आर्थराइटिस के मरीज क्यों बढ़ते जा रहे हैं
आर्थराइटिस हडि्डयों व जोड़ों का रोग है। इसके रोगियों की संख्या आजकल बढ़ती जा रही है। इसी वजह से आजकल यह रोग चर्चा का विषय बन गया है। पहले अक्सर आर्थराइटिस कई प्रकार के रोगाणुओं की वजह से होता था परन्तु आजकल ऐसे मामले बहुत कम ही सामने आते हैं और अगर आते भी हैं तो इनका इलाज आसानी से हो जाता है। इस तरह के आर्थराइटिस में सेप्टिक ज्वाइंट्स, गोनोरिया, ब्रूसिलेसिस, तपेदिक, टायफायड बुखार आदि शामिल हैं। आर्थराइटिस के वैसे तो कई प्रकार होते हैं परंतु तीन प्रकार के आर्थराइटिस मुख्य होते हैं। पहला र्यूमेटॉइड आर्थराइटिस, दूसरा आस्टियो आर्थराइटिस और तीसरा गाउट आर्थराइटिस।
र्यूमेटॉइड आर्थराइटिस एक ऐसी स्थिति है जिसमें पूरे शरीर की कोशिकाओं (कनेक्टिव टिशु) में पीड़ा का अहसास होता है जो किसी तरह के संक्रमण से रहित होता है। जोड़ों के बीच पाई जाने वाली पतली परत को भारी नुकसान पहुंचाने पर यह स्थित बिनती है, इससे जोड़ों में टूट−फूट शुरू हो जाती है। र्यूमेटॉइड आर्थराइटिस की मुश्किल यह है कि इसमें स्थित किब सुधर रही है, या खराब हो रही है, अनुमान लगाना है कठिन है क्योंकि इसमें दर्द की स्थित विक्त−वक्त पर बदलती रहती है जिससे इलाज करने के तरीके का चुनाव करना मुश्किल हो जाता है।
इसके लक्षणों के आरंभ में बुखार आता है। जोड़ों में दर्द, सूजन और हाथ पैर ठंडे रहते हैं। हाथ पैर की उंगुलियों में अकड़न महसूस होती है जिसके कारण रोजाना के काम निपटाने में तकलीफ होती है। रोग की गंभीर स्थिति में उंगुलियां टेढ़ी हो जाती हैं। हडि्डयों के जोड़ों में दर्द शुरू हो जाता है। गर्दन के प्रभावित होने पर गर्दन को हिलाने में दर्द महसूस होता है। इलाज के बाद रोगी की हालत में सुधार आता है।
र्यूमेटॉइड आर्थराइटिस को पैदा करने वाले कारणों जैसे संक्रमण, कुपोषण, ग्लैंड्स, भावनात्मक या मनोवैज्ञानिक विकार या अनुवांशिकता आदि में से किसी को भी पूर्णरूप से दोषी नहीं माना जा सकता। प्राप्त जानकारी के आधार पर यह कहा जा सकता है कि शरीर की अपने ही ऊतकों के प्रति बढ़ी हुई संवेदनशीलता इसके लिए दोषी है। इस बीमारी में जोड़ों में सूजन और विकार होता है, जिस पर दबाव पड़ने व हिलने−डुलने से दर्द और पीड़ा का अहसास होता है।
दूसरे प्रकार के आर्थराइटिस यानि आस्टियो आर्थराइटिस का संबंध बढ़ती उम्र से होता है यानि यह ज्यादा उम्र के लोगों में ही पाया जाता है। इसमें ज्यादा वजन सहन करने वाले जोड़ जैसे रीढ़ की हड्डी, कूल्हे और घुटनों आदि के जोड़ प्रभवित होते हैं। परंतु महिलाओं में इसका प्रभाव हाथों की उंगुलियों या अंगूठों के जोड़ों पर भी पाया गया है।
आस्टियो आर्थराइटिस वजन बढ़ने, चोट लगने या शरीर में हुई टूटफूट के कारण से शुरू होता है। जोड़ों में भारी अकड़न की वजह से उठने बैठने में भी परेशानी होती है। वैसे तो इस बीमारी का खाने पीने से कोई ताल्लुक नहीं है परंतु रोगी अगर मोटा हो तो उसके उपचार में भोजन का महत्व बढ़ जाता है। इस बीमारी के इलाज में फिजियोथेरेपी, जिसमें सिकाई भी शामिल होती है, काफी लाभदायक है। तीसरे प्रकार के आर्थराइटिस गाउट आर्थराइटिस को गठिया रोग के नाम से भी जाना जाता है। इसका लक्षण हाथ पैरों के जोड़ों में सूजन आना होता है जिनमें दर्द की अधिकता व बेचैनी रहती है।
अस्थि रोग विशेषज्ञों का मानना है कि गाउट की वजह से जोड़ों का भीतरी भाग ठीक ढंग से काम करना बंद कर देता है। जोड़ हडि्डयों से बने होते हैं जो एक कैप्सूल यानि संपुट में होते हैं। इस कैप्सूल के ऊतक (टिशु) एक प्रकार का चिकना द्रव्य बनाते हैं जिसे साइनोवियल फ्लूड कहा जाता है। इसी फ्लूड की सहायता से उंगुलियों के जोड़ आसानी से काम करते हैं। इसी द्रव्य पर कैप्सूल के अंदर के ऊतक भी निर्भर करते हैं। गाउट की समस्या उस समय पैदा होती है जब शरीर बहुत ज्यादा यूरिक एसिड बनाने लगता है और उसके कण कैप्सूल के अंदर पहुंचने लगते हैं।
गाउट की शुरुआत सबसे पहले पंजों से होती है। यदि बिना इलाज के छोड़ दिया जाए जो यह असहनीय दर्द की वजह बन जाता है, जो कुछ दिन या कुछ हफ्तों तक बना रहता है। कुछ समय के बाद इसके कण शरीर के दूसरे जोड़ों तक फैल जाते हैं और यही दर्द बढ़ता हुआ कोहनी, घुटने, हाथों की उगुंलियों के जोड़ों और ऊतकों तक पहंुचता है। यह कण त्वचा में भी पहुंच सकते हैं। कान का बाहरी हिस्सा भी प्रभावित हो सकता है।
गाउट 75 प्रतिशत वंशानुगत होता है जिसमें यूरिक एसिड सही ढंग से शरीर से बाहर नहीं निकल पाता। यही वजह है कि यह परिवारों में वंशानुगत देखा जाता है। गाउट ज्यादातर पुरूषों में पाया जाता है। ज्यादा वसा वाला भोजन खून में यूरिक एसिड की मात्रा बढ़ा देता है जिससे कणों के बनने की प्रक्रिया तेज हो जाती है।
गरम मौसम में उल्टी व दस्त की बीमारी हो सकती है और इस बीमारी के बाद भी गाउट की बीमारी आ सकती है। गुर्दे की बीमारी वाले व्यक्ति में भी यूरिक एसिड की मात्रा ज्यादा पाई जाती है। यह आवश्यक नहीं होता की जिस व्यक्ति के शरीर में यूरिक एसिड ज्यादा हो वह गाउट का मरीज हो। जिन व्यक्तियों के खून का स्तर सामान्य होता है उन व्यक्तियों को भी गाउट की बीमारी हो सकती है।
चिकित्सक परीक्षण द्वारा खून में यूरिक एसिड की मात्रा को जानकर गाउट की बीमारी का इलाज करते हैं। साथ ही चिकित्सक सूजन की जगह से फ्लूड कणों की मात्रा का विश्लेषण करते हैं। इस परीक्षण से दूसरे जोड़ों में होने वाले दर्द की समस्या को समझने में भी मदद मिलती है कि वास्तव में यह आर्थराइटिस है या कोई संक्रमण।
आमतौर पर चिकित्सक गाउट की रोकथाम के लिए रोगी के रक्त में बढ़े हुए यूरिक एसिड पर नियंत्रण करने की कोशिश करते हैं। चिकित्सकों के अनुसार आर्थराइटिस की वजह को हम तीन श्रेणियों में विभाजित कर सकते हैं− अधिक वजन, बढ़ती उम्र, गहरी चोट या घाव, लंबी बीमारी। आर्थराइटिस पुरुषों की तुलना में स्त्रियों में ज्यादा पाया जाता है क्योंकि स्त्रियों की हडि्डयों व मांसपेशियों का विकास पुरुषों की तुलना में कम होता है। आर्थराइटिस के प्रमुख कारण निम्नलिखित होते हैं− स्त्रियों में एस्टोजन हार्मोन की कमी से भी आर्थराइटिस होता है। थायरायड में गडबड़ी के कारण भी आर्थराइटिस हो सकता है। त्वचा या खून की बीमारी जैसे ल्यूकेमिया आदि होने पर भी जोड़ों में विकार पैदा हो जाता है। ज्यादा खाने और कम शारीरिक परिश्रम के कारण शरीर में कैल्शियम व आयरन की मात्रा बढ़ जाती है, इस कारण से भी यह बीमारी हो सकती है। शरीर के दूसरे अंगों के संक्रमण भी जोड़ों पर अपना प्रभाव डाल सकते हैं जैसे टायफायड या पैराटायफायड की बीमारी के कुछ हफ्तों के पश्चात् घुटनों में दर्द हो सकता है। पोषण की कमी की वजह, विशेषकर बच्चों में रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होने से र्यूमेटॉइड आर्थराइटिस होता है जिससे जोड़ों में दर्द, सूजन और गांठों में अकड़न आ जाती है। आंतों को प्रभावित करने वाले रिजाक्स कीटाणु जोड़ों पर भी असर डाल सकते हैं इसके अलावा क्षय रोग का असर भी मरीज के जोड़ों पर पड़ सकता है। इसमें जोड़ों में सूजन आ जाती है और दर्द बढ़ जाता है। यह सबसे ज्यादा रीढ़ की हड्डी पर अपना प्रभाव डालता है।
साधारण तौर पर आर्थराइटिस का इलाज करने के लिए निम्न तरीकों का इस्तेमाल किया जाता है। रोगी की अवस्था को ध्यान में रख कर कुछ विशेष व्यायाम कराए जाते हैं जिससे प्रभावित भाग की सक्रियता बनी रहे और रोगी का आराम भी मिले इस प्रकार से इसमें फिजियोथेरेपी की सहायता ली जाती है। रोगी की हालत को सुधारने के लिए एंटी इन्फ्लोफेडिक सोडियम, पाइरोक्सीकेन, निमासिंटाइड आदि दिये जाते हैं। इसमें हीट थेरेपी का भी प्रयोग किया जाता है जो दो प्रकार की होती है एक गीली सिकाई (मोइस्ट हीट थेरेपी) और दूसरी सूखी सिकाई (ड्राइ हीट थेरेपी)। किसी भी तरह के इलाज के साथ−साथ रोगी के वजन के तरीकों से जोड़ों को फिर से स्वस्थ न बनाया जा सके तो उनको मेटल या सिलिकोन के बने कृत्रिम जोड़ों से बदलना जरूरी हो जाता है।
आर्थराइटिस होने में त्वचा के रोग, लंबी बीमारी, रहन सहन का ढंग, खानपान और अनुवांशिकता का बहुत प्रभाव पड़ता है। उदाहरण के लिए ज्यादा समय तक ठंडे सीलन वाली जगहों पर रहने, निमोनिया, टायफायड, फ्लू आदि रोगों से पीडि़त होने से भी यह रोग हो सकता है। रोग से पीडि़त व्यक्ति के शरीर में पैदा हुए जहरीले पदार्थों का प्रभाव कुछ दिनों से लेकर कुछ वर्षों तक हो सकता है। इसी वजह से जोड़ों में पीड़ा की वजह का पता लगाना कई बार मुश्किल हो जाता है। जोड़ों पर गहरा घाव होने से भी संक्रमण की संभावना रहती है।
आर्थराइटिस बेहद कष्टकारी रोग है, इस रोग के निवारण हेतु कोई कारगर दवा नही है, जो दवाएं हैं भी वे सिर्फ दर्द को भुलाने मात्र का कार्य करती हैं | खान-पान में सुधार एवं कुछ प्राकृतिक उपायों को अपनाकर इस रोग से मुक्ति पायी जा सकती है |
प्राकृतिक चिकित्सा :
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एक प्रेशर कुकर में पानी भरकर गर्म करें,जब पानी उबलने लगे तब कुकर की सीटी को निकालकर अलग कर दें एवं सीटी वाली पाइप जहाँ से भाप निकल रही है वहां पर एक रबड़ की नली लगा दें | अब इस रबड़ की नली से भाप निकलना प्रारंभ हो जायेगा | पाइप को एक हाथ से पकडकर रोगग्रस्त जोड़ों पर भाप को लगायें एवं दूसरे हाथ से उसी अंग पर हलके से मसाज करते रहें | प्रत्येक अंग पर कम से कम 5 मिनट तक भाप लगने दें | इस उपचार को प्रतिदिन 1 बार करें |
भोजन :
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प्राकृतिक भोजन जिसमें खासकर हरी पत्तेदार सब्जी का सेवन करना काफी फायदेमंद माना जाता है। इसमे मौजूद विटामिन व मिनरल जोड़ों के दर्द को कम करता है साथ ही इससे शरीर को ऊर्जा मिलती है और हडिडयां मजबूत होती हैं।
परहेज :
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समस्त प्रकार की दालें,मिर्च,मसाले,अचार,मुरब्बा,चाय,काफ़ी,बाज़ार की मिठाईयां फास्ट फ़ूड,जंक फ़ूड आदि बंद कर दें |
अन्य घरेलू उपाय :
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• प्रातः रात्रि आधा- आधा चम्मच अरंडी के जड़ का चूर्ण लेने से गठिया के रोग में चमत्कारिक लाभ होता है। यदि जोड़ों का दर्द प्रारंभिक अवस्था में है तो अरंडी के तेल के मालिश भी अत्यंत लाभदायक है।
• आर्थराइटिस रोग में रक्त में यूरिक एसिड की मात्रा अधिक हो जाती है। इसे कम करने के लिए प्रातः खाली पेट लहसुन की 2-3 कलियाँ छीलकर पानी के साथ निगल लेनी चाहिए | लहसुन के रस को कपूर में मिला कर मालिश करने से भी दर्द में भी राहत मिलती है।
• जोड़ों के दर्द से परेशान लोगों को हर रोज दो सौ ग्राम अदरक दो बार लेने से दर्द में बहुत राहत मिलती है। आप चाहें तो सब्जी, सूप या अन्य चीजों में मिलाकर भी अदरक का सेवन कर सकते हैं।
• जोड़ों पर नीबू के रस की मालिश करने से और रोजाना सुबह एक गिलास पानी में एक नीबू का रस निचोड़ कर पीते रहने से जोड़ों की सूजन एवं दर्द दूर होता है।
• प्रतिदिन 15-20 मिली. बथुआ के ताजा पत्तों का रस पीना चाहिए। खाली पेट पीने से अधिक लाभ होता है। तीन महीने तक प्रतिदिन प्रातः खाली पेट बथुआ के ताजा पत्तों का रस पीने से इस रोग से हमेशा के लिए छुटकारा मिल जाता है।
• प्रतिदिन भोजन के 15 मिनट पहले दो आलूओं का रस (लगभग 100 मिली. रस) निकाल कर पीने से इस रोग में अत्यंत लाभ मिलता है।
• 100 ग्राम मैथीदाना भूनकर चूर्ण बना लें इसमें 50 ग्राम सौंठ + 25 ग्राम हल्दी + 250 ग्राम मिश्री का चूर्ण मिला दें। इस चूर्ण को शीशी में भरकर रख दें। प्रातः – सायं 1–1 चम्मच मात्रा, दूध के साथ लें।
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