अधिकतर महिलाएँ इससे पीडित रहती हैं। रोगाधिक्य में स्थिति और भी दयनीय हो जाती है। रोग के कारण चेहरा सफेद पड जाता है और शरीर कमजोर हो जाता है। रोग के प्रारम्भ में पहले कमर में दर्द और पेडू में भारीपन एवं कभी कभी तनावयुक्त दर्द होता है। शरीर में भारीपन तथा पेशाब में रोग के लक्षण प्रकट होते हैं उक्त लक्षणो के बाद गर्भाशय से योनिद्वार में होकर एक स्राव निकलने लगता है। यह स्राव पहले पतला, स्वच्छ एवं गोद जैसा लसदार होता है। धीरे धीरे यह गाढा होकर मवाद की भाँति हो जाता है। रौगाधिक्य में हरा पीला, खून मिश्रित पनीर जैसा कभी गाढा तो कभी पतला अर्थात् अनेक प्रकार का स्राव होता है।
अत्यधिक मैथुन, मानसिक परेशानी, क्रोध, अत्यधिक गर्भपात, बार बार बच्चा जनना, अनियमित मासिक, कब्ज उत्तेजक पदार्थों का सेवन आदि अनेक कारण इसके लिए उत्तरदायी हैं। जननांगो की सफाई न रखना भी इस रोग का प्रमुख कारण है।
चिकित्सा सूत्र एवं आवश्यक बातें:-
रोग के वास्तविक कारण को जानकर उसे दूर करें। अधिक आराम, मानसिक चिन्ता, शोक, क्रोध, ईर्ष्या , अत्यधित मैथुन, भय आदि से दूर रहें। अंतडियों की क्रिया को तेज रखा जाए ताकि कब्ज न हो पाये भोजन हल्का और सुपाच्य करना उचित है। मांस, मछली, तेज मसालेदार, बासी एवं गरिष्ठ भोजन, अत्यधिक खट्टी वस्तुए जैसे आचार आदि का सर्वथा त्याग करना चाहिए।
आयुर्वेदिक चिकित्सा:-
- मुलेठी के चूर्ण में दो गुनी पिसी मिश्री मिला लें प्रातः 4 ग्राम दवा खाली पेट खिलावें तथा सवा सेर पानी में 10-15 बूंद चूने के पानी की डालकर थोडा थोडा पानी दिन भर पीते रहिए। 40 दिन तक करें।
- पुष्यानुग चूर्ण 60 ग्राम
चन्दनादि चूर्ण 60 ग्राम
चन्द्रमुखी चूर्ण 60 ग्राम
सबको मिलाकर प्रातः सायं 6-6 ग्राम दूध से लें।
इसके साथ अशोकारिष्ट 30 मिली बराबर पानी मिलार प्रातः सायं।
इसके उपरान्त शतावरी घृत या जीरक अवलेह 1 चम्मच लें। रोग जड से चला जायेगा फिर कभी दोबारा नहीं होगा।
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