Breast Cancer Symptoms and Prevention
कैंसर के बारे में बड़ी समस्या यह है कि ज्यादातर लोगों को लगता है कि यह बीमारी हमें नहीं हो सकती। इस चक्कर में वक्त रहते लोग जांच नहीं कराते और यही देरी इस बीमारी को घातक बना देती है।
कैसे होता है कैंसर
हमारे शरीर के सभी अंग सेल्स से बने होते हैं। जैसे-जैसे शरीर को जरूरत होती है, ये सेल्स आपस में बंटते रहते हैं और बढ़ते रहते हैं, लेकिन कई बार ऐसा भी होता है कि शरीर को इन सेल्स के बढ़ने की कोई जरूरत नहीं होती, फिर भी इनका बढ़ना जारी रहता है। बिना जरूरत के लगातार होने वाली इस बढ़ोतरी का नतीजा यह होता है कि उस खास अंग में गांठ या ट्यूमर बन जाता है। असामान्य तेजी से बंटकर अपने जैसे बीमार सेल्स का ढेर बना देने वाले एक सेल से ट्यूमर बनने में बरसों, कई बार तो दशकों लग जाते हैं। जब कम-से-कम एक अरब ऐसे सेल्स जमा होते हैं, तभी वह ट्यूमर पहचानने लायक आकार में आता है। ट्यूमर दो तरह के हो सकते हैं - बिनाइन और मैलिग्नेंट।
हर ट्यूमर कैंसर नहीं
बिनाइन ट्यूमर (गांठ) गैर-कैंसरस होते हैं, जबकि मैलिग्नेंट ट्यूमर को कैंसरस माना जाता है। बिनाइन ट्यूमर से जिंदगी को कोई खतरा नहीं होता और ये शरीर के दूसरे हिस्सों में भी नहीं फैलते। ये जिस अंग में होते हैं, वहीं रहते हैं और वहीं से इन्हें सर्जरी के जरिए हटा दिया जाता है। दूसरी ओर मैलिग्नेंट ट्यूमर बदमाश होते हैं। जिस अंग में ये हैं, उसके आसपास के अंगों पर भी ये हमला करना शुरू कर देते हैं और उन्हें भी अपनी गिरफ्त में ले लेते हैं। इनकी ताकत इतनी ज्यादा होती है कि ये ट्यूमर से अलग हो जाते हैं और ब्लड में घुस जाते हैं, जिसका नतीजा यह होता है कि कैंसर शरीर के दूसरे अंगों में भी फैलना शुरू हो जाता है।
क्यों होता है कैंसर
वैसे तो ब्रेस्ट कैंसर के 100 में से 10 मामलों में ही अनुवांशिकता काम करती है, लेकिन कैंसर होने में जीन के बदलाव का 100 फीसदी हाथ होता है। जींस, एनवायरनमेंट और लाइफस्टाइल- ये तीन कारक मिलकर किसी के शरीर में कैंसर होने की आशंका को बढ़ाते हैं।
देश की दशा
23% कैंसर ब्रेस्ट कैंसर होते हैं 70% मामलों में मरीज स्टेज 3 (5 सेंटीमीटर से बड़ी गांठ) में पहुंचती हैं अस्पताल 45-55 साल की उम्र में ये मामले होते हैं सबसे ज्यादा 10 लाख लोगों पर है सिर्फ एक कैंसर एक्सपर्ट 1.15 लाख नए मामले सामने आते हैं हर साल
खुद पहचानें
20 साल की उम्र से हर महिला को हर महीने पीरियड शुरू होने के 5-7 दिन बाद किसी दिन (मीनोपॉज में पहुंच चुकी महिलाएं कोई एक तारीख तय कर लें) खुद ब्रेस्ट की जांच करनी चाहिए। ब्रेस्ट और निपल को आईने में देखिए। नीचे ब्रा लाइन से लेकर ऊपर कॉलर बोन यानी गले के निचले सिरे तक और बगलों में भी अपनी तीन उंगलियां मिलाकर थोड़ा दबाकर देखें। उंगलियों का चलना नियमित स्पीड और दिशाओं में हो (यह जांच अपने कमरे में लेटकर या बाथरूम में शॉवर में भी कर सकती हैं)।
देखें कि ये बदलाव तो नहीं हैं :
- ब्रेस्ट या निपल के साइज में कोई असामान्य बदलाव
- कहीं कोई गांठ (चाहे मूंग की दाल के बराबर ही क्यों न हो) जिसमें अक्सर दर्द न रहता हो, ब्रेस्ट कैंसर में शुरुआत में आम तौर पर गांठ में दर्द नहीं होता
- कहीं भी स्किन में सूजन, लाली, खिंचाव या गड्ढे पड़ना, संतरे के छिलके की तरह छोटे-छोटे छेद या दाने बनना
- एक ब्रेस्ट पर खून की नलियां ज्यादा साफ दिखना
- निपल भीतर को खिंचना या उसमें से दूध के अलावा कोई भी लिक्विड निकलना
- ब्रेस्ट में कहीं भी लगातार दर्द
(नोट : जरूरी नहीं है कि इनमें से एक या ज्यादा लक्षण होने पर कैंसर हो ही। वैसे भी युवा महिलाओं में 90 पर्सेंट गांठें कैंसर-रहित होती हैं। लेकिन 10 पर्सेंट गांठें चूंकि कैंसर वाली हो सकती हैं, इसलिए डॉक्टर से जरूर जांच कराएं।)
जांच
- 40 साल की उम्र में एक बार और फिर हर दो साल में मेमोग्राफी करवानी चाहिए ताकि शुरुआती स्टेज में ही ब्रेस्ट कैंसर का पता लग सके।
- ब्रेस्ट स्क्रीनिंग के लिए एमआरआई और अल्ट्रासोनोग्राफी भी की जाती है। इनसे पता लगता है कि कैंसर कहीं शरीर के दूसरे हिस्सों में तो नहीं फैल रहा।
- एफएनएसी से भी जांच की जाती है। इसमें किसी ठोस गांठ की जांच सूई से वहां के सेल्स निकालकर की जाती है। ट्यूमर कैसा है, इसकी जांच के लिए यह टेस्ट किया जाता है।
गलतफहमियां न पालें
- कैंसर छूत की बीमारी नहीं है जो मरीज को छूने, उसके पास जाने या उसका सामान इस्तेमाल करने से हो सकती है।
- कैंसर के मरीज का खून या शरीर की कोई चोट या जख्म छूने से कैंसर नहीं होता।
- कैंसर डायबीटीज और हाई बीपी की तरह शरीर में खुद ही पैदा होनेवाली बीमारी है। यह किसी इन्फेक्शन से नहीं होती, जिसका इलाज एंटी-बायोटिक्स से हो सके।
- चोट या धक्का लगने से ब्रेस्ट कैंसर नहीं होता।
- 20 साल की उम्र से किसी भी उम्र की महिला को ब्रेस्ट कैंसर हो सकता है।
- ब्रेस्ट कैंसर पुरुषों को भी होता है। 100 में से एक ब्रेस्ट कैंसर का मरीज पुरुष हो सकता है।
- खान-पान और लाइफस्टाइल में सुधार कर कैंसर होने की आशंका को कम किया जा सकता है। लेकिन एक बार कैंसर हो जाने के बाद उसे बिना दवा या सर्जरी के ठीक नहीं किया जा सकता। इसका प्रामाणिक इलाज अलोपथी ही है।
- ज्यादातर (100 में से 90) मामलों में ब्रेस्ट कैंसर खानदानी बीमारी नहीं है। कई वजहें मिलकर कैंसर बनाती हैं।
- ब्रेस्ट की 90 फीसदी गांठें कैंसर-रहित होती हैं। फिर भी हर गांठ की फौरन जांच करानी चाहिए।
- ज्यादातर मामलों में कैंसर की शुरुआत में दर्द बिल्कुल नहीं होता।
- कैंसर का इलाज मुमकिन है और इसके बाद भी सामान्य जिंदगी जी सकते हैं।
जागरूकता जरूरी
पहले ब्रेस्ट कैंसर विकसित देशों की, खाते-पीते परिवारों की महिलाओं की बीमारी मानी जाती थी, लेकिन अब यह हर वर्ग की महिलाओं में देखा जा रहा है। खास यह है कि ब्रेस्ट कैंसर के 50 फीसदी मरीजों को इलाज करवाने का मौका ही नहीं मिल पाता। कैंसर के सफल इलाज का एकमात्र सूत्र है - जल्द पहचान। जितनी शुरुआती अवस्था में कैंसर की पहचान होगी, इलाज उतना ही सरल, सस्ता, छोटा और सफल होगा। इसकी पहचान के बारे में अगर लोग जागरूक हों, अपनी जांच नियमित समय पर खुद करें तो मशीनी जांचों से पहले ही बीमारी के होने का अंदाजा हो सकता है।
वैसे भी मेमोग्राफी मशीन की सेंसटिविटी औसतन 80 फीसदी होती है। यानी मशीन 100 में से 20 मामलों में कैंसर को नहीं पकड़ पाती या गलत रिपोर्ट देती है। कुछ डॉक्टर यह भी मानते हैं कि मेमोग्राफी का खास फायदा नहीं है, क्योंकि जितनी बड़ी गांठ को उस मशीन से देखा जा सकता है, उस स्टेज पर तो महिलाएं अपनी जांच करके भी गांठ और बदलाव आदि का पता लगा सकती हैं। इसके अलावा उस मशीन से जो रेडिएशन निकलता है, वही कई बार कैंसर की शुरुआत का कारण बन सकती है। इसलिए मेमोग्राफी दो साल से कम समय में न कराएं।
इस लिहाज से और भी जरूरी हो जाता है कि सभी महिलाएं अपने ब्रेस्ट की जांच करना खुद सीख लें और महीने में सिर्फ 10 मिनट खर्च करके यह जांच करें।
समस्या कहां है
इस बीमारी के बढ़ने की वजह है कि महिलाएं और पुरुष, दोनों इसे बेहद निजी अंग के रूप में देखते हैं। हाथ-पैर-सिर में दर्द हो, परेशानी हो तो महिलाएं चर्चा करने में हिचकती नहीं हैं लेकिन ब्रेस्ट से जुड़ी समस्या पर बात नहीं करना चाहतीं। फिर अगर कोई मरीज शुरुआत में ही एक्सपर्ट के पास जाना चाहे तो यह आसान नहीं है। उसे पता ही नहीं चल पाता कि कौन-सा डॉक्टर ब्रेस्ट की बीमारियों को ज्यादा समझता है। कारण यह है कि ऐसे एक्सपर्ट्स की बेहद कमी है। आमतौर पर महिलाएं गाइनिकॉलजिस्ट के पास जाने में सहज महसूस करती हैं लेकिन बड़े अस्पतालों में ऑन्कॉलजी डिपार्टमेंट होता है। वहीं जाना बेहतर है।
कैंसर का इलाज बहुत महंगा है क्योंकि इम्पोर्टेड नई दवाएं ही ज्यादा कारगर होती हैं। किसी महंगी दवा का सस्ता विकल्प मार्केट में मौजूद हो तो भी मरीज के पास कोई चॉइस नहीं होती क्योंकि हमारे देश में दवाओं के जेनेरिक नाम नाम लिखने के बजाय ब्रैंड का नाम लिखने का चलन है।
खानपान के बारे में यूनियन फॉर इंटरनैशनल कैंसर काउंसिल (यूआईसीसी) की गाइडलाइंस का कैंसर की संभावना से गहरा संबंध है। विकसित देशों में अतिपोषण की समस्या है, जबकि विकासशील देशों में कुपोषण की। कुपोषण के कारण जरूरी पोषक तत्वों की कमी से शरीर किसी बीमारी से लड़ने में पूरी तरह सक्षम नहीं होता। यह स्थिति कैंसर को फलने-फूलने का मौका देती है।
यूनियन फॉर इंटरनैशनल कैंसर काउंसिल (यूआईसीसी) की गाइडलाइंस के मुताबिक:
1. पेड़-पौधों से बना विविधता भरा, रेशेदार खाना-फल, सब्जियां, अनाज खाएं।
2. चर्बी वाली चीजों से परहेज करें। रेड मीट और तले-भुने खाने से बचें।
3. शराब का सेवन करना हो तो सीमित मात्रा में करें।
4. खाना इस तरह पकाया और संरक्षित किया जाए कि उसमें कैंसरकारी तत्व, फफूंद, जीवाणु न पैदा हो सकें।
5. खाना बनाते और खाते समय अतिरिक्त नमक डालने से बचें।
6. शरीर का वजन सामान्य से बहुत ज्यादा या कम न हो। इसके लिए खाने और कैलोरी खर्च करने में संतुलन हो। ज्यादा कैलोरी वाली चीजें कम मात्रा में खाएं। नियमित एक्सरसाइज करें।
7. विटामिन और मिनरल की गोलियां संतुलित खाने का विकल्प कभी नहीं हो सकतीं।
इन सबके साथ अगर हम कैंसर से बचना चाहते हैं तो एनवायरनमेंट से कैंसरकारी जहरीले चीजों को हटाने, कैंसर की जल्द पहचान, तंबाकू का सेवन किसी भी रूप में पूरी तरह खत्म करने, पेन किलर और दूसरी दवाइयां खुद ही, बेवजह खाते रहने की आदत छोड़ने जैसे अभियानों की भी सख्त जरूरत है।
कैंसर से बचाव-
कसरत: हर हफ्ते सवा तीन घंटे दौड़ लगाने या 13 घंटे पैदल चलने वाली महिलाओं को ब्रेस्ट कैंसर की आशंका 23 फीसदी कम होती है। मातृत्व : बच्चे पैदा करना (वह भी करीब 30 साल की उम्र तक) और उसे स्तनपान कराना ब्रेस्ट कैंसर को टालने का कारगर तरीका है।
तंबाकू : गुटका, तंबाकू और स्मोकिंग ही नहीं, अल्कोहल भी ब्रेस्ट कैंसर के रिस्क को बढ़ाता है। हर ड्रिंक का मतलब है, कैंसर के खतरे में इजाफा।
धूप : विटामिन डी की कमी का सीधा संबंध ब्रेस्ट कैंसर से है। शरीर को हर दिन 1000 मिग्रा. कैल्शियम और 350 यूनिट विटामिन डी मिलना चाहिए। रोज 5-10 मिनट धूप में रहने से शरीर को विटामिन डी मिलता है। इस दौरान कम-से-कम कपड़े पहने हों। कैलरी : रेड मीट और प्रोसेस्ड खाना कम, साबुत अनाज, फल-सब्जियां ज्यादा खाना कैंसर से बचाव का रास्ता है। कुल कैलरी का सिर्फ 20 फीसदी चर्बी से लें तो ब्रेस्ट कैंसर की आशंका में 24 फीसदी की कटौती हो सकती है।
वजन : शरीर पर छाई चर्बी इस्ट्रोजन हॉर्मोन बनाती है, जो ब्रेस्ट कैंसर का कारण है। फालतू वजन बढ़ाने से बचें।
नए इलाज कितने सही
पिछले कुछेक बरसों में कई तरह के कैंसरों के खिलाफ कई नए इलाज आने की बात कही गई है। ल्यूकेमिया (ब्लड कैंसर) के लिए इम्यूनोथेरेपी, स्किन कैंसर के लिए टार्गेटेड थेरपी, ठोस कैंसरों के लिए एंटीएंजियोजेनिक ईजाद की गई। यहां तक कि जेनेटिक कीमोथेरेपी यानी जीन में हुए कैंसरकारी बदलावों को दवाओं के जरिए उलट देने, इम्यून सिस्टम के सेल्स में जेनेटिक बदलाव करके उन्हें कैंसर को पहचानने और लड़कर उसे खत्म कर देने के लिए ट्रेंड करने जैसी नई तकनीकों के इस्तेमाल को भी ट्रायल के विभिन्न चरणों में सफलता मिली है।
लैब से कामयाब होकर आए कई टार्गेटेड इलाज कुछेक बरसों से कैंसर के मरीजों के लिए उपलब्ध हैं, लेकिन कुछ ही तरह के कैंसर के लिए। ब्रेस्ट कैंसर के लिए पिछले 20 बरसों में सिर्फ दो नए इलाज खोजे जा सके हैं - हरसेप्टिन और हॉर्मोनल थेरपी। कैंसर के इलाज में अब भी, पुराने आजमाए हुए तरीकों पर ही जोर होता है- चाहे कैसे भी हो, कैंसर को खत्म करो। सर्जरी, कीमोथेरपी और रेडियोथेरपी, ये तीनों ही बेहद मुश्किल प्रक्रियाएं हैं, जो कैंसर पर जितना असर करती हैं, शरीर के बाकी स्वस्थ हिस्सों पर भी उतना ही। लेकिन कुल मिलाकर ज्यादातर मामलों में उपलब्ध इलाज बस यही है।
तो क्यों न ब्रेस्ट कैंसर के सफल इलाज के एकमात्र सूत्र - जल्द पहचान और पूरा इलाज को याद रखें और इस जानकारी को जागरूकता में बदल कर अपनी जांच खुद करने के सरल और मुफ्त उपायों को आजमाएं।
(आर. अनुराधा चर्चित आत्मकथात्मक पुस्तक 'इंद्रधनुष के पीछे-पीछे : एक कैंसर विजेता की डायरी' की लेखिका हैं। कैंसर जागरूकता कार्यक्रमों में सक्रिय हैं। हिंदी में कैंसर को समर्पित एकमात्र ब्लॉग इंद्रधनुष www.ranuradha.blogspot.in चलाती हैं। )
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