Tamarind is a property of Manyइमली के औषधीय गुण
इमली का फल कच्चा हरा, पकने के बाद लाल रंग का हो जाता है। पकी इमली का स्वाद खट्टा-मीठा होता है। इसे खाने के बाद दांत तक खट्टे होने लगते हैं। एक इमली के फल में तीन से लेकर दस बीज निकलते हैं। ये बीज काले, चमकदार व बहुत कड़े होते हैं। इमली का खट्टा-मीठा स्वाद किसी के भी मुंह में देखते ही पानी ला देता है। इसीलिए इमली का उपयोग खाने का स्वाद बढ़ाने के लिए भी किया जाता है। मगर बहुत कम लोग जानते हैं कि इमली सिर्फ टेस्टी ही नहीं है चटखारेदार और मुँह में पानी लाने वाली इमली स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद होती है : राजेश मिश्रा|
वीर्य – पुष्टिकर योग :
इमली के बीज दूध में कुछ देर पकाकर और उसका छिलका उतारकर सफ़ेद गिरी को बारीक पीस ले और घी में भून लें, इसके बाद सामान मात्रा में मिश्री मिलाकर रख लें | इसे प्रातः एवं शाम को 5-5 ग्राम दूध के साथ सेवन करने से वीर्य पुष्ट हो जाता है | बल और स्तम्भन शक्ति बढ़ती है तथा स्व-प्रमेह नष्ट हो जाता है |
शराब एवं भांग का नशा उतारने में :
- नशा समाप्त करने के लिए पकी इमली का गूदा जल में भिगोकर, मथकर, और छानकर उसमें थोड़ा गुड़ मिलाकर पिलाना चाहिए |
- इमली के गूदे का पानी पीने से वमन, पीलिया, प्लेग, गर्मी के ज्वर में भी लाभ होता है |
- ह्रदय की दाहकता या जलन को शान्त करने के लिये पकी हुई इमली के रस (गूदे मिले जल) में मिश्री मिलाकर पिलानी चाहियें |
लू-लगना :
पकी हुई इमली के गूदे को हाथ और पैरों के तलओं पर मलने से लू का प्रभाव समाप्त हो जाता है | यदि इस गूदे का गाढ़ा धोल बालों से रहित सर पर लगा दें तो लू के प्रभाव से उत्पन्न बेहोसी दूर हो जाती है |
चोट – मोच लगना :
इमली की ताजा पत्तियाँ उबालकर, मोच या टूटे अंग को उसी उबले पानी में सेंके या धीरे – धीरे उस स्थान को उँगलियों से हिलाएं ताकि एक जगह जमा हुआ रक्त फ़ैल जाए |
गले की सूजन :
इमली 10 ग्राम को 1 किलो जल में अध्औटा कर (आधा जलाकर) छाने और उसमें थोड़ा सा गुलाबजल मिलाकर रोगी को गरारे या कुल्ला करायें तो गले की सूजन में आराम मिलता है |
खांसी :
टी.बी. या क्षय की खांसी हो (जब कफ़ थोड़ा रक्त आता हो) तब इमली के बीजों को तवे पर सेंक, ऊपर से छिलके निकाल कर कपड़े से छानकर चूर्ण रख ले| इसे 3 ग्राम तक घृत या मधु के साथ दिन में 3-4 बार चाटने से शीघ्र ही खांसी का वेग कम होने लगता है | कफ़ सरलता से निकालने लगता है और रक्तश्राव व् पीला कफ़ गिरना भी समाप्त हो जाता है |
ह्रदय में जलन :
इमली का रस मिश्री के साथ पिलाने से ह्रदय में जलन कम हो जाती है |
नेत्रों में गुहेरी होना :
इमली के बीजों की गिरी पत्थर पर घिसें और इसे गुहेरी पर लगाने से तत्काल ठण्डक पहुँचती है |
चर्मरोग :
लगभग 30 ग्राम इमली (गूदे सहित) को 1 गिलाश पानी में मथकर पीयें तो इससे घाव, फोड़े-फुंसी में लाभ होगा|
उल्टी होने पर पकी इमली को पाने में भिगोयें और इस इमली के रस को पिलाने से उल्टी आनी बंद हो जाती है |
भांग का नशा उतारने में :
नशा उतारने के लिये शीतल जल में इमली को भिगोकर उसका रस निकालकर रोगी को पिलाने से उसका नशा उतर जाएगा |
खूनी बवासीर :
इमली के पत्तों का रस निकालकर रोगी को सेवन कराने से रक्तार्श में लाभ होता है |
शीघ्रपतन :
Tamarind Jam and Morabba : Rajesh Mishra
- लगभग 500 ग्राम इमली 4 दिन के लिए जल में भिगों दे | उसके बाद इमली के छिलके उतारकर छाया में सुखाकर पीस ले | फिर 500 ग्राम के लगभग मिश्री मिलाकर एक चौथाई चाय की चम्मच चूर्ण (मिश्री और इमली मिला हुआ) दूध के साथ प्रतिदिन दो बार लगभग 50 दिनों तक लेने से लाभ होगा |
- लगभग 50 ग्राम इमली, लगभग 500 ग्राम पानी में दो घन्टे के लिए भिगोकर रख दें उसके बाद उसको मथकर मसल लें | इसे छानकर पी जाने से लू लगना, जी मिचलाना, बेचैनी, दस्त, शरीर में जलन आदि में लाभ होता है तथा शराब व् भांग का नशा उतर जाता है |
बहुमूत्र या महिलाओं का सोमरोग :
इमली का गूदा 5 ग्राम रात को थोड़े जल में भिगो दे, दूसरे दिन प्रातः उसके छिलके निकालकर दूध के साथ पीसकर और छानकर रोगी को पिला दे | इससे स्त्री और पुरुष दोनों को लाभ होता है | मूत्र- धारण की शक्ति क्षीण हो गयी हो या मूत्र अधिक बनता हो या मूत्रविकार के कारण शरीर क्षीण होकर हड्डियाँ निकल आयी हो तो इसके प्रयोग से लाभ होगा |
अण्डकोशों में जल भरना :
लगभग 30 ग्राम इमली की ताजा पत्तियाँ को गौमूत्र में औटाये | एकबार मूत्र जल जाने पर पुनः गौमूत्र डालकर पकायें | इसके बाद गरम – गरम पत्तियों को निकालकर किसी अन्डी या बड़े पत्ते पर रखकर सुहाता- सुहाता अंडकोष पर बाँध कपड़े की पट्टी और ऊपर से लगोंट कास दे | सारा पानी निकल जायेगा और अंडकोष पूर्ववत मुलायम हो जायेगें |
पीलिया या पांडु रोग :
इमली के वृक्ष की जली हुई छाल की भष्म 10 ग्राम बकरी के दूध के साथ प्रतिदिन सेवन करने से पान्डु रोग ठीक हो जाता है |
आग से जल जाने पर :
इमली के वृक्ष की जली हुई छाल की भष्म गाय के घी में मिलाकर लगाने से, जलने से पड़े छाले व् घाव ठीक हो जाते है |
पित्तज ज्वर :
इमली 20 ग्राम 100 ग्राम पाने में रात भर के लिए भिगो दे | उसके निथरे हुए जल को छानकर उसमे थोड़ा बूरा मिला दे | 4-5 ग्राम इसबगोल की फंकी लेकर ऊपर से इस जल को पीने से लाभ होता है |
सर्प , बिच्छू आदि का विष :
इमली के बीजों को पत्थर पर थोड़े जल के साथ घिसकर रख ले | दंशित स्थान पर चाकू आदि से छत करके 1 या 2 बीज चिपका दे | वे चिपककर विष चूसने लगेंगे और जब गिर पड़े तो दूसरा बीज चिपका दें | विष रहने तक बीज बदलते रहे |
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