दादी-नानी और पिता-दादाजी के बातों का अनुसरण, संयम बरतते हुए समय के घेरे में रहकर जरा सा सावधानी बरतें तो कभी आपके घर में डॉ. नहीं आएगा. यहाँ पर दिए गए सभी नुस्खे और घरेलु उपचार कारगर और सिद्ध हैं... इसे अपनाकर अपने परिवार को निरोगी और सुखी बनायें.. रसोई घर के सब्जियों और फलों से उपचार एवं निखार पा सकते हैं. उसी की यहाँ जानकारी दी गई है. इस साइट में दिए गए कोई भी आलेख व्यावसायिक उद्देश्य से नहीं है. किसी भी दवा और नुस्खे को आजमाने से पहले एक बार नजदीकी डॉक्टर से परामर्श जरूर ले लें.
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नोट : यहाँ पर प्रस्तुत आलेखों में स्वास्थ्य सम्बन्धी जानकारी को संकलित करके पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करने का छोटा सा प्रयास किया गया है। पाठकों से अनुरोध है कि इनमें बताई गयी दवाओं/तरीकों का प्रयोग करने से पूर्व किसी योग्य चिकित्सक से सलाह लेना उचित होगा।-राजेश मिश्रा

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शनिवार, जुलाई 04, 2015

राजेश मिश्रा की जनोपयोगी कुछ आवश्यक बातें

हर मर्ज का उपाय है इस आलेख में

सावन साग न भादौं दही, कुवार दूध न कातिक मही

हाथ जोड़कर आप सभी पाठकों से विनम्र निवेदन है इस आलेख को पुरे दिल से आत्मसात (कंठस्थ/याद) कर लें तो जिंदगी में कभी डॉक्टर के पास नहीं जाना पड़ेगा. साथ ही राजेश मिश्रा द्वारा सुझाये गए इस आलेख से आप आस-पड़ोस और घर के डॉक्टर बन जायेंगे . यह आलेख हज़ारों पाठको से बातचीत और बड़े बुजुर्ग के कथन के साथ-साथ कई संकलन के बाद तैयार की गई है बहुत ही मेंहनत से ये आलेख (लिखी/संकलन से ) तैयार की गई है... पूरा जरूर पढ़ें और अपनों को पढ़ाएं : - राजेश मिश्रा 




आज का विज्ञान, चिकित्सा के क्षेत्र में तेजी चमत्कारिक प्रयोग करता जा रहा है। छोटे-छोटे उपनगरों में भी बड़े-बड़े नर्सिग होम, डीएम, एमएस और एमडी चिकित्सकों की भरमार हो गई है। लेकिन सवाल उठता है कि क्या जब ये चिकित्सक नहीं थे तो लोग बीमार होकर मर जाते थे? या आबादी वीरान हो जाया करती थी? बिल्कुल नहीं, लोग आज से ज्यादा स्वस्थ थे। आज भी गांवों में चिकित्सा की कोई बेहतर सुविधा नहीं है फिर भी 90 या 95 वर्ष के वृद्ध खेतों में काम करते हुए मिल जायेंगें। उनके उत्तम सेहत का राज है खान, पान, अनुपात और परम्परागत दिनचर्या। जो पीढ़ी दर पीढ़ी अपने पूर्वजों द्वारा रटायी जाती रही है। ये सब दोहों, चौपाइयों और कविताओं के रूप में है। जिनके लेखक और रचनाकारों का कुछ अता-पता नहीं है।

इन कविताओं में भारतीय जलवायु, मौसम और परिवेश का ध्यान रखते हुए गहन शोध किया गया है। जो आज पढ़े लिखे समाज में लुप्तप्राय हैं। जिले के प्रख्यात वैद्य रहे स्व.शिवसहाय सिंह अपने शिष्यों व रोगियों को मौसम के निषिद्ध भोजन इस प्रकार समझाते थे- सावन साग न भादो दही, कुवार दूध न कातिक मही। वैज्ञानिक भी मानते हैं कि मौसम विशेष में शारीरिक रासायनिक क्रियायें बदल जाया करती हैं। जलालपुर के इजरी गांव निवासी रामकुमार वैद्य अपनी कविताओं और गानों में खान-पान की दिनचर्या सुनाया करते थे।

भोजन के बाद की दिनचर्चा-भोजनोपरान्त थोड़ा टहल के बाई ओर करवट लेटना भी लाभकारी है। बासी भोजन खाना, हर हाल हानिकारक कहा, खाके तेज चलना या दौड़ना दुखारी है। किस भोजन के बाद कौन सा आहार स्वीकार है। कौन विष के समान है इसकी लम्बी फेहरिस्त है। -

  • पक्का कटहल खायके फिर लो पान चबाय, पेट फुलै सांसा रुके और तुरन्त मरिजाय।
  • जिस तेल में तली गई हो मछली उसी में, सिद्ध हुई पीपल जहर के समान है।
  • मधु की समान मात्रा घी या व्योम-जल संग, खाने वाले को ढकेल देता श्मशान है।
  • मधु या मकोय भी है एक साथ विष सम, प्रान हरने का यह करक प्रधान है

दूध के साथ इन फलों का सेवन निषिद्ध है-आम, आमड़ा, करौंदा, केला, नीबू, कागजी और नीबू जम्म्बूरी, वहेरी, बेर, कैंथ खाता है कमरख, कटहल, नारियल औ अनार, अखरोट आंवला न दूध से सुहाता है।

ये सारे के सारे प्रयोग लिपिबद्ध न होकर परम्परागत ढंग से लोगों द्वारा सुन-सुनकर याद किये गये हैं। ‘‘पूर्वजों ने जो भी कहा है उसकी प्रामाणिकता आज भी प्रासंगिक है, तब भी विज्ञान था। हमारे उन्हीं विज्ञान पर विदेशों में शोध हो रहा है। पुराने वैद्यों के पास दूर दर्शिता थी। सावन में साग वर्जित है कारण कि उस समय वैक्टीरिया का प्रभाव साग के पत्तों पर अधिक होता है।
भादों में दही इसलिए न खाना चाहिए कि उस समय भी वैक्टीरिया अधिक होती है। हमारे पूर्वज जो वैद्य के रूप में थे उनका अनुभव नकारा नहीं जा सकता। राज्य वैद्य नाड़ी देखकर बताते थे कि शरीर का ताप क्रम कितना है आज थर्मामीटर लगाये जाते हैं।’’

भोजन की विधि :-

  • सुबह के समय सूखा पदार्थ पहले खाएं फिर द्रव्य पदार्थ लें । भारी , मीठा और चिकना पदार्थ पहले खाएं,
  • अम्ल व लवण युक्त मध्य में खाएं ।
  • कडुवा, तीखा , कसैला अंत में खाएं ।
  • यदि भूख कम लगती है तो पहले गर्म पदार्थ पहले
  • खायें ।
  • रात्रि के समय सत्तू , फल और दही का सेवन ना करें।
  • हरा उड़द दालों में श्रेष्ठ है, यह हल्का और वातकारक है ।
  • कुलथी की दाल को सर्दियों में खाएं कफ, वायु , उदररोग , पथरी, साँस सम्बन्धी रोग को ठीक करता है ।
  • उड़द की दाल शुक्र को बढ़ाने वाला होता है ।
  • जौ पित्त , कंठ रोग और कफ को शांत करता है ।

निषेध :-

  • अति मधुर भोजन अग्नि को नष्ट करता है, अत्यंत लवण युक्त भोजन आँखों के हानिकर है, अति तीक्ष्ण,
  • तथा अति अम्ल युक्त भोजन वृद्धावस्था को बढाता है ।
  • दही, मधु , घृत, सत्तू , खीर, कांजी को छोड़कर अन्य आहार द्रव्य को खाते समय थोडा छोड़ देना चाहिए ।
  • पेट दर्द में- घी के साथ मिश्रित हींग, 
  • पुराने ज्वर में- मधु के साथ पीपर , 
  • वातरोग में- घी में भूना लहसुन, 
  • श्वांस रोग में - शहद मिश्रित त्रयूषण ( सोंठ, मिर्च, पीपल ), 
  • शीतरोग में- पान के रस में मिर्च, 
  • प्रमेह रोग में - त्रिफला के साथ गुड, 
  • सन्निपाति रोग में - शहद के साथ अदरक , 
  • ज्वर में - नागरमोथा तथा पित्तपापड़ा , 
  • गृहणी रोग में- मट्टा , गरविष में- स्वर्ण भस्म , उल्टी में - धान का लावा, 
  • अतिसार ( दस्त )में - कुटज , रक्तपित्त में - वासा , 
  • अर्श में - चित्रक , पेट के कीड़ों में - वायविडंग लाभप्रद है ।
  • दही :- दही को रात्रि में , ज्यादा गर्म करके , वर्षा ऋतु में , शरद ऋतु में दही नहीं खाना चाहिए । 
  • विना मूंग की दाल, मधु , घी , गुड के बिना दही नहीं खाना चाहिए ।
  • बिना पूरी जमे दही ना खाएं , रोजाना दही ना खाएं ।
पाठक बंधुओं! हजारों मरीजों को देख कर और न जाने कितने हजार मरीजों से बात करके मुझे एक बात बड़ी शिद्दत से परेशान करती रही कि ज्यादातर बीमारियों का मुख्य कारण गलत खान पान है। अगर हमें इस बात की सही जानकारी हो कि किस चीज के साथ क्या नहीं खाना चाहिए तो हो सकता है कि हम खुद को अनावश्यक रोगों से सुरक्षित रख सकें। इसलिए आप सभी से निवेदन है कि इस लेख को बहुत ध्यान से पढियेगा जिससे इसका लाभ आपको मिल सके। अगर ऎसी ही कुछ जानकारियां आपको हों तो मुझे जरूर बता दीजियेगा।

  • सर्व प्रथम यह जान लीजिये कि कोई भी आयुर्वेदिक दवा खाली पेट खाई जाती है और दवा खाने से आधे घंटे के अंदर कुछ खाना अति आवश्यक होता है, नहीं तो दवा की गरमी आपको बेचैन कर देगी। 
  • दूध और नमक का संयोग सफ़ेद दाग या किसी भी स्किन डीजीज को जन्म दे सकता है, बाल असमय सफ़ेद होना या बाल झड़ना भी स्किन डीजीज ही है। 
  • दूध या दूध की बनी किसी भी चीज के साथ दही, नमक, इमली, खरबूजा, बेल, नारियल, मूली, तोरई, तिल , तेल, कुल्थी, सत्तू, खटाई, नहीं खानी चाहिए। 
  • दही के साथ खरबूजा, पनीर, दूध और खीर नहीं खानी चाहिए। 
  • गर्म जल के साथ शहद कभी नही लेना चाहिए। 
  • ठंडे जल के साथ घी, तेल, खरबूज, अमरूद, ककड़ी, खीरा, जामुन ,मूंगफली कभी नहीं। 
  • शहद के साथ मूली , अंगूर, गरम खाद्य या गर्म जल कभी नहीं। 
  • खीर के साथ सत्तू, शराब, खटाई, खिचड़ी ,कटहल कभी नहीं। 
  • घी के साथ बराबर मात्र1 में शहद भूल कर भी नहीं खाना चाहिए ये तुरंत जहर का काम करेगा
  • तरबूज के साथ पुदीना या ठंडा पानी कभी नहीं। 
  • चावल के साथ सिरका कभी नहीं। 
  • चाय के साथ ककड़ी खीरा भी कभी मत खाएं। 
  • खरबूज के साथ दूध, दही, लहसून और मूली कभी नहीं। 

कुछ चीजों को एक साथ खाना अमृत का काम करता है जैसे-

  1. खरबूजे के साथ चीनी 
  2. इमली के साथ गुड 
  3. गाजर और मेथी का साग
  4. बथुआ और दही का रायता 
  5. मकई के साथ मट्ठा 
  6. अमरुद के साथ सौंफ 
  7. तरबूज के साथ गुड 
  8. मूली और मूली के पत्ते 
  9. अनाज या दाल के साथ दूध या दही 
  10. आम के साथ गाय का दूध
  11. चावल के साथ दही
  12. खजूर के साथ दूध 
  13. चावल के साथ नारियल की गिरी
  14. केले के साथ इलायची 
कभी कभी कुछ चीजें बहुत पसंद होने के कारण हम ज्यादा बहुत ज्यादा खा लेते हैं। और माले मुफ्त दिले बेरहम वाली कहावत तो मशहूर है ही। शादियों में इसका प्रत्यक्ष प्रमाण मैंने अनेक बार देखा है। कुछ लोगो तो बस फ्री में जहर भी मिल जाए तो थाली भर के खायेंगे ……खैर चलिए लेकिन माल भले ही दूसरे का हो पेट आप का ही होता है। और बाद में तकलीफ भी आप को ही होती है। आइये हम कुछ ऎसी चीजो के बारे में बताते हैं जो अगर आपने ज्यादा खा ली हैं तो कैसे पचाई जाएँ --
  • केले की अधिकता में दो छोटी इलायची 
  • आम पचाने के लिए आधा चम्म्च सोंठ का चूर्ण और गुड 
  • जामुन ज्यादा खा लिया तो 3-4 चुटकी नमक 
  • सेब ज्यादा हो जाए तो दालचीनी का चूर्ण एक ग्राम 
  • खरबूज के लिए आधा कप चीनी का शरबत 
  • तरबूज के लिए सिर्फ एक लौंग 
  • अमरूद के लिए सौंफ 
  • नींबू के लिए नमक
  • बेर के लिए सिरका
  • गन्ना ज्यादा चूस लिया हो तो 3-4 बेर खा लीजिये 
  • चावल ज्यादा खा लिया है तो आधा चम्म्च अजवाइन पानी से निगल लीजिये 
  • बैगन के लिए सरसो का तेल एक चम्म्च 
  • मूली ज्यादा खा ली हो तो एक चम्म्च काला तिल चबा लीजिये 
  • बेसन ज्यादा खाया हो तो मूली के पत्ते चबाएं 
  • खाना ज्यादा खा लिया है तो थोड़ी दही खाइये 
  • मटर ज्यादा खाई हो तो अदरक चबाएं 
  • इमली या उड़द की दाल या मूंगफली या शकरकंद या जिमीकंद ज्यादा खा लीजिये तो फिर गुड खाइये 
  • मुंग या चने की दाल ज्यादा खाये हों तो एक चम्म्च सिरका पी लीजिये 
  • मकई ज्यादा खा गये हो तो मट्ठा पीजिये 
  • घी या खीर ज्यादा खा गये हों तो काली मिर्च चबाएं 
  • खुरमानी ज्यादा हो जाए तोठंडा पानी पीयें 
  • पूरी कचौड़ी ज्यादा हो जाए तो गर्म पानी पीजिये 
अगर सम्भव हो तो भोजन के साथ दो नींबू का रस आपको जरूर ले लेना चाहिए या पानी में मिला कर पीजिये या भोजन में निचोड़ लीजिये 80% बीमारियों से बचे रहेंगे। 

किस महीने में क्या नही खाना चाहिए और क्या जरूर खाना चाहिए ---

  1. चैत में गुड बिलकुल नहीं खाना, नीम की पत्ती /फल, फूल खूब चबाना। 
  2. बैसाख में नया तेल नहीं खाना, चावल खूब खाएं। 
  3. जेठ में दोपहर में चलना मना है, दोपहर में सोना जरुरी है। 
  4. आषाढ़ में पका बेल खाना मना है, घर की मरम्मत जरूरी है। 
  5. सावन में साग खाना मना है, हर्रे खाना जरूरी है। 
  6. भादो मे दही मत खाना, चना खाना जरुरी है। 
  7. कुवार में करेला मना है, गुड खाना जरुरी है। 
  8. कार्तिक में जमीन पर सोना मना है, मूली खाना जरूरी है। 
  9. अगहन में जीरा नहीं खाना, तेल खाना जरुरी है। 
  10. पूस में धनिया नहीं खाना, दूध पीना जरूरी है। 
  11. माघ में मिश्री मत खाना, खिचड़ी खाना जरुरी है। 
  12. फागुन में चना मत खाना, प्रातः स्नान और नाश्ता जरुरी है।
    Rajesh Mishra (Trip Trikut Pahad, Jharkhand)

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