंव बनना बन्द होता है और दस्त बंध कर आने लगता है। रात को एक गिलास दूध मे 1 चम्मच सोठ चूर्ण उबाल कर सोते समय पीने से आंव पच जाती है। एक दो दिन यह प्रयोग करके इसके साथ 2 चम्मच केस्टर आइल पीने से रुकी हुई आंव निकल जाती है।
  • भोजन के साथ ताजे दही में दूना पानी मिला कर एक चम्मच लवण भास्कर चूर्ण घोल लें और सुबह के भोजन के साथ घूंट घूंट कर पीते रहें तो भी 4-5 दिन में पाचन क्रिया सुधर जाएगी और दस्त बंध कर आने लगेगा।
  • कुटजारिष्ट नामक औषधि (बाजार मे मील जायेगी) अतिसार, पेचिश, खूनी पेचिश आदि में लाभ करती है। इस औषधि को 2 चम्मच आधा कप पानी में डाल कर दिन में तीन बार पीना चाहिए।
  • अतिसार रोग दूर करने का एक साधारण उपाय है केला दही के साथ खाएं। इससे दस्त बहुत जल्दी नियंत्रण में आ जाते हैं।
  • एक नुस्खा बनाएं। आधा चम्मच निंबू का रस,आधा चम्मच अदरक का रस और चौथाई चम्मच काली मिर्च का पवडर मिश्रण करलें। यह नुस्खा दिन में दो बार लेना उचित है।
  • अदरक की चाय बनाकर पीने से अतिसार में लाभ होता है और पेट की ऐंठन दूर होती है।
  • भूरे चावल पोन घंटे पानी में उबालें।छानकर चावल और पकाये हुए चावल का पानी पीयें। दस्त रोकने का अच्छा उपाय है।
  • आम की गुठली का पावडर पानी के साथ लेने से अतिसार ठीक होता है।
  • निंबू बीज सहित पीस लें और पेस्ट बनालें। एक चम्मच पेस्ट दिन में तीन बार लेने से अतिसार में फ़ायदा होता है।
  • अदरक इस रोग की अच्छी दवा मानी गई है। करीब 100 मिलि गरम पानी में अदरक का रस एक चम्मच मिलाकर गरम-गरम पीयें। अतिसार में अच्छे परिणाम आते हैं
  • एक खास बात याद रखें कि अतिसार रोगी पर्याप्त मात्रा में शुद्ध जल पीता रहे। इससे शरीर में पानी की कमी नहीं होगी। विजातीय पदार्थ पेशाब के जरिये बाहर निकलते रहेंगे।
  • सौंफ़ और जीरा बराबर मात्रा में लेकर तवे पर स्रेक लें और पावडर बनालें। ५ ग्राम चूर्ण पानी के साथ हर तीन घंटे के फ़ासले से लेते रहें। बहुत गुणकारी उपाय है।
  • जीरा तवे पर सेक लें। पाव भर खट्टी छाछ में 2-3 ग्राम जीरा-पावडर डालकर और इसमे आधा ग्राम काला नमक मिलाकर दिन में तीन बार पीने से अतिसार का ईलाज होता है।
  • 50 ग्राम शहद पाव भर पानी में मिलाकर पीने से दस्त नियंत्रण में आ जाते हैं।
  • आधा चम्मच मैथी के बीज,आधा चम्मच जीरा सिका हुआ और इसमें 50 ग्राम दही मिलाकर पीने से अतिसार रोग में बहुत लाभ होता है|
  • अदरक का रस नाभि के आस -पास लगाने से अतिसार में लाभ होता है|
  • कच्चा पपीता उबालकर खाने से दस्त में आराम लग जाता है|
  • मिश्री और अमरूद खाना हितकारी है|

छोटी आँत की बीमारियॉं

आमतौर पर छोटी आँत की बिमारीयो में ज़्यादातर पतली टट्टी के लक्षण दिखाई देते है। सामान्यत छोटी आँत में ही पाचन क्रिया के लिये का अधिक मात्रा(करीब 6 लीटर) में पानी का रूत्राव व अवशोषण होता है। इसलिए अगर छोटी आँत ठीक से काम न कर रही हो और पानी न अवशोषण न करें, तो इसमें मल के साथ अधिक मात्रा में पानी बड़ी आँत में आ जाता है। बड़ी आँत इतने ज़्यादा पतले पानी युक्त मल को सम्भल नहीं पाती । अगर छोटी आँत का जलन व सूजन (शोथ) ज़्यादा तीब्र हो तो पाखाने में खून और/श्लेष्मा भी आ सकता है।

कारण

  1. आमतौर पर विशिष्ट प्रकार के दस्त जीवाणुओं के कारण होता है।
  2. बैक्टीरिया, एमिबा,जिआरडिया, कृमि और वायरस दोनो से ही पानी जैसे दस्त हो सकते हैं। लगभग आधी बार बच्चों में पानी जैसे दस्त का कारण वायरस से संक्रमण होता है।
  3. आधा पतला-गाढा पाखाना आमतौर पर वायरस के कारण नहीं होता, इसका कारण आमतौर पर बैक्टीरिया या अमीबा होता है।
  4. तीब्र स्थिति में अमीबा और जिआरडिया से हरे से रंग का पतला-गाढा पाखाना होता है। परन्तु चिरकारी अमीबियोसिस में दिन में 2-3 बार मुलायम या ढीला सा पाखाना होता है।
  5. कीणों से होने वाला दस्त पतला-गाढा होता है।
  6. बिना पाखाने के खून या श्लेष्मा आना बैसिलरी संक्रमण का लक्षण हे।
  7. अमीबिक कोलाईटिस में म्यूकस के साथ पखाना होता है, हालॉंकि इसमें भी कभी-कभी खून के बिंदू दिख सकते हैं| 

लक्षण

  • उल्टी और दस्त हैजे, वायरल दस्त में और अन्न-विषबाधा में होते हैं। इन सब तकलीफों को मिलकर जठरांत्र शोथ या गैस्ट्रोएंटाईटिस कहते हैं।
  • वायरस से होने वाले दस्त में अक्सर पेट दर्द नहीं होता है।
  • दर्दका कारण बड़ी आँत की गड़बडियों, आँतों में कीड़े होने और खाने में ज़हर होने पर होता है।
  • बदबू कीड़े, अमीबियोसिस या ज़िआर्डिआसिस के कारण आती है।
  • हरे से रंग का पाखाना अमीबियोसिस या ज़िआर्डियासिस में आता है। ज़ियार्डियासिस में पाखाने के साथ झाग भी आता है और इसमें पाखाना जल्द जाने की भावना होती है।

खून और श्लेष्मा

  • तेज़ दर्द, खून व श्लेष्मा की बीमारियों का आम लक्षण है।
  • इन सब बीमारियों में निर्जलीकरण नहीं होता।
  • संक्रमण वाले पेचीश में साथ में बुखार भी हो सकता है।
  • आमतौर पर संक्रमण वाली पेचिश के कारण खून या श्लेषमा निकलता है।
  • इनमें से ज़्यादातर बीमारियॉं संक्रमण के कारण होती हैं। छूत साफ सफाई में कमी के कारण होता है। मनुष्यों के ये बीमारियॉं रहन-सहन के खराब हालातों के कारण होती हैं।
  • बच्चों को होने वाले दस्त में खासतौर पर ध्यान दिए जाने की ज़रूरत होती है। जैसा पहले बताया गया है इनमें से आधी बार कारण वायरस संक्रमण होता है। इनमें अक्सर निर्जलीकरण हो जाता है। इससे अक्सर बच्चों की मौत हो जाती है इसलिए इलाज का एक मुख्य हिस्सा है पानी दिया जाना। बच्चों के स्वास्थ्य वाले अध्याय में इस पर अलग से बात आयेगी।
  • कीड़े और अमीबा इन्सान के शरीर में लम्बे समय तक रह सकते हैं। इस कारण लोगों को अक्सर लम्बे-लम्बे समय तक निस्तानिका (पाखाने जाने में दर्द और पेट पूरी तरह साफ नहीं होने), पेट में गैस व बदहज़मी की शिकायत होती है।

इलाज

  1. छूत के प्रकार के हिसाब से इलाज होता है। याद रखें कि हर संक्रमण दस्त-पेचीश वाली छूत के लिए अलग दवाई की ज़रूरत होती है। वायरस से होने वाले दस्त में कोई भी प्रतिरोगाणु दवाएँ काम नहीं करता। बहुत से डॉक्टर इस बात का ध्यान नहीं रखते और दवाइयॉं और रोगी का पैसा इस पर बरबाद करते हैं। बच्चो में (बच्चों की बीमारी वाला अध्याय देखें) दस्त का कारण लगभग आधी बार वायरस की छूत होती है और इसमें एण्टीबायटिक दवाओं से फायदा नहीं होता।
  2. बैक्टीरिया संक्रमण में (जैसे हैजा) टैट्रासाइक्लीन या एम्पीसिलीन या फ्यूराजोलिडीन से फायदा होता है। अन्य बैक्टीरिया पर इन दवाओं के अलावा कोट्रीमोक्साजोल भी असर करती है।
  3. बैक्टीरिया से होने वाली खूनी पेचिश में फ्यूराज़ोलिडीन के अलावा ऊपर दी गई सभी दवाएँ असर करती हैं। इसके अलावा अन्य असरकारी दवाएँ हैं नॉरफ्लोक्साज़ीन और नालीडिक्सिक एसिड।
  4. कभी-कभी आहारनली व आँतों की छूत के लिए जैण्टामाईसीन का इन्जैक्शन या सैफलोस्पोरिन की ज़रूरत होती है। ऐसे मामलों में डॉक्टरी इलाज की ज़रूरी है।
  5. अमीबा या जिआरडिया संक्रमण का इलाज मैट्रोनिडाज़ोल या टिनिडाज़ोल से करें।
  6. कृमि का इलाज मेबेण्डाज़ोल, आलबेण्डाज़ोल या पिपराज़ीन से करे।

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