Epilepsy: The disease is large, treatment short
मिर्गी : रोग बड़ा है, उपचार छोटा
लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि मिर्गी लाइलाज रोग है। मिर्गी का इलाज संभव है अगर मरीज इसका उपचार सही ढंग से कराए। जरा भी कोताही न बरते। जैसे ही रोग के लक्षण दिखें न्यूरोलॉजिस्ट की राय लें। इसके इलाज में धैर्य बहुत जरूरी होता है ...
मिर्गी एक ऐसी बीमारी है जिसे लेकर लोग अक्सर बहुत ज्यादा चिंतित रहते हैं। हालांकि रोग चाहे जो भी हो, हमेशा परेशान करने वाली तथा घातक होती है। इसलिए हमें किसी भी मायने में किसी भी रोग के साथ कभी भी बेपरवाह नहीं होना चाहिए। खासतौर पर जब बात मिर्गी जैसे रोगों की हो तो हमें और भी सतर्क रहना चाहिए। मिर्गी के रोगी अक्सर इस बात से परेशान रहते हैं कि वे आम लोगों की तरह जीवन जी नहीं सकते। उन्हें कई चीजों से परहेज करना चाहिए। खासतौर पर अपनी जीवनशैली में आमूलचूल परिवर्तन करना पड़ता है जिसमें बाहर अकेले जाना प्रमुख है। हम इस विषय में आगे चर्चा करेंगे। इससे पहले यह जान लें कि आखिर मिर्गी क्या है?
मस्तिष्क के समस्त कोषों में एक विद्युतीय प्रवाह होता है। ये सारे कोष विद्युतीय नाड़ियों के जरिए आपस में सम्पर्क कायम रखते हैं, लेकिन जब कभी मस्तिष्क में असामान्य रूप से विद्युत का संचार होने लगता है तो मरीज को विशेष प्रकार के झटके लगते हैं और वह बहोश हसो जाता है। लेकिन यह पहले से तय नहीं होता कि व्यक्ति विशेष कितनी देर तक बेहोश रहेगा। कभी वह चंद सेकेंड के लिए भी बेहोश हो सकता तो कभी मिनट या फिर घंटों तक भी बेहोशी उस पर छायी रह सकती है। अचरज की बात यह है कि दौरा समाप्त होते ही मरीज बिल्कुल सामान्य हो जाता है। उसमें जरा भी कमजोरी के भाव नहीं रह जाते।
मिर्गी का रोगी किसी भी उम्र वर्ग का हो सकता है। बच्चे भी इसका शिकार होते हैं। लेकिन इसके कुछ कारण होते हैं। यदि बच्चे को मिर्गी के दौरे पड़ते हैं तो इसके पीछे भी कई बड़ी वजह होती है। पहला, यदि बच्चा जन्म के समय 3 मिनट तक न रोए तो उसे इस समस्या का बेड होकर सामना करना पड़ता है। इसके अलावा यदि बच्चे के शरीर का तापमान 101 से अधिक हो जाए। कहने का मतलब है कि शरीर का ताप सामान्य रहना जरूरी है। जरूरत से ज्यादा शारीरिक ताप भी उसे रोगी कर सकता है। मिर्गी जैसे समस्याओं की चपेट में ला खड़ा कर सकता है। तीसरी वजह यह है कि सिर में गहरी चोट लग गई हो तो मिर्गी के दौरे पड़ सकते हैं। सिर में ट्यमूर हो तो भी मरीज को मिर्गी घेर लेती है। अंतिम रूप से यह कहा जा सकता है कि शिशु और बच्चे को अगर सिर से जुड़ी कोई भी बीमारी है तो उन्हें मिर्गी हो सकती है।
जिनमें मिर्गी के दौरे पड़ते हैं, वे इस बात से भलीभांति परिचित होंगे कि दौरे पड़ने पर कैसी स्थिति हो जाती है या जिन घरों में मिर्गी के मरीज मौजूद हैं उन्हें इस बात का अल्हाम है कि मिर्गी के मरीजों के साथ कितनी सतर्कता बरतनी पड़ती है। दरअसल कई बार मिर्गी के रोगी को जब दौरे पड़ते हैं तो सामने वाला उस देखकर डर जाता है। दौरे के समय कुछ मरीज के मुंह से झाग निकलता है और उसके शरीर में अकड़न आने लगती है। जानकारियों के अभाव के चलते हमारे समाज में कई लोग इसके बारे में अलग-अलग सोच रखते हैं। यहां यह स्पष्ट करना आवश्यक है कि मिर्गी कोई मानसिक रोग नहीं है। इसलिए मरीज को मानसिक रोगी न समझने की भूल करें और न ही उसे यह एहसास कराएं कि वह मानसिक रोगी है।
सामान्यतः मिर्गी रोग दो तरह का हो सकते हैं आंशिक तथा पूर्ण। आंशिक मिर्गी से मस्तिष्क का एक भाग ज्यादा प्रभावित होता है, वहीं पूर्ण मिर्गी में मस्तिष्क के दोनों भाग प्रभावित होते हैं। इसी प्रकार अलग-अलग रोगियों में इसके लक्षण भी अलग-अलग होते हैं। दौरा पड़ने के समय, आमतौर पर मरीज कुछ देर के लिए बेहोश हो सकता है। मिर्गी अक्सर उन्हें परेशान करती है जिनकी भागदौड़ भरी जिन्दगी होती है। जरूरत से ज्यादा तनाव, नींद पूरी न होना और शारीरिक क्षमता से अधिक मानसिक व शारीरिक काम करने के कारण किसी को भी मिर्गी की परेशानी हो सकती है।
लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि मिर्गी लाइलाज रोग है। मिर्गी का इलाज संभव है अगर मरीज इसका उपचार सही ढंग से कराए। जरा भी कोताही न बरते। जैसे ही रोग के लक्षण दिखें न्यूरोलॉजिस्ट की राय लें। इसके इलाज में धैर्य बहुत जरूरी होता है। मिर्गी रोगी का इलाज 3 से 5 वर्ष तक चल सकता है। सामान्य तौर पर इस रोग के लिए 15-20 दवाइयां मौजूद हैं। डाक्टर मरीज के जरूरतों के अनुसार इन दवाइयों का प्रयोग करते हैं। यदि एक दवाई का मरीज पर असर नहीं होता तो डाक्टर बाकी दवाइयों से उपचार करते हैं। जैसे ही दवा असर करने लगती है मरीज ठीक होना आरम्भ कर देता है। कहने का मतलब है कि रोग पर काबू पाना शुरू हो जाता है।
यूं तो मिर्गी सबके लिए घातक रोग है। लेकिन अगर किसी गर्भस्थ महिला को भी यह रोग है तो उन्हें आम लोगों की तुलना में ज्यादा सतर्क रहना चाहिए। हालांकि मिर्गी की स्थिति में गर्भ धारण करने में कोई परेशानी नहीं होती। न ही उसका बच्चे पर कोई असर पड़ता है। बावजूद इसके नियमित रूप से गर्भवती महिलाओं को डाक्टरों की सलाह लेनी चाहिए और दवाइयों का सेवन जरूरी है। इसलिए जब भी आप घर से बाहर निकलें तो कुछ बातों का अवश्य ध्यान रखें। मसलन घर से जब भी बाहर जाएं अपने पास परिचय कार्ड अवश्य रखें साथ ही दवा का विवरण भी ताकि कहीं बीच राह में किसी को आपकी स्थिति बिगड़ती नजर आए तो वह आपकी मदद कर सके जिसमें उसमें आपकी दवाइयों का विवरण व परिचय कार्ड सहायक होगा।
एक बात उन लोगों को भी जहन में रखना चाहिए, जिनके घर में मिर्गी के मरीज हैं मसलन दौरा पड़ने के समय मरीज के हाथों में लोहे कोई चीज पकड़ा देने या पुराना जूता सुंघाना। ये दोनों आतर्किक बातें हैं। इनका मरीज के स्वास्थ्य कोई सरोकार नहीं है इसलिए उन चीजों को न करें। चूंकि मिर्गी का दौरा दो-तीन मिनट तक रहता है इसलिए लोगों को लगता है कि उनके नुस्खे की वजह से सब ठीक हो गया है।
मिर्गी एक नाडीमंडल संबंधित रोग है जिसमें मस्तिष्क की विद्युतीय प्रक्रिया में व्यवधान पडने से शरीर के अंगों में आक्षेप आने लगते हैं। दौरा पडने के दौरान ज्यादातर रोगी बेहोंश हो जाते हैं और आंखों की पुतलियां उलट जाती हैं। रोगी चेतना विहीन हो जाता है और शरीर के अंगों में झटके आने शुरू हो जाते हैं। मुंह में झाग आना मिर्गी का प्रमुख लक्षण है।
आधुनिक चिकित्सा विग्यान में मिर्गी की लाक्षणिक चिकित्सा करने का विधान है और जीवन पर्यंत दवा-गोली पर निर्भर रहना पडता है। लेकिन रोगी की जीवन शैली में बदलाव करने से इस रोग पर काफ़ी हद तक काबू पाया जा सकता है।
कुछ निर्देश और हिदायतों का पालन करना मिर्गी रोगी और उसके परिवार जनों के लिये परम आवश्यक है। शांत और आराम दायक वातावरण में रहते हुए नियंत्रित भोजन व्यवस्था अपनाना बहुत जरूरी है।
भोजन भर पेट लेने से बचना चाहिये। थोडा भोजन कई बार ले सकते हैं।
रोगी को सप्ताह मे एक दिन सिर्फ़ फ़लों का आहार लेना उत्तम है। थोडा व्यायाम करना भी जीवन शैली का भाग होना चाहिये।
- अंगूर का रस मिर्गी रोगी के लिये अत्यंत उपादेय उपचार माना गया है। आधा किलो अंगूर का रस निकालकर प्रात:काल खाली पेट लेना चाहिये। यह उपचार करीब ६ माह करने से आश्चर्यकारी सुखद परिणाम मिलते हैं।
- एप्सम साल्ट (मेग्नेशियम सल्फ़ेट) मिश्रित पानी से मिर्गी रोगी स्नान करे। इस उपाय से दौरों में कमी आ जाती है और दौरे भी ज्यादा भयंकर किस्म के नहीं आते है।
- मिट्टी को पानी में गीली करके रोगी के पूरे शरीर पर प्रयुक्त करना अत्यंत लाभकारी उपचार है। एक घंटे बाद नहालें। इससे दौरों में कमी होकर रोगी स्वस्थ अनुभव करेगा।
- विटामिन ब६ (पायरीडाक्सीन) का प्रयोग भी मिर्गी रोग में परम हितकारी माना गया है। यह विटामिन गाजर, मूम्फ़ली,चावल, हरी पतीदार सब्जियां और दालों में अच्छी मात्रा में पाया जाता है। १५०-२०० मिलिग्राम विटामिन ब६ लेते रहना अत्यंत हितकारी है।
- मानसिक तनाव और शारिरिक अति श्रम रोगी के लिये नुकसान देह है। इनसे बचना जरूरी है।
- मिर्गी रोगी को २५० ग्राम बकरी के दूध में ५० ग्राम मेंहदी के पत्तों का रस मिलाकर नित्य प्रात: दो सप्ताह तक पीने से दौरे बंद हो जाते हैं। जरूर आजमाएं।
- रोजाना तुलसी के २० पत्ते चबाकर खाने से रोग की गंभीरता में गिरावट देखी जाती है।
- पेठा मिर्गी की सर्वश्रेष्ठ घरेलू चिकित्सा में से एक है। इसमें पाये जाने वाले पौषक तत्वों से मस्तिष्क के नाडी-रसायन संतुलित हो जाते हैं जिससे मिर्गी रोग की गंभीरता में गिरावट आ जाती है। पेठे की सब्जी बनाई जाती है लेकिन इसका जूस नियमित पीने से ज्यादा लाभ मिलता है। स्वाद सुधारने के लिये रस में शकर और मुलहटी का पावडर भी मिलाया जा सकता है।
- १०० मिलि दूध में इतना ही पानी मिलाकर उबालें दूध में लहसुन की 4 कुली चाकू से बारीक काटक्रर डालें ।यह मिश्रण रात को सोते वक्त पीयें। कुछ ही रोज में फ़ायदा नजर आने लगेगा।
- गाय के दूध से बनाया हुआ मक्खन मिर्गी में फ़ायदा पहुंचाने वाला उपाय है। दस ग्राम नित्य खाएं।
- तुलसी की पत्तियों के साथ कपूर सुंघाने से मिर्गी के रोगी को होश आ जाता है।
- राई पीसकर चूर्ण बना लें। जब रोगी को दौरा पड़े तो सुंघा दें इससे रोगी की बेहोशी दूर हो जायगी।
- मिर्गी के रोगी के लिए शहतूत का रस लाभदायक होता है। सेब का जूस भी मिर्गी के रोगी को लाभ पहुंचता है।
- मिर्गी के रोगी के पैरों तलवों में आक की आठ-दस बूंदे रोजाना शाम के समय मलें। ऐसा 2 महीनों तक रोजाना करें। इससे काफी लाभ मिलेगा।
- तुलसी के पत्तों को पीसकर शरीर पर मलने से मिरगी के रोगी को लाभ होता है।
- तुलसी के पत्तों के रस में जरा सा सेंधा नमक मिलाकर 1 -1 बूंद नाक में टपकाने से मिरगी के रोगी को लाभ होता है।
- मिरगी के रोगी को ज़रा सी हींग को निम्बू के साथ चूसने से लाभ होता है|
होम्योपैथी की औषधियां मिर्गी में हितकारी सिद्ध हुई हैं।
कुछ होम्योपैथिक औषधियां है--
क्युप्रम, आर्टीमेसिया, साईलीशिया, एब्सिन्थियम, हायोसायमस, एगेरिकस, स्ट्रामोनियम, कास्टिकम, साईक्युटा विरोसा, ईथुजा| इन दवाओं का लक्षणों के मुताबिक उपयोग करने से मिर्गी से मुक्ति पाई जा सकती है।
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