दादी-नानी और पिता-दादाजी के बातों का अनुसरण, संयम बरतते हुए समय के घेरे में रहकर जरा सा सावधानी बरतें तो कभी आपके घर में डॉ. नहीं आएगा. यहाँ पर दिए गए सभी नुस्खे और घरेलु उपचार कारगर और सिद्ध हैं... इसे अपनाकर अपने परिवार को निरोगी और सुखी बनायें.. रसोई घर के सब्जियों और फलों से उपचार एवं निखार पा सकते हैं. उसी की यहाँ जानकारी दी गई है. इस साइट में दिए गए कोई भी आलेख व्यावसायिक उद्देश्य से नहीं है. किसी भी दवा और नुस्खे को आजमाने से पहले एक बार नजदीकी डॉक्टर से परामर्श जरूर ले लें.
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नोट : यहाँ पर प्रस्तुत आलेखों में स्वास्थ्य सम्बन्धी जानकारी को संकलित करके पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करने का छोटा सा प्रयास किया गया है। पाठकों से अनुरोध है कि इनमें बताई गयी दवाओं/तरीकों का प्रयोग करने से पूर्व किसी योग्य चिकित्सक से सलाह लेना उचित होगा।-राजेश मिश्रा

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मंगलवार, दिसंबर 29, 2015

राज की माने तो गेहूं की ज्वारे ही है अमरत्व

गेहूं के ज्वारे की अनगिनत फायदे बता रहे हैं राजेश 
Wheatgrass Juice Benefits Raj

प्रकृति ने हमें अनेक अनमोल नियामतें दी हैं। गेहूं के ज्वारे उनमें से ही प्रकृति की एक अनमोल देन है। अनेक आहार शास्त्रियों ने इसे संजीवनी बूटी भी कहा है, क्योंकि ऐसा कोई रोग नहीं, जिसमें इसका सेवन लाभ नहीं देता हो। यदि किसी रोग से रोगी निराश है तो वह इसका सेवन कर श्रेष्ठ स्वास्थ्य पा सकता है।
गेहूं के जवारों में अनेक अनमोल पोषक तत्व व रोग निवारक गुण पाए जाते हैं, जिससे इसे आहार नहीं वरन्‌ अमृत का दर्जा भी दिया जा सकता है। जवारों में सबसे प्रमुख तत्व क्लोरोफिल पाया जाता है। प्रसिद्ध आहार शास्त्री डॉ. बशर के अनुसार क्लोरोफिल (गेहूंके जवारों में पाया जाने वाला प्रमुख तत्व) को केंद्रित सूर्य शक्ति कहा है। राज की माने तो गेहूं के जवारे रक्त व रक्त संचार संबंधी रोगों, रक्त की कमी, उच्च रक्तचाप, सर्दी, अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, स्थायी सर्दी, साइनस, पाचन संबंधी रोग, पेट में छाले, कैंसर, आंतों की सूजन, दांत संबंधी समस्याओं, दांत का हिलना, मसूड़ों से खून आना, चर्म रोग, एक्जिमा, किडनी संबंधी रोग, सेक्स संबंधी रोग, शीघ्रपतन, कान के रोग, थायराइड ग्रंथि के रोग व अनेक ऐसे रोग जिनसे रोगी निराश हो गया, उनके लिए गेहूं के जवारे अनमोल औषधि हैं। इसलिए कोई भी रोग हो तो वर्तमान में चल रही चिकित्सा पद्धति के साथ-साथ इसका प्रयोग कर आशातीत लाभ प्राप्त किया जा सकता है।
राज की माने तो हिमोग्लोबिन रक्त में पाया जाने वाला एक प्रमुख घटक है। हिमोग्लोबिन में हेमिन नामक तत्व पाया जाता है। रासायनिक रूप से हिमोग्लोबिन व हेमिन में काफी समानता है। हिमोग्लोबिन व हेमिन में कार्बन, ऑक्सीजन, हाइड्रोजन व नाइट्रोजन के अणुओं की संख्या व उनकी आपस में संरचना भी करीब-करीब एक जैसी होती है। हिमोग्लोबिन व हेमिन की संरचना में केवल एक ही अंतर होता है कि क्लोरोफिल के परमाणु केंद्र में मैग्नेशियम, जबकि हेमिन के परमाणु केंद्र में लोहा स्थित होता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि हिमोग्लोबिन व क्लोरोफिल में काफी समानता है और इसीलिए गेहूं के जवारों को हरा रक्त कहना भी कोई अतिशयोक्ति नहीं है।
राज की माने तो गेहूं के जवारों में रोग निरोधक व रोग निवारक शक्ति पाई जाती है। कई आहार शास्त्री इसे रक्त बनाने वाला प्राकृतिक परमाणु कहते हैं। गेहूं के जवारों की प्रकृति क्षारीय होती है, इसीलिए ये पाचन संस्थान व रक्त द्वारा आसानी से अधिशोषित हो जाते हैं। यदि कोई रोगी व्यक्ति वर्तमान में चल रही चिकित्सा के साथ-साथ गेहूं के जवारों का प्रयोग करता है तो उसे रोग से मुक्ति में मदद मिलती है और वह बरसों पुराने रोग से मुक्ति पा जाता है।
यहां एक रोग से ही मुक्ति नहीं मिलती है वरन अनेक रोगों से भी मुक्ति मिलती है, साथ ही यदि कोई स्वस्थ व्यक्ति इसका सेवन करता है तो उसकी जीवनशक्ति में अपार वृद्धि होती है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि गेहूं के जवारे से रोगी तो स्वस्थ होता ही है किंतु सामान्य स्वास्थ्य वाला व्यक्ति भी अपार शक्ति पाता है। इसका नियमित सेवन करने से शरीर में थकान तो आती ही नहीं है।
यदि किसी असाध्य रोग से पीड़ित व्यक्ति को गेहूं के जवारों का प्रयोग कराना है तो उसकी वर्तमान में चल रही चिकित्सा को बिना बंद किए भी गेहूं के जवारों का सेवन कराया जा सकता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि कोई चिकित्सा पद्धति गेहूं के जवारों के प्रयोग में आड़े नहीं आती है, क्योंकि गेहूं के जवारे औषधि ही नहीं वरन श्रेष्ठ आहार भी है।

गेहूँ के ज्वारे उगाने की विधि::

मिट्टी के नये खप्पर, कुंडे या सकोरे लें। उनमें खाद मिली मिट्टी लें। रासायनिक खाद का उपयोग बिलकुल न करें। पहले दिन कुंडे की सारी मिट्टी ढँक जाये इतने गेहूँ बोयें। पानी डालकर कुंडों को छाया में रखें। सूर्य की धूप कुंडों को अधिक या सीधी न लग पाये इसका ध्यान रखें।
इसी प्रकार दूसरे दिन दूसरा कुंडा या मिट्टी का खप्पर बोयें और प्रतिदिन एक बढ़ाते हुए नौवें दिन नौवां कुंडा बोयें। सभी कुंडों को प्रतिदिन पानी दें। नौवें दिन पहले कुंडे में उगे गेहूँ काटकर उपयोग में लें। खाली हो चुके कुंडे में फिर से गेहूँ उगा दें। इसी प्रकार दूसरे दिन दूसरा, तीसरे दिन तीसरा करते चक्र चलाते जायें। इस प्रक्रिया में भूलकर भी प्लास्टिक के बर्तनों का उपयोग कदापि न करें।
प्रत्येक कुटुम्ब अपने लिए सदैव के उपयोगार्थ 10, 20, 30 अथवा इससे भी अधिक कुंडे रख सकता है। प्रतिदिन व्यक्ति के उपयोग अनुसार एक, दो या अधिक कुंडे में गेहूँ बोते रहें। मध्याह्न के सूर्य की सख्त धूप न लगे परन्तु प्रातः अथवा सायंकाल का मंद ताप लगे ऐसे स्थान में कुंडों को रखें।
सामान्यतया आठ-दस दिन नें गेहूँ के ज्वारे पाँच से सात इंच तक ऊँचे हो जायेंगे। ऐसे ज्वारों में अधिक से अधिक गुण होते हैं। ज्यो-ज्यों ज्वारे सात इंच से अधिक बड़े होते जायेंगे त्यों-त्यों उनके गुण कम होते जायेंगे। अतः उनका पूरा-पूरा लाभ लेने के लिए सात इंच तक बड़े होते ही उनका उपयोग कर लेना चाहिए।
ज्वारों की मिट्टी के धरातल से कैंची द्वारा काट लें अथवा उन्हें समूल खींचकर उपयोग में ले सकते हैं। खाली हो चुके कुंडे में फिर से गेहूँ बो दीजिये। इस प्रकार प्रत्येक दिन गेहूँ बोना चालू रखें।

बनाने की विधि::

जब समय अनुकूल हो तभी ज्वारे काटें। काटते ही तुरन्त धो डालें। धोते ही उन्हें कूटें। कूटते ही उन्हें कपड़े से छान लें।
इसी प्रकार उसी ज्वारे को तीन बार कूट-कूट कर रस निकालने से अधिकाधिक रस प्राप्त होगा। चटनी बनाने अथवा रस निकालने की मशीनों आदि से भी रस निकाला जा सकता है। रस को निकालने के बाद विलम्ब किये बिना तुरन्त ही उसे धीरे-धीरें पियें। किसी सशक्त अनिवार्य कारण के अतिररिक्त एक क्षण भी उसको पड़ा न रहने दें, कारण कि उसका गुण प्रतिक्षण घटने लगता है और तीन घंटे में तो उसमें से पोषक तत्व ही नष्ट हो जाता है। प्रातःकाल खाली पेट यह रस पीने से अधिक लाभ होता है।
दिन में किसी भी समय ज्वारों का रस पिया जा सकता है। परन्तु रस लेने के आधा घंटा पहले और लेने के आधे घंटे बाद तक कुछ भी खाना-पीना न चाहिए। आरंभ में कइयों को यह रस पीने के बाद उबकाई आती है, उलटी हो जाती है अथवा सर्दी हो जाती है। परंतु इससे घबराना न चाहिए। शरीर में कितने ही विष एकत्रित हो चुके हैं यह प्रतिक्रिया इसकी निशानी है। सर्दी, दस्त अथवा उलटी होने से शरीर में एकत्रित हुए वे विष निकल जायेंगे।
ज्वारों का रस निकालते समय मधु, अदरक, नागरबेल के पान (खाने के पान) भी डाले जा सकते हैं। इससे स्वाद और गुण का वर्धन होगा और उबकाई नहीं आयेगी। विशेषतया यह बात ध्यान में रख लें कि ज्वारों के रस में नमक अथवा नींबू का रस तो कदापि न डालें।
रस निकालने की सुविधा न हो तो ज्वारे चबाकर भी खाये जा सकते हैं। इससे दाँत मसूढ़े मजबूत होंगे। मुख से यदि दुर्गन्ध आती हो तो दिन में तीन बार थोड़े-थोड़े ज्वारे चबाने से दूर हो जाती है। दिन में दो या तीन बार ज्वारों का रस लीजिये।

रामबाण इलाज

अमेरिका में जीवन और मरण के बीच जूझते रोगियों को प्रतिदिन चार बड़े गिलास भरकर ज्वारों का रस दिया जाता है। जीवन की आशा ही जिन रोगियों ने छोड़ दी उन रोगियों को भी तीन दिन या उससे भी कम समय में चमत्कारिक लाभ होता देखा गया है। ज्वारे के रस से रोगी को जब इतना लाभ होता है, तब नीरोग व्यक्ति ले तो कितना अधिक लाभ होगा?

सस्ता और सर्वोत्तमः

ज्वारों का रस दूध, दही और मांस से अनेक गुना अधिक गुणकारी है। दूध और मांस में भी जो नहीं है उससे अधिक इस ज्वारे के रस में है। इसके बावजूद दूध, दही और मांस से बहुत सस्ता है। घर में उगाने पर सदैव सुलभ है। गरीब से गरीब व्यक्ति भी इस रस का उपयोग करके अपना खोया स्वास्थ्य फिर से प्राप्त कर सकता है। गरीबों के लिए यह ईश्वरीय आशीर्वाद है। नवजात शिशु से लेकर घर के छोटे-बड़े, अबालवृद्ध सभी ज्वारे के रस का सेवन कर सकते हैं। नवजात शिशु को प्रतिदिन पाँच बूँद दी जा सकती है।
ज्वारे के रस में लगभग समस्त क्षार और विटामिन उपलब्ध हैं। इसी कारण से शरीर मे जो कुछ भी अभाव हो उसकी पूर्ति ज्वारे के रस द्वारा आश्चर्यजनक रूप से हो जाती है। इसके द्वारा प्रत्येक ऋतु में नियमित रूप से प्राणवायु, खनिज, विटामिन, क्षार और शरीरविज्ञान में बताये गये कोषों को जीवित रखने से लिए आवश्यक सभी तत्त्व प्राप्त किये जा सकते हैं।
डॉक्टर की सहायता के बिना गेहूँ के ज्वारों का प्रयोग आरंभ करो और खोखले हो चुके शरीर को मात्र तीन सप्ताह में ही ताजा, स्फूर्तिशील एवं तरावटदार बना दो।
आश्रम में ज्वारों के रस के सेवन के प्रयोग किये गये हैं। कैंसर जैसे असाध्य रोग मिटे हैं। शरीर ताम्रवर्णी और पुष्ट होते पाये गये हैं।
आरोग्यता के लिए भाँति-भाँति की दवाइयों में पानी की तरह पैसे बहाना करें। इस सस्ते, सुलभ तथापि अति मूल्यवान प्राकृतिक अमृत का सेवन करें और अपने तथा कुटुंब के स्वास्थ्य को बनाये रखकर सुखी रहें।

सावधानी ::

गेहूँ के जवारों का रस निकालने के पश्चात अधिक समय तक नहीं रखना चाहिए अन्यथा उसके पोषक तत्व समय बीतने के साथ-साथ नष्ट हो जाते हैं, क्योंकि गेहूँ के जवारों में पोषक तत्व सुरक्षित रहने का समय मात्र ३ घंटे है। गेहूँ के जवारों को जितना ताजा प्रयोग किया जाता है , उतना ही अधिक उसका स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होता है। इसका सेवन प्रारंभ करते समय कुछ लोगों को दस्त, उल्टी, जी घबराना व अन्य लक्षण प्रकट हो सकते हैं, किंतु उन लक्षणों से घबराने की आवश्यकता नहीं है, आवश्यकता है केवल इसकी मात्रा को कम या कुछ समय के लिए इसका सेवन बंद कर सकते हैं।

हमारी सेहत के लिए प्रकृति की अनेक चीजें अनमोल हैं। उन्हीं में से एक है ह्वीट जूस यानी गेहूं के ज्वारे का रस। विशेषज्ञों के अनुसार इसमें मौजूद क्लोरोफिल, एमिनो एसिड, मिनरल और विटामिन हमें कई घातक बीमारियों से बचाते हैं। वहीं यह कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी से लड़ने में भी मददगार है। हाल ही में हुए एक शोध में यह बात सिद्ध हो गई है कि ट्यूमर के इलाज में भी यह घास कारगर है। इस घास को उगाना भी बेहद आसान है। आप इसे अपने घर के किसी भी गमले में बो दीजिए और हफ्ते भर में इसके जूस का सेवन करना शुरू कर दीजिए। इसके जूस को कच्चा या दूसरे जूस के साथ मिला कर पिया जा सकता है।

लाल रक्त कणिकाओं को बढ़ाए

यह न सिर्फ लाल रक्त कोशिकाओं को बढ़ाता है, बल्कि रक्तचाप को भी नियंत्रित करता है। साथ ही यह शरीर के मेटाबॉलिज्म को सही रखता है। खून साफ रखने और गैस की समस्या दूर करने के साथ शरीर के दूसरे अंगों को भी साफ करता है। यह थाइरॉएड, ग्लैंड, मोटापे और अपच जैसी समस्याओं से भी छुटकारा दिलाता है। गेहूं के ज्वार का जूस खून में एसिड की मात्रा को भी नियंत्रित रखता है। साथ ही अंदरूनी समस्याओं जैसे पेप्टिक अल्सर, कब्ज, डायरिया और आंत संबंधी समस्याओं से भी यह निजात दिलाता है।

रक्त को करता है शुद्ध

यह एक बेहतर डिटॉक्सिफायर है, जो रक्त को शुद्ध रखता है। इसमें मौजूद एंजाइम और एमीनो-एसिड कैंसर जैसी बीमारी से हमें सुरक्षा प्रदान करते हैं, जो दूसरे खाद्य पदार्थ व दवाएं नहीं कर पाते। हाल ही में एक शोध में यह बात सामने आई है कि यह जूस ट्यूमर से लड़ने में मदद करता है, वह भी बिना किसी दुष्प्रभाव के। इसमें मौजूद कई एंजाइम्स हमारे शरीर को हील-अप करने में मदद करते हैं।

कैसे करें इसका इस्तेमाल

इसका प्रयोग कच्चे जूस के रूप में करना चाहिए। इसे पकाने के बाद इसके लगभग सौ फीसदी एंजाइम खत्म हो जाते हैं। इसमें मौजूद क्लोरोफिल हमारे शरीर में खून की मात्रा बढ़ा कर शरीर की कोशिकाओं को बेहतर ऑक्सीजन सप्लाई करता है। त्वचा पर लगाने से खुजली जैसी समस्या से छुटकारा मिलता है।

खूबसूरती निखारने में भी सहायक

अगर आप सनबर्न से परेशान हैं तो इसका नियमित सेवन करें। कुछ ही दिनों में फर्क महसूस करने लगेंगे। बालों के झड़ने व सिर की त्वचा में खुजली जैसी समस्याओं से भी दूर रखने में यह मदद करता है। यह बालों को प्राकृतिक रंग प्रदान करता है। यह एजिंग प्रक्रिया को कम कर सुंदर दिखने में मदद करता है। गेहूं के ज्वारे का जूस त्वचा को कसा हुआ और चमकदार बनाता है।

पाएं अनिद्रा की परेशानी से निजात

अनिद्रा से परेशान हैं तो इस जूस को एक ट्रे में अपने सिरहाने रख कर सो जाएं। यह हवा को शुद्ध करता है, जिससे आपको अच्छी नींद आती है। हर रोज इसका सेवन शरीर के ऊर्जा स्तर को भी बढमता है। इससे तनाव भी दूर होता है।

नहीं बनने देती कैंसर की कोशिकाएं

शरीर में मौजूद ऑक्सीजन का 25 फीसदी हिस्सा मस्तिष्क इस्तेमाल करता है, इसलिए ऑक्सीजन को शरीर का मुख्य अंग माना जाता है। ऑक्सीजन की सही मात्रा के कारण शरीर में कैंसर की कोशिकाएं भी नहीं बनतीं। इस जूस में ऑक्सीजन की भरपूर मात्रा होती है, इसलिए यह शरीर और दिमाग दोनों के लिए फायदेमंद है।

नेचुरल एनर्जी बूस्टर

Rajesh Mishra (Rajasthan Tour)

यह हार्ट अटैक, रेडिएशन इफेक्ट से भी सुरक्षा देता है। यह जूस आपको हेल्दी रखने के साथ कई रोगों से छुटकारा दिलाता है। कह सकते हैं कि यह जूस भागदौड़ की इस जिंदगी में नेचुरल एनर्जी बूस्टर है।

शुक्रवार, दिसंबर 25, 2015

BENEFITS OF TULSI

वरदान है तुलसी : इस दिव्य पौधे के फायदे अनगिनत हैं : राज BENEFITS OF TULSI !!

 

ज्यादातर हिंदू परिवारों में तुलसी की पूजा की जाती है. इसे सुख और कल्याण के तौर पर देखा जाता है लेकिन पौराणिक महत्व से अलग तुलसी एक जानी-मानी औषधि भी है, जिसका इस्तेमाल कई बीमारियों में किया जाता है. सर्दी-खांसी से लेकर कई बड़ी और भयंकर बीमारियों में भी एक कारगर औषधि है. भारतीय संस्कृति में तुलसी के पौधे का बहुत महत्व है और इस पौधे को बहुत पवित्र माना जाता है। ऎसा माना जाता है कि जिस घर में तुलसी का पौधा नहीं होता उस घर में भगवान भी रहना पसंद नहीं करते। माना जाता है कि घर के आंगन में तुलसी का पौधा लगा कलह और दरिद्रता दूर करता है। इसे घर के आंगन में स्थापित कर सारा परिवार सुबह-सवेरे इसकी पूजा-अर्चना करता है। यह मन और तन दोनों को स्वच्छ करती है। इसके गुणों के कारण इसे पूजनीय मानकर उसे देवी का दर्जा दिया जाता है। तुलसी केवल हमारी आस्था का प्रतीक भर नहीं है। इस पौधे में पाए जाने वाले औषधीय गुणों के कारण आयुर्वेद में भी तुलसी को महत्वपूर्ण माना गया है। भारत में सदियों से तुलसी का इस्तेमाल होता चला आ रहा है।

* लिवर (यकृत) संबंधी समस्या: तुलसी की 10-12 पत्तियों को गर्म पानी से धोकर रोज सुबह खाएं। लिवर की समस्याओं में यह बहुत फायदेमंद है।

* पेटदर्द होना: एक चम्मच तुलसी की पिसी हुई पत्तियों को पानी के साथ मिलाकर गाढा पेस्ट बना लें। पेटदर्द होने पर इस लेप को नाभि और पेट के आस-पास लगाने से आराम मिलता है।

* पाचन संबंधी समस्या : पाचन संबंधी समस्याओं जैसे दस्त लगना, पेट में गैस बनना आदि होने पर एक ग्लास पानी में 10-15 तुलसी की पत्तियां डालकर उबालें और काढा बना लें। इसमें चुटकी भर सेंधा नमक डालकर पीएं।

* बुखार आने पर : दो कप पानी में एक चम्मच तुलसी की पत्तियों का पाउडर और एक चम्मच इलायची पाउडर मिलाकर उबालें और काढा बना लें। दिन में दो से तीन बार यह काढा पीएं। स्वाद के लिए चाहें तो इसमें दूध और चीनी भी मिला सकते हैं।

* खांसी-जुकाम : करीब सभी कफ सीरप को बनाने में तुलसी का इस्तेमाल किया जाता है। तुलसी की पत्तियां कफ साफ करने में मदद करती हैं। तुलसी की कोमल पत्तियों को थोडी- थोडी देर पर अदरक के साथ चबाने से खांसी-जुकाम से राहत मिलती है। चाय की पत्तियों को उबालकर पीने से गले की खराश दूर हो जाती है। इस पानी को आप गरारा करने के लिए भी इस्तेमाल कर सकते हैं।

* सर्दी से बचाव : बारिश या ठंड के मौसम में सर्दी से बचाव के लिए तुलसी की लगभग 10-12 पत्तियों को एक कप दूध में उबालकर पीएं। सर्दी की दवा के साथ-साथ यह एक न्यूट्रिटिव ड्रिंक के रूप में भी काम करता है। सर्दी जुकाम होने पर तुलसी की पत्तियों को चाय में उबालकर पीने से राहत मिलती है। तुलसी का अर्क तेज बुखार को कम करने में भी कारगर साबित होता है।

* श्वास की समस्या : श्वास संबंधी समस्याओं का उपचार करने में तुलसी खासी उपयोगी साबित होती है। शहद, अदरक और तुलसी को मिलाकर बनाया गया काढ़ा पीने से ब्रोंकाइटिस, दमा, कफ और सर्दी में राहत मिलती है। नमक, लौंग और तुलसी के पत्तों से बनाया गया काढ़ा इंफ्लुएंजा (एक तरह का बुखार) में फौरन राहत देता है।

* गुर्दे की पथरी : तुलसी गुर्दे को मजबूत बनाती है। यदि किसी के गुर्दे में पथरी हो गई हो तो उसे शहद में मिलाकर तुलसी के अर्क का नियमित सेवन करना चाहिए। छह महीने में फर्क दिखेगा।

* हृदय रोग : तुलसी खून में कोलेस्ट्राल के स्तर को घटाती है। ऐसे में हृदय रोगियों के लिए यह खासी कारगर साबित होती है।

* तनाव : तुलसी की पत्तियों में तनाव रोधीगुण भी पाए जाते हैं। तनाव को खुद से दूर रखने के लिए कोई भी व्यक्ति तुलसी के 12 पत्तों का रोज दो बार सेवन कर सकता है।

* मुंह का संक्रमण : अल्सर और मुंह के अन्य संक्रमण में तुलसी की पत्तियां फायदेमंद साबित होती हैं। रोजाना तुलसी की कुछ पत्तियों को चबाने से मुंह का संक्रमण दूर हो जाता है।

* त्वचा रोग : दाद, खुजली और त्वचा की अन्य समस्याओं में तुलसी के अर्क को प्रभावित जगह पर लगाने से कुछ ही दिनों में रोग दूर हो जाता है। नैचुरोपैथों द्वारा ल्यूकोडर्मा का इलाज करने में तुलसी के पत्तों को सफलता पूर्वक इस्तेमाल किया गया है। तुलसी की ताजा पत्तियों को संक्रमित त्वचा पर रगडे। इससे इंफेक्शन ज्यादा नहीं फैल पाता।

* सांसों की दुर्गध : तुलसी की सूखी पत्तियों को सरसों के तेल में मिलाकर दांत साफ करने से सांसों की दुर्गध चली जाती है। पायरिया जैसी समस्या में भी यह खासा कारगर साबित होती है।

* सिर का दर्द : सिर के दर्द में तुलसी एक बढि़या दवा के तौर पर काम करती है। तुलसी का काढ़ा पीने से सिर के दर्द में आराम मिलता है।

* आंखों की समस्या : आंखों की जलन में तुलसी का अर्क बहुत कारगर साबित होता है। रात में रोजाना श्यामा तुलसी के अर्क को दो बूंद आंखों में डालना चाहिए।

* कान में दर्द : तुलसी के पत्तों को सरसों के तेल में भून लें और लहसुन का रस मिलाकर कान में डाल लें। दर्द में आराम मिलेगा।

* ब्लड-प्रेशर को सामान्य रखने के लिए तुलसी के पत्तों का सेवन करना चाहिए।

* तुलसी के पांच पत्ते और दो काली मिर्च मिलाकर खाने से वात रोग दूर हो जाता है।

* कैंसर रोग में तुलसी के पत्ते चबाकर ऊपर से पानी पीने से काफी लाभ मिलता है।

* तुलसी तथा पान के पत्तों का रस बराबर मात्रा में मिलाकर देने से बच्चों के पेट फूलने का रोग समाप्त हो जाता है।

* तुलसी का तेल विटामिन सी, कैल्शियम और फास्फोरस से भरपूर होता है।

* तुलसी का तेल मक्खी- मच्छरों को भी दूर रखता है।

* बदलते मौसम में चाय बनाते हुए हमेशा तुलसी की कुछ पत्तियां डाल दें। वायरल से बचाव रहेगा।

* शहद में तुलसी की पत्तियों के रस को मिलाकर चाटने से चक्कर आना बंद हो जाता है।

* तुलसी के बीज का चूर्ण दही के साथ लेने से खूनी बवासीर में खून आना बंद हो जाता है।

* तुलसी के बीजों का चूर्ण दूध के साथ लेने से नपुंसकता दूर होती है और यौन-शक्ति में वृध्दि होती है।

रोज सुबह तुलसी की पत्तियों के रस को एक चम्मच शहद के साथ मिलाकर पीने से स्वास्थ्य बेहतर बना रहता है। तुलसी की केवल पत्तियां ही लाभकारी नहीं होती। तुलसी के पौधे पर लगने वाले फल जिन्हें आमतौर पर मंजर कहते हैं, पत्तियों की तुलना में कहीं अघिक फायदेमंद होता है। विभिन्न रोगों में दवा और काढे के रूप में तुलसी की पत्तियों की जगह मंजर का उपयोग भी किया जा सकता है। इससे कफ द्वारा पैदा होने वाले रोगों से बचाने वाला और शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने वाला माना गया है। 

किंतु जब भी तुलसी के पत्ते मुंह में रखें, उन्हें दांतों से न चबाकर सीधे ही निगल लें। इसके पीछे का विज्ञान यह है कि तुलसी के पत्तों में धातु के अंश होते हैं। जो चबाने पर बाहर निकलकर दांतों की सुरक्षा परत को नुकसान पहुंचाते हैं। जिससे दंत और मुख रोग होने का खतरा बढ़ जाता है।

तुलसी का पौधा मलेरिया के कीटाणु नष्ट करता है। नई खोज से पता चला है इसमें कीनोल, एस्कार्बिक एसिड, केरोटिन और एल्केलाइड होते हैं। तुलसी पत्र मिला हुआ पानी पीने से कई रोग दूर हो जाते हैं। इसीलिए चरणामृत में तुलसी का पत्ता डाला जाता है। तुलसी के स्पर्श से भी रोग दूर होते हैं। तुलसी पर किए गए प्रयोगों से सिद्ध हुआ है कि रक्तचाप और पाचनतंत्र के नियमन में तथा मानसिक रोगों में यह लाभकारी है। इससे रक्तकणों की वृद्धि होती है। तुलसी ब्रह्मचर्य की रक्षा करने एवं यह त्रिदोषनाशक है।

आयुर्वेद में तुलसी के पौधे के हर भाग को स्वास्थ्य के लिहाज से फायदेमंद बताया गया है. तुलसी की जड़, उसकी शाखाएं, पत्ती और बीज सभी का अपना-अपना महत्व है. आमतौर पर घरों में दो तरह की तुलसी देखने को मिलती है. एक जिसकी पत्त‍ियों का रंग थोड़ा गहरा होता है औ दूसरा जिसकी पत्तियों का रंग हल्का होता है.

यौन-रोगों की दवाइयां बनाने में तुलसी खास तौर पर इस्तेमाल की जाती है. तुलसी के कुछ अनदेखे फायदे इस प्रकार हैं: 

1. यौन रोगों के इलाज में
पुरुषों में शारीरिक कमजोरी होने पर तुलसी के बीज का इस्तेमाल काफी फायदेमंद होता है. इसके अलावा यौन-दुर्बलता और नपुंसकता में भी इसके बीज का नियमित इस्तेमाल फायदेमंद रहता है.

2. अनियमित पीरियड्स की समस्या में
अक्सर महिलाओं को पीरियड्स में अनियमितता की शिकायत हो जाती है. ऐसे में तुलसी के बीज का इस्तेमाल करना फायदेमंद होता है. मासिक चक्र की अनियमितता को दूर करने के लिए तुलसी के पत्तों का भी नियमित किया जा सकता है.

3. सर्दी में खास
अगर आपको सर्दी या फिर हल्का बुखार है तो मिश्री, काली मिर्च और तुलसी के पत्ते को पानी में अच्छी तरह से पकाकर उसका काढ़ा पीने से फायदा होता है. आप चाहें तो इसकी गोलियां बनाकर भी खा सकते हैं.

4. दस्त होने पर
अगर आप दस्त से परेशान हैं तो तुलसी के पत्तों का इलाज आपको फायदा देगा. तुलसी के पत्तों को जीरे के साथ मिलाकर पीस लें. इसके बाद उसे दिन में 3-4 बार चाटते रहें. ऐसा करने से दस्त रुक जाती है.

5. सांस की दुर्गंध दूर करने के लिए
सांस की दु्र्गंध को दूर करने में भी तुलसी के पत्ते काफी फायदेमंद होते हैं और नेचुरल होने की वजह से इसका कोई साइडइफेक्ट भी नहीं होता है. अगर आपके मुंह से बदबू आ रही हो तो तुलसी के कुछ पत्तों को चबा लें. ऐसा करने से दुर्गंध चली जाती है.

6. चोट लग जाने पर
अगर आपको कहीं चोट लग गई हो तो तुलसी के पत्ते को फिटकरी के साथ मिलाकर लगाने से घाव जल्दी ठीक हो जाता है. तुलसी में एंटी-बैक्टीरियल तत्व होते हैं जो घाव को पकने नहीं देता है. इसके अलावा तुलसी के पत्ते को तेल में मिलाकर लगाने से जलन भी कम होती है.

7. चेहरे की चमक के लिए
त्वचा संबंधी रोगों में तुलसी खासकर फायदेमंद है. इसके इस्तेमाल से कील-मुहांसे खत्म हो जाते हैं और चेहरा साफ होता है.

8. कैंसर के इलाज में 
कई शोधों में तुलसी के बीज को कैंसर के इलाज में भी कारगर बताया गया है . हालांकि अभी तक इसकी पुष्ट‍ि नहीं हुई है.

गुरुवार, दिसंबर 17, 2015

यूरिक एसिड से बचने का घरेलु उपाय

यूरिक एसिड से छुटकारा पाने का
राज का अचूक उपाय 

Uric Acid Home Treatment
शरीर में यूरिक एसिड प्‍यूरिन के टूटने से बनता है। इसकी ज्‍यादा मात्रा शरीर के लिए नुकसानदेह होती है। इसलिए यूरिक एसिड की मात्रा को नियंत्रित करना आवश्‍यक होता है। अगर कभी आपके पैरों उंगलियों, टखनों और घुटनों में दर्द हो तो इसे मामूली थकान की वजह से होने वाला दर्द समझ कर अनदेखा न करें यह आपके शरीर में यूरिक एसिड बढ़ने का लक्षण हो सकता है। इस स्वास्थ्य समस्या को गाउट आर्थराइट्सि कहा जाता है। यूरिक एसिड लेवल को ठीक करने के लिए डाक्टर बीफ रोल से दूर रहने और हरी सब्जियां, बंदगोभी और हाई फाइबर फूड की सलाह देते हैं। ... अजवाइन के बीज का अर्क: गठिया और यूरिक एसिड की समस्या का यह एक प्रसिद्ध प्राकृतिक उपचार है।

क्यों होता है ऐसा

1. यह समस्या शरीर में प्रोटीन की अधिकता के कारण होती है। प्रोटीन एमिनो एसिड के संयोजन से बना होता है। पाचन की प्रक्रिया के दौरान जब प्रोटीन टूटता है तो शरीर में यूरिक एसिड बनता है, जो कि एक तरह का एंटी ऑक्सीडेंट होता है। आमतौर सभी के शरीर में सीमित मात्रा में यूरिक एसिड का होना सेहत के लिए फायदेमंद साबित होता है, लेकिन जब इसकी मात्रा बढ़ जाती है तो रक्त प्रवाह के जरिये पैरों की उंगलियों, टखनों, घुटने, कोहनी, कलाइयों और हाथों की उंगलियों के जोड़ों में इसके कण जमा होने लगते हैं और इसी के रिएक्शन से जोड़ों में दर्द और सूजन होने लगता है।

2. यह आधुनिक अव्यवस्थित जीवनशैली से जुड़ी स्वास्थ्य समस्या है। इसी वजह से 25 से 40 वर्ष के युवा पुरुषों में यह समस्या सबसे अधिक देखने को मिलती है। स्त्रियों में अमूमन यह समस्या 50 वर्ष की उम्र के बाद देखने को मिलती है।
3. रेड मीट, सी फूड, रेड वाइन, प्रोसेस्ड चीज, दाल, राजमा, मशरूम, गोभी, टमाटर, पालक आदि के अधिक मात्रा में सेवन से भी यूरिक एसिड बढ़ जाता है।
4.अधिक उपवास या क्रैश डाइटिंग से भी यह समस्या बढ़ जाती है।
5. आमतौर पर किडनी रक्त में मौजूद यूरिक एसिड की अतिरिक्त मात्रा को यूरिन के जरिये बाहर निकाल देती है, लेकिन जिन लोगों की किडनी सही ढंग से काम नहीं कर रही होती, उनके शरीर में भी यूरिक एसिड बढ़ जाता है।
6.अगर व्यक्ति की किडनी भीतरी दीवारों की लाइनिंग क्षतिग्रस्त हो तो ऐसे में यूरिक एसिड बढ़ने की वजह से किडनी में स्टोन भी बनने लगता है।

बचाव

1. अधिक से अधिक मात्रा में पानी पीने की कोशिश करें। इससे रक्त में मौजूद अतिरिक्त यूरिक एसिड यूरिन के जरिये शरीर से बाहर निकल जाता है।

2. दर्द वाले स्थान पर कपड़े में लपेटकर बर्फ की सिंकाई फायदेमंद साबित होती है।
3. संतुलित आहार लें- जिसमें, कार्बोहइड्रेट, प्रोटीन, फैट, विटमिन और मिनरल्स सब कुछ सीमित और संतुलित मात्रा में होना चाहिए। आम तौर पर शाकाहारी भारतीय भोजन संतुलित होता है और उसमें ज्यादा फेर-बदल की जरूरत नहीं होती।
4. नियमित एक्सराइज इस समस्या से बचने का सबसे आसान उपाय है क्योंकि इससे शरीर में अतिरिक्त प्रोटीन जमा नहीं हो पाता।
5. इस समस्या से ग्रस्त लोगों को नियमित रूप से दवाओं का सेवन करते हुए, हर छह माह के अंतराल पर यूरिक एसिड की जांच करानी चाहिए।

मंगलवार, दिसंबर 15, 2015

मालिश करें ,स्वस्थ रहें

सर्दी के मौसम में त्वचा की देखभाल

सर्दियों में त्वचा की मुख्या समस्या है रूखापन जो वात बढ़ने से होता है. इसके लिए तेल से मालिश सबसे उत्तम उपाय है. सर्दियों में तेल मालिश करने का बड़ा महत्त्व है .तेल घर पर बनायें और दिन में एक बार मालिश करने से अनेकानेक विकार (विशेषकर वातविकार ) निकल जातें है .

तेल बनाने की विधि है

तिल का तेल पाँच सौ ग्राम में 50 ग्राम अदरक , 50 ग्राम लहशुन, 50 ग्राम अजवायन पका लें .कपडे से छान कर बोतल में रखे.

इस तेल से मालिश करें ,स्वस्थ रहें.

  • साबुन की बजाय उबटन का प्रयोग करें . 
  • सरसों का तेल मालिश करने पर शरीर के रक्त संचार को बढ़ाता है। थकान दूर करता है। सर्दियों में इस तेल की मालिश लाभदायक है। 
  • सरसों के तेल को पैर के तलुओं में मालिश से थकान तुरंत मिटती है तथा नेत्रज्योति बढ़ती है। 
  • चर्म रोग पर सरसों का तेल, आक का तेल, हल्दी डाल कर गर्म करें। ठंडा हो जाने पर लगायें। 
  • सरसों का तेल नियमित रूप से बालों पर लगाते रहने से बाल समय से पहले सफेद नहीं होते। 
  • बच्चों या बड़ों को जुकाम हो जाये, तो तेल में लहसुन पका कर तेल वापस थोड़ा ठंडा होने पर सीने पर मालिश करें। सर्दी-जुकाम ठीक हो जाता है।
  • राई का तेल निमोनिया रोग से बचाव करता है। इस तेल की हल्की-हल्की मालिश कर के गुनगुनी धूप लें। इस तरह नियमित रूप से करने पर निमोनिया में फायदा होता है।
  • आंवले के तेल में विटामिन सी और आयरन होता है, जो बालों के लिए पोषक है। बालों के लिए आंवले का तेल बहुत अच्छा है.
  • एरंड का तेल लगाने से त्वचा का रंग साफ होता है।
  • अलसी के तेल में में विटामिन ई होता है।
  • सर्दी के मौसम में जैतून के तेल से शरीर की मालिश करें, तो ठंड का एहसास नहीं होता। इससे चेहरे की मालिश भी कर सकते हैं। चेहरे की सुंदरता एवं कोमलता बनाये रखेगा। यह सूखी त्वचा के लिए उपयोगी है।
  • सरसो के तेल में विटामिन ई भरपूर मात्रा में होता है जिस वजह से इससे मालिश त्वचा और बालों के लिए बहुत फायदेमंद है। इसके अलावा, यह त्वचा को अल्ट्रावॉयलेट किरणों से भी बचाता है, यह एक नैचुरल सनब्लॉक है।
  • ना ही बहुत अधिक गर्म पानी ना ही अधिक ठन्डे पानी से स्नान करें. 
  • नहाने के बाद तौलिये से त्वचा पोछ कर तुरंत थोड़ा ग्लिसरीन और थोड़ा एलो वेरा जेल मिला कर लगाए . यह नमी दिन भर त्वचा में रहेगी और ज़रा भी रूखापन नहीं आयेगा.

सर्दियों में महफूज़ और स्वस्थ रहने का फंडा

राज द्वारा बताये गए सुझाव, सावधानी और उपाय को अपनाकर परिवार सहित सर्दी में सुखमय जीवन व्यतीत करें... राजेश मिश्रा


सर्दियों के मौसम में हर उम्र के लोगों को देखभाल की आवश्यकता होती है, सर्दियों का मजा अच्छे से लेने के लिए इस समय विशेष सावधानी रखना बेहद जरूरी होता है। यह माना हुआ तथ्य है कि सर्दियां अपने साथ कई बीमारियां भी लाती हैं। थोड़ी सी सावधानी बरतने पर सर्दियों के ये दिन आपके लिए 'अच्छे दिन' साबित होंगे।

सर्दियों में दिन छोटे हो जाते हैं, जिससे हार्मोन में असंतुलन पैदा होता है और शरीर में विटामिन ‘डी’ की कमी आती है। इससे दिल और दिमाग पर प्रभाव पड़ता है।

ठंडे मौसम में खासकर उम्रदराज लोगों को अवसाद घेर लेता है, जिससे उनमें तनाव और हाइपरटेंशन काफी बढ़ जाता है। सर्दियों के अवसाद से पीड़ित लोग अक्सर ज्यादा चीनी, ट्रांस फैट और सोडियम व ज्यादा कैलोरी वाला भोजन खाने लगते हैं। मधुमेह और हाइपरटेंशन से पीड़ित लोगों के लिए बहुत ही खतरनाक हो सकता है। इस मौसम में आम तौर पर निमोनिया भी हो जाता है।

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के महासचिव बताते हैं कि सर्दियों में होने वाली निमोनिया, अवसाद, हाइपोथर्मिया व ब्लड प्रेशर में उतार-चढ़ाव सहित अन्य बीमारियां रोकी जा सकती हैं। इसके लिए जीवनशैली की कुछ आदतों में थोड़ा सा बदलाव करके इनका आसानी से इलाज किया जा सकता है।


उन्होंने कहा कि जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों से पीड़ित लोगों को सलाह दी जाती है कि वे सर्दियों में शराब का सेवन न करें, क्योंकि यह मुश्किलें पैदा कर सकती है। सेहतमंद आहार लें और उटपटांग खाने से बचें। थोड़े-थोड़े अंतराल पर आहार लेना ज्यादा बेहतर रहता है।

इन बातों का रखें ध्यान :

  1. सर्दियों के अवसाद से बचने के लिए लंबे समय तक धूप मे बैठें या चारदीवारी के अंदर बत्ती जला कर रहें।
  2. गर्मियों की तुलना में सर्दियों में तड़के ब्लड प्रेशर ज्यादा होता है। इसलिए ब्लड प्रेशर के मरीजों को चाहिए कि वह अपने डॉक्टर से सर्दियों में ब्लड प्रेशर की दवा बढ़ाने को कहें।
  3. सर्दियों में दिल के दौरे भी अधिक पड़ते हैं, इसलिए सुबह-सुबह सीने में होने वाले दर्द को नजरअंदाज न करें।
  4. सर्दियों में ज्यादा मीठा, कड़वा और नमकीन खाने से परहेज करें।
  5. सभी को अपने डॉक्टर से निमोनिया और फ्लू की वैक्सीन के बारे में पूछना चाहिए।
  6. बहुत छोटी उम्र और उम्रदराज लोगों के निमोनिया सर्दियों में जानलेवा हो सकता है, ज्यादा खतरे वाले लोगों खास कर दमा, डायबिटीज और दिल के रोगों से पीड़ित लोगों को फ्लू का वैक्सीन जरूर दिलाएं।
  7. सर्दियों में बंद कमरों में हीटर चला कर सोने से बचें।
  8. गीजर सहित सभी बिजली यंत्रों की अर्थिग की जांच करवाएं।
  9. मीठे पकवान बनाते समय चीनी का प्रयोग करने से बचें। 
  10. एक तापमान से दूसरे तापमान में जाने से पहले अपने शरीर को संतुलित तापमान पर ढलने का समय दें।
  11. विटामिन ‘डी’ अच्छी सेहत के लिए बेहद जरूरी है। हर व्यक्ति को हर रोज सुबह 10 बजे से पहले और शाम 4 बजे के बाद कम से कम 40 मिनट धूप में जरूर बिताएं।

बच्चों और बुजुर्गों को चाहिए खास देखभाल

वैसे तो सर्दियों के मौसम में हर उम्र के लोगों को देखभाल की आवश्यकता होती है, लेकिन बच्चों और बुजुर्गों को ऐसे मौसम में खास देखभाल की आवश्यकता होती है क्योंकि उनकी प्रतिरोधी क्षमता कमज़ोर होती है।

सर्दियों में बच्चों का ख्याल रखें क्योंकि छोटे बच्चे बता भी नहीं सकते कि उन्हें ठंड लग रही है, आइये जाने बच्चों की देखभाल के टिप्स:

  • अपने शिशु का टीकाकरण समय पर करायें, जिससे वो कर्इ संक्रामक बीमारियों के खतरे से दूर रहे।
  • शिशु के सर व पैर हमेशा ढक कर रखे।
  • बच्चों को स्कूल में साफ सफार्इ रखने को प्रेरित करे।
  • बच्चों में ज्यादा दिन तक रहने वाला सर्दी जुकाम नीमोनिया भी हो सकता है।
  • नवजात शिशु की रोग प्रतिरोधी क्षमता बनाये रखने के लिए उसे स्तनपान कराये।
  • स्कूल जाने वाले बच्चों को पोषक आहार दें और उन्हें मुंह पर रूमाल रखकर छींकने व खांसने की आदत डाले।
  • बाहर ज्यादा ठंड होने पर बच्चों को इनडोर गेम्स खेलने को प्रेरित करे।
बच्चों के अलावा बुज़ुर्गों को भी इस मौसम में ज्यादा देखभाल की आवश्यकता होती है। ऐसे में सबसे ज्यादा डर उच्च रक्तचाप या ब्लड प्रेशर के मरीज़ों को रहता है। आइये जानें अधिक उम्र में कैसे रखें अपना ख्याल :
  • समय-समय पर ब्लड प्रेशर नापते रहें और ब्लड प्रेशर नियंत्रित रखे।
  • सर्दियों में ब्लड प्रेशर बढ़ने का एक कारण होता है रक्त वाहिकाओं का संकुचित हो जाना, जिससे हृदय पर दबाव पड़ता है।
  • अपने चिकित्सक से समय-समय पर मिलते रहे।
  • रोज़ व्यायाम करे।
  • खाने में तेल, घी कम से कम खाये।
  • सरदर्द, घबराहट, आंखों में भारीपन महसूस होने पर चिकित्सक से मिले।
  • चाय, काफी, धूम्रपान व शराब का सेवन ना करे।
  • पोषक आहार लें

रविवार, दिसंबर 06, 2015

अदरक की चाय / Ginger Tea Benefit

अदरक वाली चाय के स्‍वास्‍थ्‍य लाभ और साइड इफेक्‍ट


अदरक की चाय बड़ी ही गुणकारी होती है ये न सिर्फ स्वाद में अच्छी होती है, बल्कि ठंड के मौसम में होने वाली अनेक समस्याओं से भी आराम दिलाती है। अदरक की चाय को दवाई के रूप में लिया जाए तो अतिश्योक्ति ना होगी। अदरक की चाय मसालेदार पेय है जो पूरे एशिया में दिन भर पी जाती है और दुनिया भर में भी इसे पसंद किया जाता है। यहां तक कि प्राचीन आयुर्वेद और चीनी दवाओं में भी करीब 3 हजार सालों से इसका अदरक का इस्‍तेमाल औषधि के रूप में किया जाता है। और अदरक की जड़ों से तैयार किया जाने वाली चाय अपच, सूजन, जलन, माइग्रेन, नौसिया, डायरिया और कई अन्‍य प्रकार की बीमारियों के लिए कुदरती इलाज के तौर पर इस्‍तेमाल की जाती है। अदरक के जड़ की चाय पोटेशियम और मैग्‍नीशियम, विटामिन बी6 और विटामिन सी से भरपूर होती है। इसके साथ ही इसमें सेहत के लिए उपयोगी कई जरूरी ऑयल जैसे जिंजरोल, जिंजररोन, शोगोन, फरनीसीन और थोड़ा सा बीटा-फेलाड्रेन, सिनियॉल और किट्रल होता है। यानी आप कह सकते हैं कि अदरक की चाय पीने के सेहत को कई फायदे होतें हैं। 

अदरक की चाय न सिर्फ आपको अच्छी लगेगी, बल्कि यह ठंड के दौरान होने वाली कई समस्याओं से भी आराम दिलाएगी। यानी कि अदरक की चाय को दवाई के रूप में भी देखा जा सकता है। एक बार चाय बना लेने के बाद आप अदरक के स्वाद को छिपाने के लिए इसमें पिपरमेंट, शहद और नींबू मिला सकते हैं। आइए हम आपको बताते हैं कि क्यों आपको अदरक की चाय का सेवन करना चाहिए। 

अदरक वाली चाय के स्‍वास्‍थ्‍य लाभ 

1) मतली से आराम पहुंचाए :- 

कहीं सफर करने से पहले एक कप अदरक की चाय पीने से मोशन सिकनेस से होने वाली उल्टी नहीं होगी। साथ ही आप मतली होने पर भी एक कप चाय से इससे आराम पा सकते हैं।

2) पेट को रखे दुरुस्त :- 

अदरक की चाय पाचन को बेहतर बनाने के साथ-साथ फूड के अब्सॉर्प्शन को बढ़ाती है और बहुत ज्यादा खाने के बाद ब्लोटिंग की समस्या से छुटकारा दिलाती है। 

3) जलन को कम करे :- 

अदरक में जलन को कम करने का गुण पाया जाता है, जिससे यह मसल और जोड़ों की समस्या का एक बेहतरीन घरेलू उपचार बन जाता है। इसके अलावा अदरक की चाय पीने से जोड़ों के जलन को सोखने में भी मदद मिलती है। 

4) सांस लेने संबंधी समस्या :- 

से निजात ठंड के समय नाक बंद होने पर अदरक की चाय काफी असरदार होती है। वातावरण की एलर्जी से होने वाले सांस संबंधी समस्या से छुटकारा पाने के लिए आप अदरक की चाय का सेवन करें। 

5) ब्लड सर्कुलेशन को बेहतर बनाए :- 

अदरक की चाय में पाए जाने वाले विटामिन, मिनरल्स और अमीनो एसिड ब्लड सर्कुलेशन को बेहतर बनाने में मदद करते हैं, जिससे कार्डियोवेस्कुलर समस्या की संभावना कम हो जाती है। साथ ही अदरक अर्टरी पर फैट को जमा होने से रोकता है। इससे हार्ट अटैक और स्ट्रोक का खतरा नहीं रहता है। 

6) मासिक धर्म की परेशानी से आराम दिलाए :- 

जो महिलाएं मासिक धर्म के क्रैंप से जूझ रहीं हैं, वह अदरक की चाय का सेवन कर सकती हैं। एक तौलिए को गर्म अदरक की चाय में डुबा कर लोअर एब्डोमेन पर लगाएं। इससे दर्द से निजात मिलेगा और मसल्स रीलैक्स होंगे। साथ ही शहद के साथ अदरक की चाय का सेवन करें। 

7) इम्यूनिटी को मजबूत करे :- 

अदरक में बड़ी मात्रा में एंटीआक्सीडेंट पाए जाते हैं, जिससे आपका इम्यूनिटी मजबूत होगा। 

8) तनाव से राहत दिलाए :- 

अदरक की चाय में शांत करने का गुण पाया जाता है, जिससे आपका तनाव कम होगा। ऐसा अदरक के स्ट्रांग एरोमा और हीलिंग प्रोपर्टीज के कारण होता है।

अदरक की चाय पीने के साइड इफेक्‍ट

लेकिन, जैसा कि एक मशहूर कहावत है, 'किसी भी चीज की अति बुरी होती है। और अदरक भी इसका अपवाद नहीं। हर जड़ी-बूटी की तरह अदरक की चाय के भी साइड इफेक्‍ट हो सकते हैं। अधिक मात्रा में अदरक की चाय पीने से कुछ लोगों को पेट खराब होने, सीने में जलन, मुंह में जलन आदि की परेशानी हो सकती है। अगर अदरक को कैप्‍सूल के रूप में लिया जाए, तब आप इनमे से कुछ साइड इफेक्‍ट्स को कम कर सकते हैं।

बुधवार, दिसंबर 02, 2015

क्या आपकी एड़ियां भी फटती है

Home Remedies for Cracked Heel
जाने ठण्ड में क्यों फटती है एड़ियां और घरेलु निवारण

सर्दियों के मौसम में ठंडी हवा का हमारी त्वचा पर बुरा प्रभाव पड़ता है। त्वचा शुष्क हो जाती है, इसलिए सर्दियों में त्वचा को विशेष देखभाल की जरूरत होती है। त्वचा की देखभाल में लापरवाही बरतने से सर्दियों में हाथ-पांव की त्वचा फटने लगती हैं। सबसे अधिक एड़ियां प्रभावित होती हैं। कभी-कभी तो एड़ियां इतनी फट जाती है कि चलने में काफी कठिनाई होती है और उन फटी दरारों से खून निकल आता है।
फटी एड़ियां देखने में भी भद्दी लगती हैं। यदि खूब सजी-संवरी स्त्री की एड़ियां फटी-फटी हों तो सारा श्रृंगार बेकार हो जाता है। ऐसी महिला उपहास का पात्र बन जाती है। देखने वाली महिलाएं बिना छींटाकशी किये नहीं रह पाती। यदि आप अपने व्यस्त समय में से थोड़ा-सा समय निकालकर एड़ियों की देखभाल करती रहेंगी तो न एड़ियों पर मैल जमेगी और न वे फटेंगी ही। वे आकर्षक और खूबसूरत बनी रहेंगी और आप कभी उपहास का पात्र नहीं बनेंगी।

जैसे-जैसे सर्दी का मौसम अपने शबाब पर पहुंचता है, पैरों की खूबसूरती को बनाए रखना मुश्किल होता जाता है। पैरों की चमड़ी का सख्त हो जाना और एड़ियों का फटना जैसी समस्याएं इस मौसम में आम तौर पर उभरकर सामने आती हैं। इससे बचने के लिए कुछ बातों का ख्याल रखना आवश्यक है।

पांवों की देखभाल में लापरवाही बरतने से उनपर मैल जमने लगती है जो पांवों व एड़ियों के फटने का कारण बनती है। अपनी दैनिक दिनचर्या में व्यस्त रहने वाली महिलाएं जल्दी-जल्दी स्ान कर लेती हैं और पांवों और एड़ियों की साफ-सफाई पर विशेष रूप से ध्यान नहीं दे पाती जिससे उन पर मैल जमकर एड़ियां फट जाती हैं। अन्य तत्वों के समान कैल्शियम भी शरीर के लिए लिए आवश्यक तत्व है। इस तत्व के अभाव में एड़ियां फटती हैं। हमेशा नंगे पांव चलने से उन पर धूल जम जाती है जिसके कारण एड़ियां फटती हैं। यदि आप अपनी एड़ियों को फटने से बचाना चाहती है तो घर पर भी नंगे पांव न रहें।
अधिक देर तक पानी में रहकर काम करने से भीगी एड़ियां फट जाती हैं। खुश्की भी एड़ियों के फटने के कारणों में से है।
यदि आपकी एड़ियां फट गयी हैं, चलने में पीड़ा होती है या दरारों से खून निकलता है तो नीचे लिखी सावधानियां बरतें। इससे एड़ियों की पीड़ा कम होगी तथा फटी दरारें भी भरेंगी।

जानिए कुछ महत्वपूर्ण बातें-

क्या है एड़ियां फटने की मुख्य वजह

एड़ियां फटने की मुख्य वजह शरीर में कैल्शियम और चिकनाई की कमी होती है। एड़ी व तलवों की त्वचा मोटी होती है, इसलिए शरीर के अंदर बनने वाला सीबम यानी कुदरती तेल पैर के तलवों की बाहरी सतह तक नहीं पहुंच पाता। फिर पौष्टिक तत्व व चिकनाई न मिल पानेकी वजह से ही एड़ियां खुरदरी-सी हो जाती हैं और इनमें दरार पड़ने लगती है।
एड़िया ज्यादा फटने से दर्द और जलन तो होती ही है, कभी-कभी खून भी निकल आता है।

ठंड में फटी एड़ियों से छुटकारा पाने के नुस्खे

  • डेढ़ चम्मच वैसलीन में एक छोटा चम्मच बोरिक पावडर डालकर अच्छी तरह मिला लें और इसे फटी एड़ियों पर अच्छी तरह से लगा लें, कुछ ही दिनों में फटी एड़ियां फिर से भरने लगेंगी। 
  • अगर एड़ियां ज्यादा फटी हुई हों तो मैथिलेटिड स्पिरिट में रुई के फाहे को भिगोकर फटी एड़ियों पर रखें। ऐसा दिन में तीन-चार बार करें, इससे एड़ियां ठीक होने लगेंगी। 
  • गुनगुने पानी में थोड़ा शैंपू, एक चम्मच सोड़ा और कुछ बूंदें डेटॉल की डालकर मिला लें। इस पानी में पैरों को 10 मिनट तक भिगोकर रखें। त्वचा फूलने पर मैथिलेटिड स्पिरिट लगाकर एड़ियों को प्यूमिक स्टोन या झांवे से रगड़कर साफ कर लें। इससे एड़ियों कीमृत त्वचा साफ हो जाएगी। फिर साफ तौलिए से पोंछकर गुनगुने जैतून या नारियल के तेल से मालिश करें। 
  • पैरों को साफ व खूबसूरत बनाए रखने के लिए पैडिक्योर को अवश्य चुनें। यह पैरों के नाखून, एड़ी व तलवों की सफाई का शानदार तरीका है। 
  • पैडीक्योर एक आसान विधि है, इसे आप खुद घर पर भी कर सकती हैं अगर आपके पैरों की दशा ज्यादा खराब है तो पैडीक्योर किसी ब्यूटी स्पेशलिस्ट से ही करवाना मुनासिब है।
  • पानी में बोरेक्स पाउडर या नमक मिलाकर करीब उसमें 5 मिनट पांवों को रखें। फिर पांवों को धोकर व तौलिए से अच्छी तरह पोंछकर जैतून का तेल लगा लें।
  • एक चम्मच एरंड का तेल एक चम्मच नींबू का रस तथा एक चम्मच गुलाब जल को एक साथ मिला लें। रात को सोते समय इस मिश्रण से एड़ियों की मालिश करें। इससे बिवाई में लाभ मिलेगा।
  • बिवाइयों पर मेंहदी का लेप लगाएं। बिवाई सेमुक्ति मिलेगी।
  • यदि एड़ियों पर फटी दरारें गहरी हों तो डिटोल मिले पानी में एड़ियों को डुबाकर कुच देर रखें। इससे उभरी त्वचा नरम हो जायेगी। उसे तेज ब्लेड से काट दें और उस पर एंटीसेप्टिक क्रीम लगा लें। त्वचा काटते समय ध्यान रखें कि जीवित त्वचा न कटे।
  • आम की गुठली को पीसकर महीन पाउडर बनाकर नारियल तेल में मिलाकर बिवाइयों पर लगाएं। इससे दरारें भरेंगी और एड़ियों का कालापन भी दूर होगा।
  • एक चम्मच शुध्द घी तथा एक चम्मच शुध्द मोम लेकर एक साथ किसी पात्र में गर्म करें। जब दोनों मिलकर एकसार हो जाएं तो उतार लें तथा गर्म-गर्म द्रव रूई से दरारों पर टपकाएं। इससे सिंकाई हो जायेगी और आराम महसूस होगा। कुछ दिन यह प्रयोग से एड़ियां होगा। कुछ दिन यह प्रयोग करने से एड़ियां ठीक हो जायेंगी।
  • एक कटोरी मधुमक्खी के मोम को गर्म कर लें। उसमें आधा कटोरी सरसों का तेल मिलाएं। अब एक पतीली पानी में यह मिश्रण छान लें। थोड़ी देर में मिश्रण पतीली की तली में बैठ जायेगा। पानी फेंककर तली में जमा मिश्रण को किसी पात्र में रख लें। रोज रात को सोते समय एड़ियों को साफ करके उस पर लगाएं। इसके इस्तेमाल से फटी एड़ियों में लाभ मिलता है।
  • यदि फटी एड़ियों से खून निकलता हो तो वेसलीन लगाकर गर्म कपड़े से सेंक दें। विटामिन बी कम्प्लेस का सेवन करें। लाभ प्राप्त होगा।
  • यदि एड़ियों की दरार गहरी हो तो स्प्रिट में रूई भिगोकर थोड़ी-थोड़ी देर बाद एड़ियों पर रखें।
  • रात को सोते समय गुनगुने नारियल का तेल बिवाइयों पर लगाएं व मोजे पहनकर सोएं। सुबह पैरों को गर्म पानी में डुबाए रखें। फिर ब्रश रगड़कर तलवे के फटे हिस्सों को साफ करके पोंछ लें और वेसलीन लगा लें।
  • किसी बर्तन में 100 ग्राम वनस्पति घी गर्म करें। उसमें करीब 300 ग्राम मेहंदी की हरी पत्तियां डालकर धीमी आंच पर गर्म करें। बीच-बीच में चलाते रहें। जब मेहंदी की पत्तियां जलकर ब्राउन हो जाएं तो उसे आंच से उतारकर ठंडा करें। अब पत्तियों को निकाल कर निचोड़ लें और घी को किसी पात्र में रख लें। इसे रोज एक बार एड़ियों पर लगाएं। इसके इस्तेमाल से सालों फटी रहने वाली एड़ियां भी ठीक हो जाती हैं। इस मरहम को लगाने के बाद एड़ियों पर धूल-मिट्टी न लगने दें और हल्के गर्म पानी से ही पैर धोएं।
  • यदि फटी एड़ियों के समय किसी पार्टी या समारोह में जाना पड़े तो एड़ियों पर महावर लगाकर जाएं।
  • यदि एड़ियां ठीक हो जाएं तो बचाव के लिए सर्दियों में दिन भर मोजे पहने रहें। पैरों को साफ रखें। स्ान करते समय एड़ियों को प्यूमिस स्टोन से धीरे-धीरे रगड़कर साफ कर लिया करें। इससे एड़ियों की त्वचा साफ रहेगी और एड़ियां नहीं फटेंगी।
  • एक पात्र में गुनगुना पानी लें। उसमें एक नींबू का रस तथा आधा चम्मच सोडा बाईकार्बोनेट मिला लें। इसमें पैर को 10-15 मिनट रखें। फिर स्क्रवर से रगड़कर एड़ियों को साफ कर लें। तौलिए से पांव पोंछ कर वेसलीन लगा लें। इस तरह एड़ियों की सप्ताह में एक बार सफाई करें तथा इसे रात में ही करें। अंडे की जर्दी एड़ियों पर लगाएं। जब यह सूख जाए तो नींबू के छिलके से एड़ियों को रगड़ें और गुनगुने पानी से पैरों को धो लें। इससे एड़ियों का मैल व खुरदरापन दूर होगा। एड़ियों की सुन्दरता बरकरार रहेगी। 10-15 दिनों के अंतराल पर पैडीक्योर ट्रीटमेंट भी लेना चाहिए। इससे एड़ियों को लाभ होगा।
  • आप थोड़ा सा समय एड़ियों की देखरेख के लिए देंगी तो आपको एड़ियों के कारण कहीं भी उपहास का पात्र नहीं बनना पड़ेगा। इसे हमेशा ध्यान रखें कि सौंदर्य को निखारने में एड़ियों का भी महत्व है, इसलिए एड़ियों के प्रति लापरवाही नहीं बरतें।

मंगलवार, दिसंबर 01, 2015

These are the source of Protein for Vegetarians

शाकाहारियों के लिए प्रोटीन का स्रोत : राज

शाकाहारी लोग कैसे पा सकते हैं ज्यादा प्रोटीन शाकाहार से जुड़ा एक भ्रम है कि शाकाहारी लोगों कोप्रोटीन का पोषण नहीं मिल पाता। ... इसमें पर्याप्त मात्रा में फाइबर भी पाया जाता है, जो पाचन तंत्र और हड्डियों के लिए विशेष रूप से लाभदायक होता है। शाकाहारी लोग प्रोटीन के पोषण से वंचित रह जाते हैं, पर यह बहुत बड़ी गलतफहमी है कि मांसाहार ही प्रोटीन का प्रमुख स्रोत है।
शरीर के लिए एक ऊर्जा स्रोत होते हैं। हर शरीर के लिए अलग-अलग प्रोटीन की आवश्यकता होती है। एक सामान्य स्वस्थ्य व्यक्ति के लिए उसके प्रति किलोग्राम भार की तुलना में 0.8 ग्राम से एक ग्राम प्रोटीन की जरूरत होती है। लेकिन किसी व्यक्ति को किडनी की बीमारी है तो उसके लिए उच्च प्रोटीन युक्त भोजन हानिकारक हो सकता है।

शाकाहारी लोगों के लिए पूर्ण प्रोटीन प्राप्त करना मुश्किल होता है। 20 विभिन्न अमीनो एसिड्स से मिलकर प्रोटीन का निर्माण होता है। लेकिन नौ अमीनो एसिड्स का निर्माण शरीर स्वयं नहीं कर सकता है। इनको आवश्यक अमीनो एसिड्स कहा जाता है और इनको अपने भोजन में शामिल करना जरूरी है क्योंकि हम इनको स्वयं नहीं बना सकते हैं। अंडा और मीट पूर्ण प्रोटीन्स वाले स्रोत हैं लेकिन फलियों और बादाम आदी में पूर्ण प्रोटीन नहीं होते हैं।

अगर आप शाकाहारी हैं और आप प्रोटीन्स के पूर्ण शाकाहारी स्रोतों के बारे में आप जानना चाहते हैं तो हम आपको बताते हैं कुछ विकल्प, जिसे आप अपने भोजन में शामिल कर सकते हैं।

1- चिया सीड्स: यह ओमेगा-3 फैटी एसिड्स के प्रमुख स्रोतों में से एक है। इसमें अन्य बीजों और बादाम आदी से अधिक फाइबर पाए जाते हैं। इसमें आयरन, कैल्शियम, जिंक और एंटीऑक्सीडेंट्स प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। दो चम्मच चिया सीड्स के सेवन से 4 ग्राम प्रोटीन मिलता है। वजन कम करने में भी इससे मदद मिल सकती है।

2- फाफरा या कूटू: एक कप कूटू के आटे में 6 ग्राम प्रोटीन मिलता है। इसके सेवन से रक्त संचार बेहतर होता है और ब्लड कोलेस्ट्रॉल को कम करता है। जापानियों ने इसे सोबा नूडल्स में परिवर्तित कर दिया है। यह भारत में भी उपलब्ध है।

3- काबुली चना और पीटा ब्रेड: एक पीटा ब्रेड और दो चम्मच काबुली चने के छोले में 6 ग्राम प्रोटीन मिलता है। गेहूं और चावल में अमीनो एसिड लिसिन की कमी होती है, जबकि छोले में प्रचुर मात्रा में लिसिन होती है।

4- हेम्प सीड्स (भांग): दो चम्मच हेम्प सीड्स में 10 ग्राम प्रोटीन होता है। इसमें प्रचुर मात्रा में सभी नौ आवश्यक अमीनो एसिड्स, मैग्निशियम, जिंक, आयरन और कैल्शियम पाए जाते हैं। ये ओमेगा 3 जैसे आवश्यक फैटी एसिड्स के भी स्रोत हैं।

5- क्विनोवा: एक कप क्विनोवा में 8 ग्राम प्रोटीन होता है। इसमें फाइबर, मैग्निशियम और आयरन पाया जाता है। यह चावल का एक अच्छा विकल्प है। चपातियां और कुकीज बनाने में इसका इस्तेमाल किया जा सकता है। नाश्ते में इसकी खिचड़ी भी खाई जा सकती है।

6- चावल और फलियां: एक कप चावल या फलियों के सेवन से 7 ग्राम प्रोटीन मिलता है। अधिकतर फलियों में कम मात्रा में अमिनो एसिड मेथलोनीन और अधिक मात्रा में अमीनो एसिड लिसिन होता है जबकि चावल में कम मात्रा में लिसिन और अधिक मात्रा में मेथलोनीन होता है। चावल और फलियों के साथ सेवन से संपूर्ण प्रोटीन मिलता है।

7- पीनट बटर सैन्डविच: दो सैंडविच और दो चम्मच पीनट बटर में 15 ग्राम प्रोटीन होता है। आटे के ब्रेड पर पीनट बटर लगाकर खाने से सभी आवश्यक अमीनो एसिड्स शरीर को मिलते हैं। इसमें प्रचुर मात्रा में फैट्स होते हैं।

8- सोया: आधा कप सोया में 15 ग्राम प्रोटीन होता है। सोया अपने आप में पूर्ण प्रोटीन है। अगर आपको थायराइड या कैंसर की समस्या है तो सोया के सेवन से पहले डॉक्टर की सलाह लें।

9- अनाज या बादाम आदी के साथ स्पीरूलीना (नीला-हरा शैवाल) : एक चम्मच स्पीरूलीना में 4 ग्राम प्रोटीन होता है। यह एक संपूर्ण प्रोटीन है, लेकिन इसमें मेथलोनीन और सिस्टेलिन अमिनो एसिड की कमी होती है। इसके लिए आप इसमें ओट्स, बादाम आदी मिला सकते हैं।

सूखे मेवे और बीज

बादाम, पीली दाल, अखरोठ, कद्दू के बीज, सूरजमुखी के बीज आदि ऊर्जा का अच्छा भंडार हैं। सूखे मेवे वसा युक्त होते हैं, इसलिये सीमित मात्रा में ही इनका इस्तेमाल किया जाना चाहिये।

अंकुरित अनाज

अंकुरित अनाज प्रोटीन का बेहतरीन स्रोत है। इन्हें कच्चा खा सकते हैं, सलाद में या हल्का मसालेदार बनाकर भी खा सकते हैं। लेकिन जो लोग एसिडिटी का शिकार रहते हैं, वे अंकुरित अनाज का उपयोग नहीं कर सकते। एक कप बींस में 15 ग्राम प्रोटीन होता है। यह प्रोटीन का बेहतरीन स्रोत है।

डेयरी

जो लोग लैक्टोज के प्रति संवेदनशील हैं वे योगर्ट का उपयोग आसानी से कर सकते हैं। यह प्रोटीन का अच्छा स्रोत है और दूध के मुकाबले पचने में आसान है।

शाकाहारी स्रोत से लिए प्रोटीन से खतरा

यदि कोई व्यक्ति बहुत अधिक प्रोटीन ले रहा है, तो उसमें अनावश्यक कैलरी जा रही है इस वजह से उसका वजन बढेगा। शाकाहारी स्रोतों से लिए गए अतिरिक्त प्रोटीन से आमतौर पर कोई हानि नहीं होती, परंतु जिन्हें गुर्दे व मधुमेह का रोग है उन्हें इस तरह के भोजन से परहेज करना चाहिए।

शनिवार, नवंबर 21, 2015

तोंद कम करने के 51 सरल उपाय

पेट की चर्बी घटाने के सरल उपचार

Simple home remedies to reduce abdominal fat

शरीर पर चरबी का अधिक होना मोटापे का सबसे बड़ा लक्षण होता है। गलत तरह से खान-पान करना, रहन सहन में भी गलत तरीके प्रयोग करना आदि जैसी वजह से पेट बाहर निकल जाता है। और कमर की चरबी अधिक हो जाती है। धीरे-धीरे मोटापा गर्दन, हाथ और पैरों तक फैल जाता है। यानी इन जगहों पर चरबी अधिक हो जाती है। शरीर पूरी तरह से चरबी युक्त हो जाता है। और इंसान को चलने फिरने में भी दिक्कतों के साथ-साथ कई गंभीर बीमारीयों के होने का खतरा भी अधिक बढ़ जाता है। आइये आपको बताते है कमर की चरबी को कम कैसे करें। आयुर्वेद में इसका इलाज संभव है। कमर की चरबी कम करने के लिए राजेश मिश्रा द्वारा बताये गए आप इन उपायों का प्रयोग कर सकते हो. . कमर की चरबी को कम करने का सबसे पहला नियम जो आयुर्वेद में है.  वह है-
  • भूख से कम ही भोजन का सेवन करें। जितनी भूख है उससे कम ही खाना खायें। इससे पेट का आकार नहीं बढ़ता और पाचन भी ठीक रहता है। कम भोजन करने से पेट में गैस नहीं बनती है। कोशिश करें कि दिन में 2 बार शौच जाएं।सुबह उठते ही एक गिलास गरम पानी मे आधा नींबू निचोड़कर पीएं। इसमे एक चम्मच शहद मिलाकर पिएंगे तो ज्यादा फायदा होगा। इससे मेटाबोलिज़म तेज होता है और चर्बी जलती है।  
  • अदरक को टुकड़ों मे काट लें फिर एक कप पानी मे उबालें। 10 मिनिट तक उबालने के बाद अदरक बाहर निकाल दें और इसे चाय की तरह पीएं। 
  • लहसुन मे मोटापा कम करने के तत्व होते हैं। एक कप मामूली गरम पानी मे एक नींबू निचोड़ें। लहसुन की तीन जवे इस पानी के साथ लें। चर्बी कम करने का उम्दा उपाय है।  रोज सुबह खाली पेट लें. 
  • बादाम मे मौजूद ओमेगा 3 फेटी एसिड अनावश्यक पेट की चर्बी हटाने मे सहायक है। रोज रात को 9 बादाम पानी मे गलाए और सुबह इनको छीलकर खाएं।  
  • भोजन से आधे घंटे पूर्व एक चम्मच एप्पल सायडर वेनेगर को एक गिलास पानी मे मिलाकर पीएं।इससे ज्यादा केलोरी जलती है और चर्बी कम होती है। 
  • पुदेने के पत्ते और हरा धनिया के पत्ते पीस लें ,इसमे नमक और नींबू का रस मिलाकर चटनी तैयार करे। भोजन के साथ प्रयोग करें। इससे मेटाबोलिज़म तेज होता है और फालतू चर्बी खत्म होती है। 
  • एलोवेरा का जूस पीने से चर्बी पेट मे जमा नही होती| आधा गिलास गरम पानी मे 2 चम्मच एलोवेरा जूस और एक चम्मच जीरा मिश्रण करें।  रोज सुबह खाली पेट लें और लेने के बाद एक घंटे तक कुछ न खाएं। चर्बी कम करने का बेहतरीन उपचार है। 
  • अपनी दिनचर्या मे कसरत और मॉर्निंग वाक को आवश्यक रूप से शामिल करें।  
  • मोटापे से मुक्ति का एक और बड़ा सरल उपाय यह है कि भोजन के तुरंत बाद पानी का सेवन न करें। भोजन करने के लगभग 1 घंटे के बाद ही पानी पीयें। इससे कमर का मोटाप नहीं बढ़ता है। और यह तरीका पेट को कम करने में भी मददगार होता है।
  • भोजन में अधिक से अधिक जौ से बने आटे की रोटियों का इस्तेमाल करें। गेहूं के आटे की रोटी का सेवन बिलकुल कम कर दें। जौ शरीर में मौजूद अतरिक्त चरबी को कम कर देता है। जिससे कमर और पेट की चरबी कम हो जाती है।
  • वजन कम करने और अतरिक्त चरबी को कम करने के लिए आपको यह भी पता होना चाहिए कि भोजन में किन चीजों को इस्तेमाल करें और किन का नहीं। आपको चावल, आलू और चपाती का सेवन कम से कम मात्रा में करना चाहिए साथ ही खाने में कच्चा सलाद, सब्जी और मिक्स वेज का सेवन अधिक से अधिक करना चाहिए।
  • हमेशा खाना भूख लगने पर ही खाएं। खाना खाते वक्त यह बात जरूर ध्यान रखें कि खाने को मुंह में अच्छी तरह से बारीकी से चबाकर खाएं ताकि आसानी से भोजन गले से नीचे उतर सके।
  • सुबह के नाश्ते में आप चना, मूंग और सोयाबीन को अधिक से अधिक खाने में उपयोग करें। अंकुरित अनाज में आपको भरपूर मात्रा में पौष्टिक तत्व आपको मिलेगें। जो मोटापा को बढ़ने नहीं देगें। दलिया को भी आप अपने नाश्ते में जरूर शामिल करें।
  • कमर की अधिक चरबी को कम करने के लिए आपको अपने खाने में हरी सब्जियों का अत्याधिक सेवन करना चाहिए। आप मेथी, पालक, चैलाई की सब्जी को अपने खाने में शमिल करें। हरी सब्जियों में मौजूद कैल्श्यिम और फाइबर आपके शरीर में पोषक तत्वों को पहुंचाते हैं। और इनसे आपका शरीर भी स्वस्थ रहेगा।
  • गर्मियों में दही या मट्ठा के सेवन करने से शरीर के चरबी घटती है। दिन में 2 से 3 बार मट्ठा का सेवन करें।
  • सुबह खाली पेट गरम पानी में 2 चम्मच शहद डालकर 2 महीने तक सेवन करने से कमर का मोटापा कम होता है। इसके अलावा तेल की मालिश करने से भी कमर की चरबी को कम किया जा सकता है।

छिलके वाली दाल का प्रयोग

वजन कम करने के लिए छिलके वाली दाल का प्रयोग करें। इसमें प्रोटीन की मात्रा कम होती है। रोजाना सेवन करने से कोलेस्ट्राल की मात्रा भी शरीर में कम होती है जिसकी वजह से वजन कम हो जाता है।

सलाद का सेवन

  • सुबह हो या शाम आपको सलाद का सेवन जरूर करना है। इससे आपको कम कैलोरी और हाई फाइबर मिलता है जो कमर की चरबी को आसानी से कम करता है।
  • खाना खाने के बाद एक गिलास गर्म पानी को घूंट लेकर पीएं आपका मोटापा कम होगा।
  • रात्री को सोने से 2 घंटा पहले खाना खाएं।

बाहर निकला हुआ पेट अंदर करने के आसान घरेलू तरीके : राज 

  1. नियमित रूप से पपीता का सेवन करें। पपीता हर मौसम में मिलता है। यह पेट की चर्बी को जल्दी घटाता है।
  2. पत्तागोभी का जूस रोज पीएं। इसकी आदत डाल लें। इस जूस में चर्बी को घटाने के गुण होते हैं।
  3. जितना हो सके आलू, चावल और शक्कर का सेवन कम से कम कर दें। क्योंकि इनमें अधिक कार्बोहाइड्रेट होता है।
  4. गेहूं के आटे की रोटी खाने की बजाए सोयाबीन, चना और गेहूं के आटे को मिलाकर यानी मिश्रित आटे की रोटी का सेवन करें।
  5. छाछ भी तेजी से वजन घटाती है इसलिए एक दिन में दो से तीन बारी छाछ का सेवन करें।
  6. अपने खाने में दही का इस्तेमाल जरूर करें। पेट को अंदर करने के लिए दही सेवन फायदेमंद है।
  7. हल्दी और आंवले के चूर्ण को बराबर मात्रा में मिला लें और इसे छाछ के साथ मिलाकर पीएं। यह कमर को बिलकुल पतला और स्लिम बनाती है।
  8. यदि मोटापा कम नहीं हो रहा हो तो अपने खाने में हरी मिर्च या काली मिर्च को शामिल करें। नए शोध में बताया गया है कि वजन कम करने के लिए सबसे आसान तरीका है मिर्च को खाना। मिर्च में कैप्साइसिन तत्व पाया जाता है जो भूख को कम करता है और इससे उर्जा की खपत बढ़ती है और वजन नियंत्रण में रहता है।
  9. 2 चम्मच शहद को एक चम्मच पुदीने के रस में मिलाकर नियमित लेने से पेट अंदर होता है और वजन भी घटता है।
  10. पुदीने की चाय बनाकर पीने से मोटापा जल्दी कम होता है।
  11. फलों और सब्जियों में कैलोरी कम होती है इसलिए जितना हो सके आप फलों और सब्जियों का सेवन अधिक करें। केवल चीकू और केला न खाएं। ये मोटापा बढ़ाते हैं।
  12. टमाटर का 250 ग्राम रस 3 महीने तक सुबह खाली पेट लें। यह बहार निकले हुए पेट को अंदर कर देगा।
  13. सलाद में प्याज और टमाटर खाएं और इसमें नमक और काली मिर्च का पउडर डालें। सलाद खाने से पेट जल्दी भरता है और वजन नियंत्रित होता है।
  14. वजन कम करना कठिन नहीं है बस आपको अपने खान-पान में थोड़ा चेंज करना है। जिससे आप पतले और स्लिम होने लगोगे। जितना हो सके फास्ट फूड से परहेज करें। क्योंकि एक बार मोटापा बढ़ता है तब यह आसानी से घटता नहीं है जिस वजह से उम्र तो अधिक लगने लगती है साथ ही अनेक बीमारीयां भी शरीर पर लगने लगती है।
  15. आपको अपने जीवन शैली में एक छोटा सा परिवर्तन लाना जरूरी है। जैसे चढ़ने और उतरने के लिए सीढ़ी का इस्तेमाल करें। साईक्लिंग करना, जाॅगिंग, टहलना, और व्यायाम जरूर करें। एैसा करने से आपकी कमर की चरबी तो कम होगी ही साथ ही आपको मोटापे से मुक्ति मिल जाएगी। इसलिए आप इन घरेलू उपायों को अपनाकर पेट की चर्बी को कम कर सकते हो।

    अंत में राजेश मिश्रा का राम राम स्वीकार करें 

गुरुवार, नवंबर 19, 2015

डेंगू / Dengue : सुरक्षा ही बचाव है - राजेश मिश्रा

डेंगू होने के कारण, बचाव और रोकथाम ऐसे करें.. 

  • संक्रमित मच्छर के काटने के 3 से 14 दिनों बाद Dengue Fever के लक्षण दिखने शुरू होते है।
  • रोकथाम / Prevention ही इसका सबसे अच्छा और बेहतर ईलाज है। 

हर साल दुनिया में लगभग 10 करोड़ लोग डेंगू / Dengue Fever के शिकार होते है। भारत में भी हर साल कई लोगो की Dengue Fever के कारण मृत्यु हो जाती है। हमें रोज समाचार पत्रों में या News Channel पर Dengue Fever का आतंक देखने को मिलता है। समय की जरुरत है की इस बीमारी के बारे में लोगो में अधिक से अधिक जागरूकता फैलाई जाए। इस लेख द्वारा राजेश मिश्रा की कोशिश है की, आपको Dengue Fever सम्बन्धी अधिक से अधिक जानकारी प्राप्त हो।

Dengue Fever के बारे में संक्षिप्त जानकारी :

Dengue Fever क्या है ?

Dengue Fever यह एक Viral बीमारी है जो की Dengue Virus के 4 प्रकारों में से किसी एक प्रकार के Dengue Virus से होता है। जब कोई रोगी Dengue Fever से ठीक हो जाता है, तब उस मरीज को उस एक प्रकार के Dengue Virus से लम्बे समय के लिए प्रतिरोध / immunity मिल जाती है परन्तु अन्य 3 प्रकार के Dengue Virus से Dengue Fever दोबारा हो सकता है। दूसरी बार होने वाला Dengue Fever काफी गंभीर हो सकता है जिसे Dengue Hemorrhagic Fever कहते है।

Dengue Fever कैसे होता है ?

Dengue Fever हवा, पानी, साथ खाने से या छूने से नहीं फैलता है। Dengue Fever संक्रमित स्त्री / मादा जाती के Aedes Aegypti नामक मच्छर के काटने से होता है। अगर किसी व्यक्ति को Dengue Fever है और उस व्यक्ति को यह मच्छर काट कर उसका खून पिता है तो उस मच्छर में Dengue Virus युक्त खून चला जाता है। जब यह संक्रमित मच्छर किसी स्वस्थ व्यक्ति को काट लेता है तो Dengue Virus उस स्वस्थ व्यक्ति में चला जाता है।
Aedes aegypti मच्छर की कुछ खास विशेषताए :
  • यह दिन में ज्यादा सक्रिय होते है। 
  • इन मच्छर के शरीर पर चीते जैसी धारिया होती है। 
  • ज्यादा ऊपर तक नहीं उड़ पाते है।
  • ठन्डे और छाव वाले जगहों पर रहना ज्यादा पसंद करते है। 
  • पर्दों के पीछे या अँधेरे वाली जगह पर रहते है। 
  • घर के अन्दर रखे हुए शांत पानी में प्रजनन / breeding करते है। 
  • अपने प्रजनन क्षेत्र के 200 meter की दुरी के अन्दर ही उड़ते है। 
  • गटर या रस्ते पर जमा खराब पानी में कम प्रजनन करते है। 
  • पानी सुख जाने के बाद भी इनके अंडे 12 महीनो तक जीवित रह सकते है। 

Dengue Fever के लक्षण : राजेश मिश्रा 

संक्रमित मच्छर के काटने के 3 से 14 दिनों बाद Dengue Fever के लक्षण दिखने शुरू होते है। Dengue Fever के लक्षण निचे दिए गए है :
  • तेज ठंडी लगकर बुखार आना 
  • सरदर्द 
  • आँखों में दर्द 
  • बदनदर्द / जोड़ो में दर्द 
  • भूक कम लगना 
  • जी मचलाना, उलटी 
  • दस्त लगना 
  • चमड़ी के निचे लाल चट्टे आना 
  • Dengue Hemorrhagic Fever की गंभीर स्तिथि में आँख, नाक में से खून भी निकल सकता है 

Dengue Fever का इलाज : राजेश मिश्रा 

  • Dengue Fever का रोकथाम / Prevention ही इसका सबसे अच्छा और बेहतर ईलाज है। 
  • Dengue Fever की कोई विशेष दवा या vaccine नहीं है। 
  • एक viral रोग होने के कारण इसकी दवा निर्माण करना बेहद कठिन कार्य है। 
  • Dengue Fever के इलाज / चिकित्सा में लाक्षणिक चिकित्सा / symptomatic treatment की जाती है। 
  • Dengue Fever की कोई दवा नहीं है पर इस रोग से शरीर पर होने वाले side-effects से बचने के लिए रोगी को डॉक्टर की सलाह अनुसार आराम करना चाहिए और समय पर दवा लेना चाहिए। 
  • रोगी को पर्याप्त मात्रा में आहार और पानी लेना चाहिए। बुखार के लिए डॉक्टर की सलाह अनुसार paracetamol लेना चाहिए। डेंगू बुखार में रोगी ने पर्याप्त मात्रा में पानी पीना सबसे ज्यादा आवश्यक हैं। 
  • बुखार या सरदर्द के लिए Aspirin / Brufen का उपयोग न करे। 
  • डॉक्टर की सलाह अनुसार नियमित Platelet count की जाँच करना चाहिए। 
  • हमारी रोगप्रतिकार शक्ति Dengue Fever से लड़ने में सक्षम होती है, इसलिए हमें हमेशा योग्य संतुलित आहार और व्यायाम द्वारा रोग प्रतिकार शक्ति को बढाने की कोशिश करनी चाहिए। 

Dengue Fever के बचाव के उपाय : राजेश मिश्रा 

जैसे की मैंने पहले भी लिखा है, Dengue Fever का रोकथाम / Prevention ही इसका सबसे बेहतर ईलाज है। Dengue Fever के बचाव के उपाय  :
  • घर के अन्दर और आस-पास पानी जमा न होने दे। कोई भी बर्तन में खुले में पानी न जमने दे। 
  • बर्तन को खाली कर रखे या उसे उलटा कर कर रख दे। 
  • अगर आप किसी बर्तन, ड्रम या बाल्टी में पानी जमा कर रखते है तो उसे ढक कर रखे। 
  • अगर किसी चीज में हमेशा पानी जमा कर रखते है तो पहले उसे साबुन और पानी से अच्छे से धो लेना चाहिए, जिससे मच्छर के अंडे को हटाया जा सके। 
  • घर में कीटनाशक का छिडकाव करे। 
  • कूलर का काम न होने पर उसमे जमा पानी निकालकर सुखा कर दे। जरुरत होने पर कूलर का पानी रोज नियमित बदलते रहे। 
  • किसी भी खुली जगह में जैसे की गड्डो में, गमले में या कचरे में पानी जमा न होने दे। अगर पानी जमा है तो उसमे मिटटी डाल दे। 
  • खिड़की और दरवाजे में जाली लगाकर रखे। शाम होने से पहले दरवाजे बंद कर दे। 
  • ऐसे कपडे पहने जो पुरे शरीर को ढक सके। 
  • रात को सोते वक्त मच्छरदानी लगाकर सोए। 
  • अन्य मच्छर विरोधी उपकरणों का इस्तेमाल करे जैसे की electric mosquito bat, repellent cream, sprays etc. 
  • अगर बच्चे खुले में खेलने जाते है तो उने शरीर पर mosquito repellent cream लगाए और पुर शरीर ढके ऐसे कपडे पहनाए। 
  • अपने आस-पास के लोगो को भी मच्छर को फैलने से रोकने के लिए प्रोत्साहित करे। 
  • अपने आस-पास में अगर कोई Dengue Fever या Malaria के मरीज का पता चलता है तो इसकी जानकारी स्वास्थय विभाग एवं नगर निगम को दे, जिससे तुरंत मच्छर विरोधी उपाय योजना की जा सके। 
  • Dengue Fever के ज्यादातर मरीजो की मृत्यु platelet या खून के अभाव में होती है। मेरी आप सभी से request है की जरुरत के समय रक्तदान / Blood Donation करने से बिलकुल न घबराए और साल में कम से कम दो बार Blood Donation जरुर करे। 
  • कई लोग Dengue Fever में Platelet Count बढाने के लिए पपीते के पत्ते का रस पिने के सलाह देते है। पपीते के पत्ते का रस पिने के बाद कई मरीजो में platelet count में सुधार होते हुए देखा गया है। इसका कोई ठोस पुरावा नहीं है और न कोई research हुआ है। अब बाजार में पपीते के extract की दवा भी मिलती है जो की डॉक्टर जरुरत होने पर आपको लेने की सलाह दे सकते हैं।

शुक्रवार, नवंबर 13, 2015

क्रीम और साबुन छोड़ें घरेलु उबटन लगाएं

साफ चेहरा और कोमल त्वचा पाएं : राज
मौसम के अनुसार फेस पैक घर पर बनायें


त्वचा की किस्म और मौसम के आधार पर कौन सा फेस मास्क आप की त्वचा पर सूट करेगा व इसे घर पर भी कैसे आसानी से तैयार करें, आइए जानते हैं...

फेस मास्क त्वचा की देखभाल में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है. यह त्वचा को साफ करने के अलावा मृत कोशिकाओं को भी बाहर निकालता है. इस से त्वचा साफ, मुलायम और जवां नजर आती है और रक्तसंचार भी बढ़ता है.

मास्क कई प्रकार के होते हैं और वे त्वचा की किस्म और मौसम के आधार पर लगाए जाते हैं. आजकल फलों और सब्जियों के मास्क अधिक प्रचलित हैं, जो घर पर आसानी से बन जाते हैं. विटामिंस और मिनरल्स से भरपूर होने की वजह से ये त्वचा के पोषण को भी बढ़ाते हैं. लेकिन कई बार त्वचा संवेदनशील होती है, जिस से किसी भी प्रकार का मास्क आप नहीं लगा पातीं. ऐसे में जरूरी होता है कि आप किसी ऐक्सपर्ट से राय लें और जान लें कि कौन सा फेस मास्क आप को सूट करेगा, जिस से आप को परेशानी न हो.

इस के बारे में द कौस्मैटिक सर्जरी ऐंड रिसर्च इंस्टिट्यूट की स्किन ऐक्सपर्ट डा. सोमा सरकार कहती हैं कि फेस मास्क लगाना चेहरे के लिए हमेशा अच्छा होता है, लेकिन फेस मास्क वही लगाएं जो आप को सूट करे. नहीं तो चेहरे पर दाने, फुंसियां और रैशेज निकलने का खतरा रहता है.

कुछ खास मास्क निम्न हैं:

व्हाइटनिंग मास्क: यह इंस्टैंट ग्लो देता है. लेकिन इस का इस्तेमाल किसी खास अवसर, जैसे त्योहार, शादी, पार्टी वगैरह में जाने से पहले किया जाना उचित होता है. इसे कहीं जाने से 2 घंटा पहले किसी ब्यूटी सैलून या स्किन केयर सैंटर से लगवाना अच्छा रहता है.

मौइश्चराइजिंग मास्क: इसे 40 की उम्र के बाद 15 दिन में एक बार प्रयोग करने से त्वचा सूखी नहीं रहती और चेहरे पर ग्लो बना रहता है.

रिजुविनेशन मास्क: यह मेनोपौज के बाद बहुत उपयोगी रहता है. इस से त्वचा साफ होने के साथसाथ पिग्मैंटेशन, झुर्रियों आदि सभी में कमी आती है.

ऐक्ने मास्क: यह उन के लिए अधिक फायदेमंद होता है जिन के चेहरे पर ऐक्ने या मुंहासे हों. समुद्री सार तत्त्व से बनाया गया यह मास्क त्वचा के तैलीय स्राव को कम करता है.

6 फेस मास्क के प्रयेग के बाद ऐक्ने गायब तक हो सकता है.

अंडर आई मास्क: यह अधिकतर आंखों के नीचे के काले घेरों को कम करने के लिए लगाया जाता है. इस से आंखों के आसपास की झुर्रियां और रेखाएं भी कम होती हैं.

कोलेजन मास्क: इसे 40 साल की उम्र के बाद लगाना चाहिए, क्योंकि इस उम्र तक पहुंचतेपहुंचते व्यक्ति के शरीर की कोलेजन उत्पादन की मात्रा 15% घट जाती है. इस से त्वचा जल्दी सिकुड़ने लगती है. यह मास्क चेहरे की त्वचा की गहराई तक जाता है, जिस से आप की खोई हुई चमक वापस आ जाती है.

ब्यूटीशियन अन्नपूर्णा बताती हैं कि आजकल की महिलाएं अपनी सुंदरता और फ्रैशनैस को ले कर काफी जागरूक हैं, इसलिए 30 की उम्र पार करते ही वे सैलून आती हैं. मैं उन की त्वचा की किस्म आधार पर उन को फेस मास्क लगाती हूं. फेशियल के तुरंत बाद मास्क हमेशा उपयोगी होता है और मौनसून में हर्बल मास्क व गोल्ड मास्क अधिक अच्छा रहता है. आप घर पर भी ये फेस मास्क बना कर लगा सकती हैं:

एग मास्क: इस में अंडे की सफेद भाग को ले कर उस में थोड़ा शहद व 2-3 बूंदें नीबू का रस मिला कर चेहरे पर लगाएं और 15 मिनट लगा रहने दें. मास्क सूखने पर हलके गरम पानी से चेहरा धो लें.

बेसन मास्क: इस में थोड़ा दूध, चुटकी भर हलदी, 10 बूंदें रोज वाटर और थोड़ा दही मिला कर चेहरे पर लगाएं और 15 मिनट बाद धो लें.

मास्क लगाने के तरीके

  • बालों को पीछे कस कर बांध लें.
  • चेहरे को अच्छी तरह साफ कर लें.
  • मास्क लगाने के लिए एक चौड़े और चपटे ब्रश का इस्तेमाल करें.
  • संवेदनशील जगहों पर मास्क न लगाएं, मसलन आंखों के आसपास की त्वचा और होंठों पर.
  • मास्क को तब तक लगाए रखें जब तक कि वह सूखे नहीं. तकरीबन 15 से 20 मिनट.
  • हमेशा मास्क को सादे पानी से उतारें.
  • अगर चेहरे पर मुंहासे हों तो मास्क लगाने से पहले ऐक्सपर्ट की राय अवश्य लें.

गुरुवार, नवंबर 05, 2015

सुन्दर शरीर और निरोगी काया शक्ति दाता.. बादाम जो खाता

आपार शक्तियों और नेचुरल सुंदरता प्रदान करता है ये अनमोल ड्राई फ्रूट्स जिसे राज के साथ सभी बादाम (Almonds) कहते हैं...


  • बादाम तेल से कब्ज दूर होती है राज और यह शरीर को ताकतवर बनाता है।
  • पूरे परिवार के लिए राज आदर्श टॉनिक बादाम तेल का सेवन फूड एडिटिव के तौर पर किया जा सकता है।
  • यह पेट की तकलीफों को दूर करने के साथ राज आंत की कैंसर में भी उपचारी है।
  • बादाम तेल के नियमित सेवन से कोलेस्ट्रॉल कम होता है। यानी राज यह दिल की सेहत के लिए भी अच्छा है।
  • बादाम मस्तिष्क और स्नायु प्रणालियों के लिए राज पोषक तत्व है।
  • राज यह बौद्धिक ऊर्जा बढ़ाने वाला, दीर्घायु बनाने वाला है।
  • मीठे बादाम तेल के सेवन से माँसपेशियों में दर्द जैसी तकलीफ से तत्काल आराम मिलता है।
  • बादाम तेल का प्रयोग रंगत में निखार लाता है राज और बेजान त्वचा को रौनक प्रदान करता है। त्वचा की खोई नमी लौटाने में भी बादाम तेल सर्वोत्तम माना गया है।
  • शुद्ध बादाम तेल तनाव को दूर करता है। दृष्टि पैनी करता है और स्नायु के दर्द में भी राहत दिलाता है।
  • विटामिन डी से भरपूर बादाम तेल बच्चों की हड्डियों के विकास में भी योगदान करता है।
  • बादाम तेल से रूसी दूर होती है और बालों की साज-सँभाल में भी यह कारगर है। इसमें मौजूद विटामिन तथा खनिज पदार्थ बालों को चमकदार और सेहतमंद बनाते हैं।
  • बादाम तेल का इस्तेमाल बाहर से किया जाए या फिर इसका सेवन किया जाए, यह हर लिहाज से उपचारी और उपयोगी साबित होता है।
  • हर रोज रात को 250 मिग्रा गुनगुने दूध में 5-10 मिली बादाम तेल मिलाकर सेवन करना लाभदायक होता है।
  • त्वचा को नरम, मुलायम बनाने के लिए भी आप इसे लगा सकते हैं।
  • नहाने से 2-3 घंटे पहले इसे लगाना आदर्श रहता है। बादाम तेल की मालिश न सिर्फ बालों के लिए अच्छी होती है, बल्कि मस्तिष्क के विकास में भी फायदेमंद होती है। हफ्ते में एक बार बादाम तेल की मालिश गुणकारी है।

राज खाने से पहले क्‍यूं भिगोया जाता है बादाम?

सूखे मेवों में बादाम का नाम सबसे ऊपर आता है क्‍योंकि यह बहुत ही पौष्टिक होता है। बादाम में प्रोटीन, रेशा, वसा, विटामिन और मिनरल पर्याप्त मात्रा में होते हैं, इसलिए यह स्वास्‍थ्‍य के लिए तो अच्छा है ही, त्वचा के लिए भी अच्‍छा माना जाता है। घर के बडे़ कहते हैं कि रोज सुबह दो बादाम पानी में भिगो कर जरुर खाना चाहिये क्‍योंकि इससे ताकत आती है। आप भी शायद यही करते होंगे, कि रात में बादाम को भिगो दिया और सबुह उसका छिलका उतार कर खा लिया। अगर आप जानना चाहते हैं राज कि बादाम को पानी में भिगो कर क्‍यूं खाया जाता है तो आगे पढे़-

क्‍यूं भिगोया जाता है बादाम?

बादाम के छिलके में टैनिन एसिड होता है जिससे अंदर के बादाम को पोषण मिलता है। बादाम पेड़ों में लगते हैं इसलिये उनके कठोर छिलके उन्‍हें तेज सूरत की रौशनी और वातावरण की नमी से बचाते हैं। जब आप बादाम को पानी में भिगोते हैं तब इससे छिलके का पोषक तत्‍व आराम से बादाम के अंदर चला जाता है। इसलिये भिगोए हुए बादाम सूखे बादाम के मुकाबले ज्‍यादा पौष्टिक होते हैं।

पचने में आसान

बादाम भिगोने पर वह नरम हो जाते हैं जिससे उन्‍हें आराम से हजम किया जा सकता है। छोटे बच्‍चे और वो बुजुर्ग जिनके दांत कमज़ोर हैं वे इसे आराम से कूंच-कूंच कर खा सकते हैं।

किस तरह भिगोएं?

आदर्श रूप से आपको 1/2 कप पानी में एक मुठ्ठी बादाम भिगोने चाहिये। बादाम को कम से कम 8 घंटे तक भिगोएं। इसके बाद सुबह पानी से निकाल कर छील लें और खा लें। अगर आपको बादाम को स्‍टोर करना चाहती हैं तोइसे छील कर एक प्‍लास्‍टिक बैग या कंटेनर में रखें। भिगोया हुआ बादाम हफ्तेभर तक चलता है।

कैसे बनाएं राज अंकुरित बादाम?


क्‍या आप जानते हैं कि अकुंरित बादाम भिगोए हुए बादाम के मुकाबले ज्‍यादा स्‍वास्‍थ्‍य वर्धक होता है। अगर आपको अंकुरिक बादाम चाहिये तो इसे 12 घंटो के लिये भिगोएं, फिर छान कर उसका पानी सुखा लें। बादाम को किसी कांच के जार में फ्रिज के अंदर रखें और कम से कम इसे अंकुरित होने के लिये 3 से 4 दिन का समय दें।

बादाम के फायदे राज (Benefits Of Almonds):-

1. बादाम की गिरी को रात में पानी भिगोकर सुबह छिलका उतार कर खाना चाहिए। राज यह पढ़ने वाले बच्चों के लिए बहुत ही फायदेमंद होता हैं।
2. मधुमेह के रोगी भी बादाम का सेवन कर सकते हैं, राज यह शुगर लेवल को कंट्रोल करने में सहायता करता है पर इस बात का ख़ास ध्यान रहे राज कि मधुमेह रोगी को रोजाना सिर्फ 3-4 बादाम ही खाने चाहिए।
3. बादाम मे कॉपर पाया जाता है इसलिए राज ये छिलका सहित खाने पर खून मे लाल कणों की कमी को दूर करता है।
4. बादाम में राज मैग्निशियम,कॉपर और रिबोफ्लेविन जैसे पोषक तत्व पाये जाते हैं, जो शरीर को अधिक मात्रा में ऊर्जा को प्रदान करते हैं। बादाम दिमाग के साथ-साथ शरीर को भी फिट रखता है।
5. बादाम चेहरे की रंगत को निखारता है राज और ये त्वचा में कोमलता लाने का काम करता है।
6. रोजाना राज बादाम की 5-8 गिरी खाने से बालों को गिरने की समस्या भी कम होती है।
7. बादामों को रात को 5-6 घंटे के लिए पानी मे भिगो दें राज और फिर सुबह इन्हे छील कर सफ़ेद गिरी को घिस कर दूध में घोल कर पीने से दिमाग तेज होता है , नर्व्स मजबूत होती है। और बादाम खाने का सबसे सही तरीका यही है।
8. बादाम में मौजूद कैल्शियम और विटामिन D हडि्डयों को मजबूत बनाते हैं। बादाम बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक सबके लिए बहुत ही फायदेमंद होता है।
9. अक्सर लगातार काम करने या शरीर में पोषण की कमी से आंखें कमजोर हो जाती हैं। बादाम का सेवन आंखों के लिए भी काफी अच्छा होता है।
10. बादाम गर्भवती महिलाओं के लिए बहुत फायदेमंद होता है राज क्योकि बादाम में फोलिक एसिड होता है जिसके कारण माँ – बच्चे में रक्त की कमी नहीं होती है।